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मुंडका अग्निकांड में मसीहा बनकर उभरे ये लोग, जानिए कैसे बचाई जिंदगियां

मुंडका में एक बिल्डिंग में आग लगने से 27 लोगों की मौत हो गई. जिस समय यह हादसा हुआ उस समय बिल्डिंग में 150 से ज्यादा लोग काम कर रहे थे. उन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाई.

मुंडका अग्निकांड मुंडका अग्निकांड
हाइलाइट्स
  • मुंडका अग्निकांड में 27 लोगों की हुई मौत

  • बिल्डिंग में 150 से ज्यादा लोग कर रहे थे काम

दिल्ली के मुंडका में शुक्रवार को एक बिल्डिंग में आग लगने से 27 लोगों की असमय मौत हो गई. जिस समय यह हादसा हुआ उस समय बिल्डिंग में 150 से ज्यादा लोग काम कर रहे थे. उन्हीं 150 में से कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने साहस, सूझबूझ और सतर्कता दिखाते हुए अपनी जान तो बचाई ही साथ ही साथ दूसरों की जानें भी बचाई. जीएनटी ने उन लोगों से बातचीत की जो इस पूरे हादसे के दौरान मौके पर मौजूद थे. तो चलिए जानते हैं उन्हीं से उन्हीं की जुबानी कि कैसे इस दिल दहला देने वाले हादसे में उन्होंने जिंदगियां बचाई.

 

ममता देवी

52 वर्षीय ममता देवी ने बचाई 6 बच्चियों की जिंदगी

पति विकलांग, घर में कमाने वाली इकलौती सदस्य, फिर भी अपने से पहले 6 बच्चियों की जिंदगी बचाई फिर खुद तीसरी मंजिल से नीचे कूद गई. यह कहानी है 52 वर्षीय ममता देवी की. ममता पिछले 8 दिनों से ही फैक्ट्री में काम कर रही थी. उनके पति विकलांग हैं इसीलिए वे चल फिर नहीं सकते, घर में दो बच्चे हैं और कमाने वाली वह इकलौती हैं. ममता ने बताया कि जब आग लगी तब चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था. लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे. कमरे में अचानक गर्मी इतनी बढ़ गई कि कुछ लोग बेहोश हो गए. लेकिन जैसे ही शीशा टूटा जेसीबी यानी क्रेन मशीन उस खिड़की के समीप आई. ममता ने खुद अपनी जान बचाने से पहले छोटी बच्चियों की जान बचाना जरूरी समझा. ममता ने बताया कि उन्होंने लगे रस्सी से पहले उन लड़कियों को उतारा. सुनिश्चित किया कि उनके आगे-पीछे कोई और बच्चियां महिला नहीं है और उसके बाद फिर खुद उतरने का निर्णय लिया. इसी बीच वह खुद जख्मी हो गई. उनके हाथ और पैर में गहरी चोटें आई है. उनका कहना है कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने केवल अपने परिवार को ध्यान में रखते हुए साहस दिखाया और नीचे छलांग लगा दी.

अविनाश

पहले सबको नीचे उतारा फिर खुद उतरे

27 साल के अविनाश पिछले 1 साल से फैक्ट्री में काम कर रहे हैं. अविनाश ने बताया कि दूसरी मंजिल पर मीटिंग चल रही थी जिसमें करीब 70 से 80 लोग शामिल थे. फिर अचानक कमरे में गर्मी बढ़ने लगी. एक कर्मचारी नीचे का दरवाजा खोलते हुए ऊपर आया और ऊपर आते ही बेहोश हो गया. पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती गई वैसे-वैसे चारों ओर धुआं ही धुंआ होता गया. ऐसे में अविनाश और उसके साथियों ने उस कांच को तोड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार प्रयास असफल रहा. अविनाश ने बताया कि लगभग आधे घंटे की मशक्कत के बाद सभी कुर्सियों पर टेबल दूसरी नुकीली चीज़ों से कांच को तोड़ने की कोशिश की. कड़ी मेहनत के बाद कांच टूटा और उन्होंने मुझे फंसी हुई महिलाओं को आगे निकालकर क्रेन के जरिए नीचे उतारने में मदद की. अविनाश ने बताया कि सभी महिलाएं उनसे बार-बार गुजारिश कर रही थी कि उनके बच्चे उनका घर पर इंतजार कर रहे हैं. वे कमाने वाली इकलौती सदस्य हैं इन सब चीजों को सुनकर अविनाश ने पहले उन महिलाओं को नीचे उतारा और उनकी जान बचाई. अविनाश ने बताया कि जब यह हादसा हो रहा था अब चारों ओर हाहाकार जैसी स्थिति पैदा हो गई थी. ऐसे में उनके दिमाग में बस एक ही ख्याल था कि कैसे भी करके बहुत जल्द से जल्द उन सभी फंसे हुए महिलाओं और बच्चों को बचा पाए.

विनीत कुमार

एक दर्जन से भी ज्यादा लोगों की बचाई जान 

विनीत कुमार ने बताया कि उस कंपनी के अंदर का मंजर दिल दहला देने वाला था. जमीन पर लोग बेहोश होकर गिर रहे थे और कुछ लोग उनके ऊपर से चलकर जान बचाकर आगे की ओर भाग रहे थे. मेरे लिए कोशिश थी कि जो लोग नीचे गिरे हुए हैं या फिर जो बेहोश अवस्था में है उन्हें होश में लाकर उनकी जान जल्द से जल्द बचाई जाए. मैंने और मेरे बाकी साथियों ने मिलकर लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा लोगों की जान बचाई. मेरे मन में ख्याल आया कि मैं खुद उतर जाऊं लेकिन उन लोगों की चीख पुकार सुनकर मुझसे रहा नहीं गया. वहां चारों और सिर्फ धुंआ ही धुआं था, और ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी कोयले की भट्टी में खड़े हैं. आग की लपटें कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.