
जम्मू-कश्मीर में आज यानी 6 जून को पीएम मोदी चिनाब नदी पर बने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे आर्च ब्रिज का उद्घाटन करेंगे. यह ब्रिज 272 किलोमीटर लंबे ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है, जो पाकिस्तान के एलओसी और चीन के एलएसी तक पहुंचने का समय 5 गुना कम कर देगा. इस ब्रिज को 2 हजार वर्कर और 300 इंजीनियरों ने स्वदेशी स्टील से बनाया है. ये ब्रिज ब्लास्ट प्रूफ है, ये 40 टन टीएनटी विस्फोट भी झेल लेगा.
16 घंटे का सफर 3 घंटे में-
चिनाब नदी पर बने दुनिया के इस सबसे ऊंचे ब्रिज से दोनों सहरदों के बीच सैनिकों पहुंचाने में काफी कम समय लगेगा. इसमें पहले 16 घंटे का वक्त लगता था, लेकिन इस ब्रिज के बनने से ये समय सिर्फ 3 घंटे रह जाएगा. ऐसे में अगर दोनों मोर्चों पर जंग होती है तो इस ब्रिज की मदद से सैनिकों की आवाजाही आसान हो जाएगी. पुल के साथ 215 किलोमीटर की अप्रोच रोड बनाई गई है. इससे दोनों सरहदों के 70 गांवों तक सड़क संपर्क कायम हो गया है.
40 टन TNT विस्फोट झेल लेगा ये ब्लास्ट फ्रूफ पूल-
एलओसी से 60 किलोमीटर दूर इस ब्रिज पर आतंकी साया मंडराता रहेगा. इसलिए इसको ब्लास्ट प्रूफ बनाया गया है. डीआरडीओ की एक तकनीक की मदद से यह पुल बनाया गया है. यह 40 टन टीएनटी विस्फोट को भी झेल सकता है.
एफिल टॉवर से ऊंचा है ब्रिज-
यह ब्रिज नदी तल से 359 मीटर ऊंपर है और 1.3 किलोमीटर लंबा है. यह पेरिस के एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचा है. इस ब्रिज का मुख्य आर्च 467 मीटर लंबा है. यह कटरा बनिहाल तक के 111 किलोमीटर लंबे रूट का हिस्सा है.
300 इंजीनियर्स ने स्वदेशी स्टील से बनाया-
इस ब्रिज को बनाने में 2 हजार वर्कर्स और 300 इंजीनियर्स ने योगदान दिया. इन लोगों ने इस ब्रिज को स्वदेशी स्टील से बनाया है. इसको बनाने में 10 साल का वक्त लगा है. इसको बनाने में 29 हजार टन स्टील लगा है. इस ब्रिज से राज्य के दुर्गम और बर्फबारी के कारण दुरूह माने जाने वाले इलाकों में 24 घंटे आवागमन होगा. इससे सैन्य के अलावा औद्योगिक और कृषि उत्पादों के निर्बाध परिवहन का रास्ता साफ होगा.
इसको बनाने में खास केबल क्रेन सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है. इसे भारतीय रेलवे ने पहली बार इस्तेमाल किया है. इस ब्रिज को 266 किमी प्रति घंटे की तेज हवाओं और भूकंप जैसी प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया है.
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