
केरल में हाल ही में एक उपभोक्ता अदालत ने दक्षिण रेलवे (Southern Railway) को करारा झटका दिया है. अदालत ने 5 यात्रियों को ₹10,000-₹10,000 यानी कुल ₹50,000 मुआवजा देने का आदेश दिया है, क्योंकि रेलवे की एक घंटे की देरी ने यात्रियों को उनके कनेक्टिंग ट्रेन से वंचित कर दिया और उन्हें बस से यात्रा करनी पड़ी. यात्रियों ने इस देरी को न सिर्फ आर्थिक नुकसान बताया, बल्कि मानसिक पीड़ा भी झेली.
ये मामला सिर्फ ₹10,000 के मुआवज़े का नहीं है, ये सवाल है- क्या हम आम नागरिक अपने समय और अधिकारों के लिए भी लड़ सकते हैं? और इस केस ने साबित कर दिया कि हां, हम लड़ सकते हैं... और जीत भी सकते हैं.
आस्था की यात्रा में बाधा बनी रेलवे की लेटलतीफी
यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब पांच श्रद्धालुओं ने त्रिवेंद्रम सेंट्रल रेलवे स्टेशन से मावेली एक्सप्रेस में यात्रा शुरू की थी. उनका उद्देश्य था- कर्नाटक के प्रसिद्ध कोल्लूर मूकांबिका मंदिर की यात्रा. इसके लिए उन्होंने एक प्लानिंग के तहत मावेली एक्सप्रेस से मैंगलोर सेंट्रल तक और वहां से मैंगलोर-कारवार एक्सप्रेस से मूकांबिका रोड स्टेशन तक की यात्रा के लिए टिकट बुक किया.
समस्या तब शुरू हुई जब मावेली एक्सप्रेस तय समय पर नहीं पहुंची. ट्रेन को मैंगलोर सेंट्रल पहुंचने में करीब एक घंटा अधिक लग गया. और जब तक ट्रेन स्टेशन पर पहुंची, तब तक यात्रियों की अगली ट्रेन- मैंगलोर-कारवार एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म छोड़ चुकी थी.
ट्रेन गई तो श्रद्धालुओं ने बस पकड़ी, और फिर कोर्ट का रास्ता
श्रद्धालु अब असहाय थे. उन्हें मजबूरी में बस पकड़नी पड़ी, जिससे न केवल उनका समय गया, बल्कि मानसिक रूप से भी वे परेशान हो गए. उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतनी योजनाबद्ध यात्रा भी रेलवे की लापरवाही से बिगड़ सकती है.
इसके बाद पांचों यात्रियों ने थिरुवनंतपुरम जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने दक्षिण रेलवे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि उन्हें मानसिक पीड़ा हुई है और इसका जिम्मेदार रेलवे है.
रेलवे का बचाव, लेकिन अदालत का करारा जवाब
रेलवे की ओर से बचाव में यह कहा गया कि मैंगलोर-कारवार एक्सप्रेस कोई "ऑफिशियल कनेक्टिंग ट्रेन" नहीं थी. लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया. आयोग के अध्यक्ष पी वी जयराजन और सदस्यों प्रीथा जी. नायर और विजू वी.आर. ने पाया कि यात्रियों को त्रिवेंद्रम से मूकांबिका रोड तक की यात्रा के लिए टिकट जारी किया गया था, जिससे यह साबित होता है कि रेलवे खुद इस यात्रा को कनेक्टेड मान रहा था.
अदालत ने रेलवे से यह भी पूछा कि देरी की वजह क्या थी, लेकिन रेलवे ऐसा कोई प्रमाण नहीं दे पाया जिससे यह साबित हो सके कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर थी.
अदालत का आदेश
अदालत ने अपने आदेश में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "अगर सार्वजनिक परिवहन को निजी क्षेत्र से मुकाबला करना है, तो उसे अपने कामकाज और संस्कृति में सुधार करना होगा. नागरिकों को अधिकारियों की दया पर निर्भर नहीं रहना चाहिए."
यह कहते हुए आयोग ने आदेश दिया कि दक्षिण रेलवे प्रत्येक यात्री को ₹10,000 और कुल ₹2,500 मुकदमा खर्च के तौर पर दे.