
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam) में हुए आतंकी हमले (Terror Attack) के बाद मोदी सरकार (Modi government) पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ आर-पार के मूड में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने पहलगाम हमले के दोषियों और उसके आकाओं को मिट्टी में मिलाने की कसम खाई है. भारत की तैयारियों को देख पाकिस्तान डरा हुआ है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 7 मई 2025 को पूरे देश में सिविल डिफेंस ड्रिल (नागरिक सुरक्षा अभ्यास) आयोजित करने के निर्देश दिए हैं. इस ड्रिल के दौरान युद्ध वाला सायरन बजेगा. ब्लैकआउट की तैयारियां देखी जाएंगी. 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग के बाद यह पहली बार है कि भारत सरकार ने ऐसा मॉक ड्रिल करने का आदेश दिया है. आइए जानते हैं आखिर जंग वाला सायरन क्या होता है, इसे कहां लगाया जाता है और इसकी आवाज कितनी दूर तक सुनाई देती है?
क्या होता है युद्ध वाला सायरन
युद्ध वाला सायरन एक तेज आवाज वाला वॉर्निंग सिस्टम होता है. इसमें दो खास तरह की ध्वनि सिंगल टोन और वेविंग टोन होती है. यह युद्ध, एयर स्ट्राइक या आपदा (तूफान, भूंकप और बवंडर) जैसी आपात स्थिति की सूचना देता है. सिंगल टोन में लगातार एक जैसी आवाज निकलती है जबकि वेविंग टोन की ध्वनि में उतार-चढ़ाव होता है. वेविंग टोन धीरे-धीरे ध्वनि तेज होती है, फिर घटती है और ये क्रम कुछ मिनटों तक चलता है. सिंगल टोन का इस्तेमाल प्राकृतिक आपदा के लिए किया जाता है जबकि वेविंग टोन वाला सायरन युद्ध को दौरान या एयरस्ट्राइक से अलर्ट करने में बजाया जाता है.
वेविंग टोन बजने पर तुरंत सुरक्षित ठिकाने पर जाएं
सायरन और ब्लैकआउट प्रोटोकॉल सिविल डिफेंस प्रोटोकॉल का हिस्सा है. युद्ध के हालात में जब वेविंग टोन वाला सायरन बजता है तो उसका मतलब है कि खतरा सिर पर है और तुरंत अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकाने पर जाएं. जंग वाले सायरन की आवाज बहुत तेज होती है. यह 2 से लेकर 5 किलोमीटर तक सुनाई दे सकती है. सायरन के साथ-साथ रेडियो, टीवी, एसएमएस या मोबाइल ऐप के जरिए भी अलर्ट भेजे जाते हैं, जिनमें बताया जाता है कि खतरा कितना है, कहां जाना है और कितनी देर छिपे रहना है.
कहां लगाया जाता है युद्ध वाला सायरन
युद्ध वाला सायरन आमतौर पर सड़कों के किनारे और ऊंचे खम्भों, प्रशासनिक भवनों, पुलिस मुख्यालय, फायर स्टेशन, सैन्य ठिकानों और शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों में ऊंचाई पर लगाए जाते हैं. इसका मकसद होता है कि सायरन की आवाज ज्यादा से ज्यादा दूर तक पहुंचे. असली युद्ध जैसे हालात में पहले सायरन से लेकर 5 से 10 मिनट के अंदर सुरक्षित स्थान तक पहुंचना होता है.
यही कारण है कि मॉक ड्रिल की मदद से लोगों को सिखाया जाता है कि कैसे जल्दी और शांतिपूर्वक बाहर निकलें. मॉक ड्रिल के दौरान युद्ध के माहौल में डर और अफरा-तफरी से बचाने के लिए लोगों को मानसिक रूप से तैयार किया जाता है, ताकि वे घबराए नहीं और जरूरी निर्देशों का पालन करें. युद्ध के समय ब्लैकआउट प्रोटोकॉल के तहत सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं ताकि दुश्मन के ड्रोन या हवाई जहाज रात में शहरों को आसानी से निशाना न बना सकें.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने किस तरह के मॉक ड्रिल कराने के दिए हैं निर्देश
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से राज्यों को भेजे गए निर्देश में जो मॉक ड्रिल करने के निर्देश दिए गए हैं, इसमें हवाई हमले के वक्त नागरिकों को चेतावनी देने वाले सायरन बजाना, दुश्मन देश के हमले की स्थिति में खुद को बचाने के लिए और सुरक्षा के मानक अपनाने के लिए नागरिकों, छात्रों आदि को प्रशिक्षण देना, हमले की स्थिति में कैसे बचें, उसके उपायों के बारे में लोगों को बताना और प्रशिक्षण देना, महत्वपूर्ण संयंत्रों/प्रतिष्ठानों को युद्ध के समय में हमले से बचाने और संरक्षित करने की कोशिश करना और उसके लिए ट्रेनिंग देना, हमले के समय निकासी योजना को लागू करने और उसका पूर्वाभ्यास करना शामिल है.