
झारखंड मुक्ति मोर्चा के फाउंडर और संरक्षक राज्य के पूर्व सीएम समेत तीन बार केंद्रीय मंत्री शिबू सोरेन के निधन से शोक की लहर है. राज्य अलग करने के लिए और महाजनों के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने के लिए शिबू सोरेन कैसे आम लोगों को उनके अधिकार के लिए एकजुट करते थे? ये बयान करते पार्टी के विधायक और नेता नहीं थक रहे है.
एक मुट्ठी चावल और एक रुपए-
विधायक भूषण तिर्की ने बताया कि जमीन पर जाकर लोगों को एकजुट करने के लिए गुरुजी एक मुट्ठी चावल और एक रुपया इकट्ठा करने के टास्क दिए थे. उद्देश्य साफ है लोगों से जुड़ना और लोगों को बताना कि अलग राज्य का संघर्ष उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए छेड़ा गया है. उन्हें उनका अधिकार तभी मिलेगा, जब वो भी आंदोलन से जुड़ेंगे.
रात में चलाते थे स्कूल-
गुरुजी की पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि शिबू सोरन इस लिए कहे जाते थे कि 1957 में ही अपने पिता की हत्या के बाद सामाजिक सरोकार से जुड़कर लोगों को दिशा दिखाना उनका फितरत बन गया था. नेल्सन मंडेला से शिबू सोरेन की तुलना करते हुए भट्टाचार्य ने कहा कि जिस तरह की चुनौतियां गुरुजी के समाने थी, शायद वैसा मंडेला के सामने भी नहीं था.
गरीब तो आदिवासी थे ही, शाम होते ही नशा में मस्त हो जाते थे. नशा उन्मूलन के खिलाफ उन्होंने मुहिम शुरु की. साथ ही शिक्षित बनने और साक्षर बनने का अभियान भी चलाया. जब शिक्षा की अलख जलेगी, तभी समाज अपने अधिकार के लिए संघर्ष करेगा. ये गुरुजी का मानना था. लिहाजा रात को ये स्कूल चलवाते थे.
जेएमएम के नेता मानते है कि जो चिंगारी जेएमएम की स्थापना 2 फरवरी 1973 में करके गुरुजी ने जलाई और तीन चार लोगों के साथ संघर्ष की यात्रा शुरू की. उस लौ को पार्टी के नेता कार्यकर्ता जलाए रखेंगे और उनके दिखाए मार्ग पर चलते रहेंगे. पार्टी की नींव शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, एके राय समेत कुछ अन्य नेताओं ने रखी थी. लेकिन लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया.
81 साल की उम्र में ली आखिरी सांस-
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन हो गया है. उनका निधन दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ है. शिबू सोरेन बीते जून से किडनी की समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती थे.
(सत्यजीत कुमार की रिपोर्ट)
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