
लखनऊ के रहने वाले शुभांशु शुक्ला आज से आठ दिन में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station) के लिए उड़ान भरने वाले हैं. साल 2006 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला लीडर कमांडर राकेश शर्मा के बाद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाने वाले दूसरे भारतीय बनेंगे. आठ जून को शुभांशु फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष के लिए रवाना होंगे. उधर, फ्लोरिडा से हज़ारों किलोमीटर दूर लखनऊ में शुभांशु का परिवार उनकी उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहा है.
खुशी और गर्व से लबरेज़ शुभांगु का परिवार
लखनऊ की गलियों में मौजूद शुभांशु का घर भले ही बाहर से देखने में सामान्य लगे, लेकिन इस घर में रहने वाला शुक्ला परिवार इस समय खुशी से फूला नहीं समा रहा. इस घर का बेटा अंतरिक्ष में जाकर इतिहास जो रचने वाला है. अंतरिक्ष की दुनिया में भारत वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के जरिये नया कीर्तिमान बनाने जा रहा है. इस बीच, शुभांशु के पिता शंभू दयाल शुक्ला को अपने बेटे की 6 साल की तपस्या याद आ रही है.
शंभू अपने बेटे की इस सफलता पर कहते हैं. "बहुत खुशी है. अब उसका लक्ष्य पूरा हो रहा है. उसने जिस मिशन के लिए 2019 से तैयारी की थी, वह पूरी हो गई है. अब मिशन आठ तारीख को होना है और उसका क्वारंटाइन भी 24 तारीख से शुरू हो गया है. मैं चाहता हूं कि मिशन. अच्छी तरह से पूरा हो और उनकी इच्छा पूरी हो. यह हमारे देश और प्रदेश सबके लिए गर्व की बात है कि हमारा बच्चा इस मिशन के लिए चुना गया है."
इस बीच, ग्रुप कैप्टन की मां आशा शुक्ला ने अपने बेटे की उपलब्धि का पूरा श्रेय अपनी बहू को दिया है. एक साल से अपने बेटे के घर आने की राह देख रही इस मां का कहना है कि बेटे की कामयाबी में बहू का योगदान है. आशा कहती हैं, "बहुत गौरव की बात है. हम लोगों के लिए तो अच्छा लगता है. किसी का भी बच्चा हो, जब इतनी ऊंचाइयों पर जाता है तो मां-बाप को ही सबसे ज्यादा अच्छा लगता है. उसके लिए कामना करते हैं कि वह सफल होकर लौटे."
वह कहती हैं, "वहां से बहू तो पूरी तरह से समर्पित है. वह एक साल से वहां शुभांशु के साथ ही है. बहू इस समय भी वहीं पर है. शुभांशु के साथ सबसे ज्यादा सहयोग बहू का ही रहा है. अगर उसका सहयोग ना होता तो वह इतने बड़े मुकाम को नहीं छू पाता."
कैसा रहा शुभांशु का सफर?
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सफोर मिशन के लिए चुने गए इकलौते भारतीय हैं. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) और निजी कंपनी एग्जियोम स्पेस के संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के जरिये ये ख्वाब पूरा होगा. मिशन का नाम है एग्जियोम-4. यह एग्जियोम स्पेस का चौथा अंतरिक्ष मिशन है जिसके तहत इंडियन एयर फोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला आइएसएस यानी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक की यात्रा करेंगे.
साल 1985 में शुभांशु का जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ. उन्होंने मोंटेसरी स्कूल से शुरुआती शिक्षा हासिल की. साल 1999 के कारगिल युद्ध की वजह से उन्हें सेना में शामिल होने के लिए प्रेरणा मिली. स्कूल के बाद उनका चयन एनडीए यानी नेशनल डिफेंस अकादमी में हो गया. यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 2006 में वह भारतीय वायु सेना में शामिल हुए. साल 2019 में इसरो ने उन्हें गगनयान मिशन के लिए चुना क्योंकि उनके पास 2000 घंटे की उड़ान का अनुभव है.
बेटे की उपलब्धि पर गर्व कर रही मां का कहना है कि बचपन में उनके बेटे का रुझान ना तो एयर फोर्स की तरफ था और ना ही एस्ट्रोनॉट के तौर पर अंतरिक्ष विज्ञान की तरफ. वह बताती हैं, "बचपन में कभी कोई ऐसी बात ही नहीं हुई थी कि उसे एयर फोर्स या स्पेस में जाना है या एस्ट्रोनॉट बनना है. अचानक एनडीए में इसका सेलेक्शन हुआ और उसके बाद यह एयर फोर्स में टेस्ट पायलट बन गया. उसके बाद से इनका सेलेक्शन इसरो में हो गया. इनका सफर एक तरह से निर्बाध तरीके से आगे बढ़ता गया."
अब कुछ दिन दूर है ऐतिहासिक उड़ान
24 मई से क्वारंटाइन में मौजूद शुभांशु शुक्ला आठ जून को अमेरिका के केनेडी स्पेस सेंटर से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए रवाना होंगे. इसके साथ ही वह नासा और इसरो के संयुक्त मिशन में भाग लेने वाले पहले भारतीय बन जाएंगे. इस मिशन के दौरान दूसरे एस्ट्रोनॉट्स की तरह शुभांशु को भी अंतरिक्ष में मानव जीवन की स्थिरता के अध्ययन का मौका मिलेगा. इस मिशन के दौरान इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जीरो ग्रेविटी में शैवाल प्रजाति के जीवों के पनपने का अध्ययन भी किया जाएगा.
इन प्रयोग के जरिये ये पता लगाने की दरअसल कोशिश होगी कि अंतरिक्ष में इस प्रजाति का जैविक विकास धरती के मुकाबले कितना अलग होता है. यह मिशन भारत के साथ पोलैंड और हंगरी के लिए भी खास है क्योंकि यह देश 40 साल बाद फिर से अंतरिक्ष यात्रा में भाग ले रहे हैं. एक्जियोम मिशन-4 भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक बड़ा कदम साबित होगा. कैप्टन शुभांशु शुक्ला के नेतृत्व में यह मिशन ना सिर्फ भारत की वैज्ञानिक क्षमता को दिखाएगा, बल्कि गगनयान जैसे भविष्य के मिशन के लिए रास्ता भी तैयार करेगा क्योंकि शुभांशु गगनयान का भी अहम हिस्सा हैं.