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Supreme Court की बड़ी टिप्पणी! मैरिज सर्टिफिकेट ही काफी नहीं… सभी रीति-रिवाज करने होंगे पूरे, जानें किन रस्मों के बगैर अधूरा है शादी का बंधन

जजों ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह पति-पत्नी के बीच समानता, गरिमा और आपसी सहमति का प्रतीक है. इससे सामुदायिक एकता को बढ़ावा मिलता है. ऐसे में हिंदू विवाह अधिनियम में बताई गई रस्मों को निभाना जरूरी है.

Hindu Marriage (Photo Credit: Apoorva Singh) Hindu Marriage (Photo Credit: Apoorva Singh)
हाइलाइट्स
  • शादी के लिए कई रस्में होती हैं जरूरी

  • SC ने की अहम टिप्पणी

हिन्दू धर्म में शादी सबसे पवित्र बंधन माना जाता है. हालांकि, इस बंधन से जुड़े कई रीति-रिवाज और रस्में ऐसी होती हैं जिनके बिना ये अधूरा है. अब इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक शादी को वैध बनाने के लिए लिए केवल मैरिज सर्टिफिकेट ही काफी नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी सारी रस्में भी उतनी ही जरूरी हैं. 

हिंदू विवाह एक पवित्र बंधन 

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि हिंदू विवाह एक पवित्र महत्व रखता है. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक वैध समारोह के बिना इसे कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जा सकती है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने दो कमर्शियल पायलटों से जुड़े एक मामले के जवाब में ये टिप्पणी की है. इन दो पायलटों ने हिंदू विवाह समारोह नहीं करने के बावजूद तलाक की डिक्री की मांग की थी. 

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हिंदू विवाह अधिनियम में बताई गई हैं रस्में 

शादी की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह केवल उत्सव या लेन-देन नहीं है. बल्कि, यह एक पवित्र बंधन है. शादी दो व्यक्तियों के बीच जिंदगी भर चलने वाला एक बंधन बनाती है, जो भारतीय समाज के अंदर एक पारिवारिक इकाई का आधार बनती है.

जजों ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह पति-पत्नी के बीच समानता, गरिमा और आपसी सहमति का प्रतीक है. इससे सामुदायिक एकता को बढ़ावा मिलता है. उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम में बताई गई जरूरी रस्मों के बारे में भी बात की. 

निर्धारित संस्कारों और समारोह का होना जरूरी

कोर्ट के अनुसार, एक हिंदू विवाह को निर्धारित संस्कारों और समारोहों का पालन करना चाहिए, जैसे 'सप्तपदी' की रस्म या दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेना. इनके बगैर विवाह को हिंदू कानून के तहत वैध नहीं माना जा सकता है.

इसके अलावा, अदालत ने मैरिज रजिस्ट्रेशन के महत्व के बारे भी बात की. कोर्ट ने कहा हालांकि यह एक प्रूफ होता कि दो लोगों के बीच शादी हो गई है, लेकिन इन ये संस्कार या समारोह नहीं किए गए हैं तो इस शादी को वैध नहीं माना जाएगा.

कौन से नियम हैं शादी के लिए जरूरी

हिंदू विवाह में कई महत्वपूर्ण समारोह शामिल होते हैं. जिनके बिना ये अधूरी है-

1. होम: इस समारोह में हवन कुंड में पवित्र अग्नि जलाना शामिल है, जो पवित्रता का प्रतीक है. पुजारी अग्नि देवता की पूजा करने और विवाह को पवित्र करने के लिए मंत्रों का पाठ करता है.

2. कन्यादान: इस अनुष्ठान के दौरान, दुल्हन के पिता या अभिभावक प्रतीकात्मक रूप से दूल्हे को दुल्हन का उपहार देते हैं, और उसे उसकी देखभाल और सपोर्ट करने की जिम्मेदारी सौंपते हैं.

3. पाणिग्रहण: कन्यादान अनुष्ठान के बाद, दूल्हा दुल्हन का हाथ पकड़ता है, जो उनके मिलन और उनकी वैवाहिक जीवन में जिम्मेदारियों को साझा करने का प्रतीक है.

4. सप्तपदी: इसे "सात फेरों" के रूप में भी जाना जाता है, यह अनुष्ठान हिंदू विवाह का सबसे जरूरी पहलू है. दूल्हा और दुल्हन पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं. हर फेरे के साथ एक गंभीर प्रतिज्ञा लेनी होती है, जो दोनों के मिलन और साझा जिम्मेदारियों का प्रतीक है.

सात फेरे हैं जरूरी 

बता दें, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7(2) के अनुसार, अगर शादी समारोह में सप्तपदी अनुष्ठान शामिल है, तो पवित्र अग्नि के चारों ओर सातवां फेरा पूरा होने पर इसे पूरा और वैध माना जाता है. 

आखिर में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अलग हुए कपल को जारी किए गए मैरिज सर्टिफिकेट को अमान्य घोषित कर दिया. कोर्ट के अनुसार, यह हिंदू विवाह को पूरा करने वाले कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं करता है.