
Grass Artist Abhishek chouhan
Grass Artist Abhishek chouhan भारत कला और शिल्प की भूमि है. यहां लगभग हर क्षेत्र में अपनी कला है, साथ ही उसका अपना पारंपरिक रूप है. इसमें चित्र, पेंटिंग, कढ़ाई, नक्काशी, साड़ी और बहुत कुछ शामिल है. हालांकि, इनमें से कई कलाएं ऐसी हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं. उन्हीं में से एक है हिस्टोरिकल ग्रास आर्ट (Historical Grass Art). लेकिन पंजाब के राजपुरा के रहने वाले अभिषेक चौहान इस कला को बचाने में अपना सबकुछ झोंक चुके हैं. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से लेकर लिम्का बुक और इंडिया बुक में अभिषेक का नाम दर्ज है. गिनीज बुक के मुताबिक वे दुनिया के पहले ब्लाइंड फोल्डेड ग्रास आर्टिस्ट है. प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्री, पंजाब के कई मुख्यमंत्री तक से अभिषेक कई बार सम्मानित हो चुके हैं. हालांकि, उनके मुताबिक, ये सफर अभी पूरा नहीं हुआ है. वे इस कला को घर-घर तक पहुंचाना चाहते हैं.
इस कला को लेकर GNT डिजिटल ने ग्रास आर्टिस्ट अभिषेक चौहान से बात की. उन्होंने हमें इस कला के बारे में बताया कि हम बहुत सारी जगह पर झोपड़ियां वगैरह देखते हैं, इंसान अपने घरों को तभी से सजाता था… तो उन्हीं को सजाने के लिए इस आर्ट फॉर्म का इस्तेमाल किया जाता था. ये कला उतनी ही पुरानी है जबसे इंसान ने बुनती (बुनना) करना सीखा है. हम इसी सूखी घास को बुनकर कलाकृतियों बनाते हैं. ये एक वीविंग (Weaving) आर्ट है.
आंखों पर पट्टी बांधकर क्यों?
आपको बता दें, अभिषेक कलाकृतियां आंखों पर पट्टी बांधकर बनाते हैं. इसे लेकर अभिषेक कहते हैं, “दरअसल, घास के तिनके मुझे मेरे शरीर का पार्ट लगते हैं. उनको लेकर मैं एकदम साफ रहता हूं, जब वो मेरे हाथों में होते हैं तो मुझे हर तिनके का हिसाब होता है कि किस तिनके को कितने एंगल पर घुमाना है और कहां मोड़ना है. साथ ही किसको किस तिनके से जोड़कर कोई शेप बनेगी ये मुझे अपने आप ही अंदर से समझ आ जाता है.”
आगे अभिषेक कहते हैं कि घास में एक छोटा-सा गुण होता है कि आप घास को काट सकते हो, जला सकते हो, या आप इसे मसल सकते हो.. लेकिन इसकी खासियत होती है कि ये फिर से उग आती है. बस हैं कलाकर भी इसी तरह होते हैं. इन कलाओं के अंदर हमारा भारत दिखता है. इनमें हमारी परम्पराएं दिखती हैं.

दादाजी के एक थप्पड़ से पहुंचा यहां तक..
आपको बताते चलें कि अभिषेक का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में, लिम्का बुक में, इंडिया बुक में दर्ज है. ये विरासत अभिषेक को 2015 में उनके दादाजी से मिली थी. उन्हें ये कला कैसे मिली इसके बारे में वे बताते हैं, "ये कला हमारे पूर्वज करीब 100-150 साल पहले करते थे. पीढ़ी-दर-पीढ़ी-पीढ़ी किसी एक इंसान को ये कला सौंपी जाने लगी. तो मेरे दादाजी जी को ये कला मिली और उनसे विरासत के तौर पर ये मेरे हिस्से आई. दादाजी मुझे राजपुरा में महादेव मंदिर है, तो वे मुझे वहां ले जाया करते थे. वहीं दादाजी मुझे इस कला को सिखाया करते थे. शुरुआत में बड़ी दिक्कतें आती थीं. मैं अक्सर गलतियां कर दिया करता था. इसमें इतनी बारीकी होती है कि अगर घास का तिनका कहीं टूट गया तो उससे आगे हम वो डिज़ाइन पूरा नहीं कर सकते हैं. तब दादाजी ने एक गलती पर मुझे थप्पड़ मारा था. उस थप्पड़ की वजह से ही आज मैं यहां तक पहुंचा हूं."
अभिषेक आगे कहते हैं, "घास बहुत नाजुक चीज होती है. जैसे ही हम उसे मोड़ते हैं वो टूट जाती है. इसके लिए किसी के भी हाथ में वो नजाकत होनी चाहिए कि अच्छे से कोई भी कलाकृति बना सकें. लेकिन अब इतने साल की प्रैक्टिस के बाद मैं आंखों पर पट्टी बांधकर भी आसानी से बना लेता हूं."

कैसा रहा है सफर?
अपने सफर के बाद में बताते हुए अभिषेक कहते हैं, "2016 में मैं अपनी फाइल बनाकर एक मंत्री जी के पास गया था तो उनका मेरे साथ बर्ताव बहुत खराब रहा. यहां तक कि उनके गनमैन वगैरह ने मुझे धक्के तक मारे. तो उसके बाद मैंने प्रार्थना की कि मैं इस कला को वायरल कर सकूं, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मैं इसे पहुंचा सकूं. उसके बाद मैं ब्लाइंड फोल्डेड यानी आंखों पर पट्टी बांधकर इसे करने लगा. इस दौरान मुझे मीडिया से, समाज से, लोगों से बहुत सराहना मिली. इसके बाद ही 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह मेरे पास आए थे और उन्होंने शीशमहल का घास से अर्टिफेक्ट मुझसे बनवाया था. तो बस यही है कि जब जिंदगी में उतार चढ़ाव आते हैं, तभी मजा आता है. सीधी जिंदगी चलेगी तो फिर कोई मजा नहीं है."

आज कलाएं और कलाकार लुप्त होते जा रहे हैं
गंजीफा कार्ड से लेकर, मंजुषा पेंटिंग, कठपुतली की पारंपरिक कला, पारसी कढ़ाई, टोडा कढ़ाई, नागा हस्तशिल्प, रोगन पेंटिंग आदि तक न जाने कितनी ऐसी कलाएं हैं जो तुप्त होने की कगार पर हैं. ग्रास आर्ट के बारे में अभिषेक बताते हैं कि वे इस कला की आखिरी कड़ी हैं. अभिषेक कहते हैं, “मुझे हमेशा लगा कि अगर मैं इस कला को नहीं आगे ले जाऊंगा तो फिर कौन लेकर जाएगा? अगर मैंने भी इसे छोड़कर कोई और प्रोफेशन अपना लिया तो ये मुझ तक ही खत्म हो जाएगी. इस समय भी मैं इस कला की आखिरी कड़ी हूं. हिस्टोरिकल ग्रास आर्ट मुझ तक ही खत्म हो जाएगी. पंजाब में बहुत पहले आर्ट इनोवेशन अवार्ड हुआ करता था. ये साल 1991 से ही बंद कर दिया गया है. इसमें पंजाब के छोटे छोटे आर्टिस्ट भाग लिया करते थे और अपनी कला को प्रदर्शित किया करते थे. उस समय करीब 10,000 के करीब आर्टिस्ट थे जो अलग-अलग कलाओं में काम करते थे. जब उन्हें सपोर्ट नहीं मिला तो वो धीरे-धीरे करके दूसरे राज्यों में जाने लगे और ये सब खत्म होती चली गई. हालांकि, हरियाणा में अभी भी ये अवार्ड रखे जाते हैं.”
गौरतलब है कि कोरोनोवायरस महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के दौरान कला के लिए कई देशों ने अपने बजट को बढ़ाया है. ब्रिटेन, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों ने इनके लिए राहत पैकेज की भी घोषणा की. हालांकि, भारत सरकार ने अपने मंत्रालयों में कला और संस्कृति के लिए बजट में 21 प्रतिशत की कटौती की है.
नेत्रहीनों को करना चाहता हूं इस कला से सशक्त
अभिषेक कहते हैं कि वे इस कला से नेत्रहीन लोगों को सशक्त करना चाहते हैं. वे कहते हैं, "मैं इस कला को नेत्रहीन लोगों को सिखाना चाहता हूं. क्योंकि मैं खुद इसे ब्लाइंड फोल्डेड कर रहा हूं तो मुझे लगता है नेत्रहीनों को इस कला को सिखाकर उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं. ऐसे में मैं बहुत कोशिश कर रहा हूं कि ये उन तक पहुंचे. साथ ही इससे वे सशक्त हो सकें और रोजगार मिले. इसे लेकर सरकार के सामने मैंने प्रोपोजल भी रख दिया है. जल्द ही हम उसपर भी काम करना शुरू कर देंगे."