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सफेद धोती, माथे पर तिलक, नंगे पांव पद्मश्री लेने वाला यह ब्राजीलियाई गुरु कौन है? जोनास मसेटी की कहानी उड़ा देगी होश!

रियो डी जनेरियो में जन्मे जोनास मसेटी की जिंदगी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं. वह एक मैकेनिकल इंजीनियर थे, जिन्होंने ब्राजील की टॉप कंपनियों और स्टॉक मार्केट में काम किया. पैसे, दोस्त, पार्टियां- सब कुछ था, लेकिन फिर भी उनके दिल में एक खालीपन था.

Jonas Masetti Padma Shri Jonas Masetti Padma Shri

क्या आपने कभी सोचा कि ब्राजील का एक मैकेनिकल इंजीनियर भारत के सबसे प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार को सफेद धोती, माथे पर तिलक, और नंगे पांव स्वीकार करेगा? जी हां, जोनास मसेटी, जिन्हें आचार्य विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है, ने यही कारनामा कर दिखाया! 28 मई 2025 को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें यह सम्मान दिया, और वह दृश्य हर किसी के लिए हैरान करने वाला था. एक विदेशी, जो भारतीय संस्कृति को इतना आत्मसात कर ले कि वह वेदांत और भगवद् गीता का ज्ञान दुनिया भर में फैलाए, और भारत का गौरव बने! 

ब्राजील से भारत तक का सफर
रियो डी जनेरियो में जन्मे जोनास मसेटी की जिंदगी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं. वह एक मैकेनिकल इंजीनियर थे, जिन्होंने ब्राजील की टॉप कंपनियों और स्टॉक मार्केट में काम किया. पैसे, दोस्त, पार्टियां- सब कुछ था, लेकिन फिर भी उनके दिल में एक खालीपन था. जोनास ने ANI को बताया, “मैंने सब कुछ हासिल कर लिया था, जो पश्चिमी समाज में जरूरी माना जाता है, लेकिन मैं संतुष्ट नहीं था. मैं जीवन का असली अर्थ ढूंढ रहा था.” यह खोज उन्हें भारत ले आई, जहां तमिलनाडु के स्वामी दयानंद सरस्वती के आश्रम में उनकी जिंदगी बदल गई.

2004 में जोनास ने ब्राजील में रहने वाले एक भारतीय गुरु से वेदांत की पढ़ाई शुरू की. 2006 में वे ग्लोरिया एरियरा (2020 की पद्मश्री विजेता) के मार्गदर्शन में आए, और फिर अमेरिका में स्वामी दयानंद से मिले. 2009 में वे कोयंबटूर के आर्ष विद्या गुरुकुलम में 3 साल के लिए बस गए, जहां उन्होंने वेदांत, संस्कृत, और भगवद् गीता का गहन अध्ययन किया. इस दौरान वे पूरी तरह भारतीय संस्कृति में रम गए.

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ब्राजील में वेदों की गूंज
भारत में ज्ञान अर्जित करने के बाद जोनास ने फैसला किया कि वे ब्राजील लौटकर वेदों का संदेश फैलाएंगे. उन्होंने पेट्रोपोलिस (रियो डी जनेरियो के पास) की पहाड़ियों में विश्व विद्या गुरुकुलम की स्थापना की. 2014 में शुरू हुआ यह संस्थान आज वेदांत, भगवद् गीता, संस्कृत, मंत्र, और योग सिखाने का वैश्विक केंद्र है. जोनास ने तकनीक का सहारा लिया और फ्री ऑनलाइन कोर्स शुरू किए, जिनके जरिए 7 साल में 1.5 लाख से ज्यादा छात्रों तक वेदों का ज्ञान पहुंचा.

उनके संस्थान में वेदांत कैंप, ऑनलाइन क्लास, और पॉडकास्ट (वेदांत कास्ट) के जरिए हजारों लोग भारतीय दर्शन से जुड़ रहे हैं. जोनास ने पुर्तगाली और अंग्रेजी में योग और वेदांत पर किताबें लिखीं, और भगवद् गीता का पुर्तगाली अनुवाद भी किया, जो 2.5 साल की मेहनत का नतीजा था.

प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान
2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में जोनास की तारीफ की और उन्हें “वैदिक संस्कृति का राजदूत” बताया. 2024 में G20 समिट के दौरान ब्राजील में जोनास ने PM मोदी से मुलाकात की, जहां उनकी टीम ने संस्कृत में रामायण की झलकियां पेश कीं. मोदी ने ट्वीट किया, “जोनास ने ब्राजील में भारतीय संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.”

“यह मेरे लिए नहीं, पूरी परंपरा के लिए”
28 मई 2025 को जब जोनास मसेटी राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री लेने पहुंचे, तो वह दृश्य हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण था. सफेद धोती, माथे पर तिलक, गले में रुद्राक्ष, और नंगे पांव- जोनास किसी साधु जैसे दिख रहे थे. उन्होंने कहा, “मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी. यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि उन सभी का है, जो इस परंपरा को जीवित रखने के लिए मेहनत कर रहे हैं.”

जोनास का मानना है कि भारतीय युवा अपनी संस्कृति को कम आंकते हैं और पश्चिमी जीवनशैली के पीछे भागते हैं. उन्होंने ANI को कहा, “भारत में इतने गुरु हैं कि एक पश्चिमी व्यक्ति को यहां आकर पढ़ाने की जरूरत नहीं. लेकिन मैं देखता हूं कि युवा अपनी संस्कृति को महत्व नहीं दे रहे. पश्चिमी संस्कृति में सच्ची खुशी नहीं है.” उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे वेदांत और योग को अपनाएं, क्योंकि यही जीवन का असली मकसद बताता है.

जोनास मसेटी की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सनातन धर्म की वैश्विक पहुंच की कहानी है. ब्राजील जैसे देश में, जहां भारतीय संस्कृति अपरिचित थी, जोनास ने वेदों की रोशनी फैलाई.