
जब बात भारतीय कला, संस्कृति और शिक्षा में अद्वितीय योगदान की होती है, तो पद्मश्री डॉ. श्यामबिहारी अग्रवाल का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है. प्रयागराज के सिरसा गांव में 1 सितंबर 1942 को जन्मे डॉ. अग्रवाल ने न केवल भारतीय चित्रकला की परंपराओं को जीवंत बनाए रखा, बल्कि उसमें आधुनिक कलात्मक दृष्टिकोण भी समाहित किया. उनकी यात्रा एक कलाकार, शिक्षाविद और कला इतिहासकार के रूप में बेहद प्रेरणादायक रही है.
भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए डॉ. अग्रवाल की सराहना केवल कला क्षेत्र तक सीमित नहीं रही. उनकी कला और योगदान की गूंज देश के सर्वोच्च स्तर तक पहुंची. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं डॉ. अग्रवाल के उल्लेखनीय कार्यों का जिक्र अपने संबोधन में किया, यह दर्शाता है कि जब समर्पण, साधना और संस्कृति एक साथ मिलते हैं, तो वह राष्ट्र की प्रेरणा बन जाते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,
"हमारे देश में ऐसे कई सपूत हैं, जिन्होंने चुपचाप देश की सांस्कृतिक जड़ों को सींचा है. डॉ. श्यामबिहारी अग्रवाल जैसे विभूतियों ने न केवल हमारी कला को जीवित रखा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया है."
कला, शिक्षा और साधना का संगम
डॉ. अग्रवाल का योगदान बहुआयामी रहा है. भारतीय चित्रकला की बसोहली, मेवाड़, कांगड़ा और बंगाल स्कूल जैसी लुप्तप्राय शैलियों को उन्होंने संरक्षित किया और उसमें नवीनता का समावेश किया. उन्होंने कोलकाता के राजकीय कला महाविद्यालय में क्षितिन्द्र नाथ मजूमदार जैसे महान चित्रकार के सान्निध्य में गहन अध्ययन कर भारतीय लघु चित्रकला, भित्तिचित्र और फ्रेस्को जैसी विधाओं में विशिष्टता प्राप्त की.
उनकी कृति ‘वेणी गुंठन’ को 1965 में ‘इदु रक्षित पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया, जो भारतीय चित्रकला की गरिमा को प्रमाणित करता है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दृश्य कला विभाग में उन्होंने प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए हजारों छात्रों का मार्गदर्शन किया.
एक संस्थान नहीं, एक आंदोलन
डॉ. अग्रवाल ने प्रयागराज में रूप शिल्प ललित कला संस्थान की स्थापना की, जहां कला को केवल सीखा नहीं जाता, बल्कि जिया जाता है. उन्होंने 'रूपलेखा' और 'कला दर्पण' जैसी प्रमुख कला पत्रिकाओं का संपादन कर कला विमर्श को जन-जन तक पहुंचाया.
उनके लेखन में 'भारतीय चित्रकला और काव्य', 'भारतीय चित्रकला का इतिहास' और 'आकृति चित्रण और रचना' जैसी पुस्तकें शामिल हैं, जो शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए अमूल्य धरोहर हैं.
सम्मान और राष्ट्रीय गौरव
डॉ. अग्रवाल की कला को ना सिर्फ भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया. उनकी पेंटिंग्स इलाहाबाद संग्रहालय से लेकर कुमाऊं रेजिमेंट ऑफिसर्स मेस और कई अंतरराष्ट्रीय निजी संग्रहों की शान बनीं. उन्हें राष्ट्रीय मानवता पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय सम्मानों से नवाजा गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके कार्यों का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि सच्ची साधना कभी अनदेखी नहीं जाती. पद्मश्री डॉ. श्यामबिहारी अग्रवाल केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के एक जीवंत दस्तावेज हैं, जिन्होंने न केवल कला को जिया, बल्कि अगली पीढ़ियों के लिए एक दिशा भी तय की.
-आनंद राज की रिपोर्ट