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One China Policy को लेकर क्या है India की रणनीति, जानिए Taiwan के साथ कैसे हैं हमारे रिश्ते

चीन और ताइवान के साथ संबंधों के लेकर भारत हमेशा से सजग रहा है. भारत ने चीन की वन चाइना पॉलिसी को कभी भी औपचारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है. लेकिन ताइवान के साथ भी कोई औपचारिक राजनयिक रिश्ता नहीं रखा है. हालांकि ताइवान के साथ अब संबंधों को मजबूत करने की दिशा में काम किया जा रहा है.

नरेंद्र मोदी, त्साई इंग वेन औ शी जिनपिंग नरेंद्र मोदी, त्साई इंग वेन औ शी जिनपिंग
हाइलाइट्स
  • भारत ने वन चाइना पॉलिसी का औपचारिक समर्थन नहीं किया

  • ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं

अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान दौरे पर हैं. नैंसी ने साफ कर दिया कि अमेरिका सुरक्षा के मुद्दे पर ताइवान के साथ खड़ा है. नैंसी पेलोसी के दौरे से चीन खफा है और बार-बार धमकी दे रहा है. चीन ने ताइवान से खट्टे फल और मछली के उत्पाद के आयात को सस्पेंड कर दिया है. नैंसी के ताइवान दौरे और चीन की प्रतिक्रिया पर भारत नजर बनाए हुए है. हालांकि भारत की तरफ से अब तक कोई बयान नहीं आया है.
भारत का ताइवान के साथ कोई भी औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है. दरअसल भारत वन चाइना पॉलिसी का पालन करता है. लेकिन इसके बावजूद भारत ने कभी भी औपचारिक तौर पर वन चाइना पॉलिसी का समर्थन नहीं किया है. दिसंबर 2010 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत दौरे पर आए थे. उस दौरान भी संयुक्ति विज्ञप्ति में भारत ने वन चाइना पॉलिसी के समर्थन का जिक्र नहीं किया था. हालांकि साल 2014 में बीजेपी सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ताइवान के राजदूत चुंग क्वांग टीएन को बुलाया था.

ताइवान के साथ कैसा रहा है संबंध-
राजनयिक कामों के लिए ताइपे में भारत ने एक ऑफिस खोला है. भारत-ताइपे एसोसिएशन की अगुवाई एक सीनियर डिप्लोमैट करते हैं. ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC) है. इन दोनों की स्थापना साल 1995 में हुई थी. इस दौरान भारत और ताइवान के संबंध वाणिज्य, संस्कृति और शिक्षा पर केंद्रित रहा है. चीन की संवेदनशीलता की वजह से भारत ने ताइवान के साथ संबंध को हमेशा लो-प्रोफाइल रखा है. डोकलाम विवाद के बाद साल 2017 से संसदीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा और विधायी स्तर की बातचीत को भी बंद कर दिया गया है.

ताइवान के साथ बदल रहा रिश्ता-
भारत की तरफ से हाल के कुछ वर्षों में ताइवान के साथ संबंध को बेहतर करने की कोशिश की गई है. इस दौरान ताइवान और भारत के साथ चीन के संबंध बेहद तनावपूर्ण रहे हैं. जब साल 2020 में गलवान में चीन के साथ संघर्ष हुआ. तो उसके बाद से भारत ताइवान को लेकर एक्टिव हो गया. भारत ने ताइपे में गौरांगलाल दास को अपना दूत बनाया. उस वक्त गौरंगलाल अमेरिका में ज्वाइंट सेक्रेटरी थे. इसके बाद भारत सरकार ने ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन के शपथ ग्रहण समारोह में अपने दो सांसदों को वर्चुअली शामिल होने को कहा.
अगस्त 2020 में ताइवान के पूर्व राष्ट्रपति ली टेंग-हुई का निधन हुआ तो भारत ने उनको मिस्टर डेमोक्रेसी कहा. इसे चीन के लिए भारत के एक संदेश के तौर पर देखा गया. हालांकि भारत इसको लेकर हमेशा से सावधान रहा है कि ताइवान पर कोई राजनीतिक बयान ना दे.
ली टेंग-हुई के शासनकाल में साल 1995 में भारत ने आईटीए की स्थापना की थी. साल 1996 में ली को दोबारा राष्ट्रपति चुना गया. इस दौरान ली ने ऐसे कई कानूनों से छुटकारा पाया, जो लोकतंत्र के विकास में बाधा बन रहे थे. पहली बार ताइवान में लोगों को राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट डालने की इजाजत मिली.

ताइवान के साथ क्या है भविष्य-
ताइपे में ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन की विजिंग फेलो सना हाशमी ने सिंगापुर के नेशनल यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के लिए इस साल मई में एक पेपर लिखा था. जिसमें उन्होंने बताया था कि भारत और ताइवान संबंधों में किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव पर चीन की कड़ी प्रतिक्रिया की आशंका रहती है. यह बताता है कि ताइवान के साथ भारत की पहुंच धीमी क्यों है. फिलहाल भारत और चीन के संबंध सामान्य होने की दिशा में लौटने की संभावना नहीं दिख रही है. इसलिए भारत को ताइवान के साथ संबंधों को साहसिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ अपनाने पर विचार करना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि भारत और ताइवान का एक-दूसरे के साथ चलने के कई कारण हैं.
फिलहाल ताइवान की सरकार भारत के साथ सहयोग को बढ़ाना चाहती है. क्योंकि ताइवान की नई पॉलिसी दक्षिण की ओर देखने वाली है. जिसमें भारत सबसे प्राथमिकता वाला देश है. अब तक भारत और ताइवान के बीच आर्थिक और लोगों के बीच वाला संबंध रहा है. लेकिन चीन के साथ तनाव के बीच भारत और ताइवान अपने संबंधों को आगे बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं.

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