

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के एक छोटे से गांव हनोदा की सरकारी मिडिल स्कूल की गणित शिक्षिका डॉ. प्रज्ञा सिंह ने पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. उन्हें इस साल राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 के लिए चुना गया है.
गणित जैसे कठिन और बच्चों को डराने वाले विषय को खेल-खेल में समझाने के लिए उन्होंने लूडो, सांप-सीढ़ी, शतरंज, कुर्सी दौड़ और पीटी जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया. इन नवाचारों ने बच्चों के लिए गणित को इतना आसान बना दिया कि अब उनके स्कूल के नतीजे शत-प्रतिशत आ रहे हैं. प्रदेश से सामान्य वर्ग में यह पुरस्कार पाने वाली वे एकमात्र शिक्षिका हैं.
दिल्ली में 5 सितंबर को राष्ट्रपति के हाथों मिलेगा सम्मान
डॉ. प्रज्ञा सिंह 3 सितंबर को दिल्ली रवाना होंगी. 5 सितंबर को उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों मिलेगा. उन्होंने बताया कि यह उनकी चौथी कोशिश थी. इससे पहले तीन बार आवेदन देने के बाद भी नेशनल ज्यूरी के सामने प्रजेंटेशन में कुछ न कुछ रह जाता था. इस बार उन्होंने पूरी तैयारी की और प्रजेंटेशन को मजबूत बनाया, जिसका नतीजा यह सफलता रही.
गणित को दिया जीवन, स्कूल में बनाया गणित पार्क
प्रज्ञा सिंह ने अपने स्कूल में गणित लैब और गणित पार्क तैयार किया है. दीवारों और फर्श पर पूर्णांकों, कोणों और अंकों की पेंटिंग की है.
कुर्सी दौड़ के जरिए पूर्णांक समझाए
लूडो से जोड़-घटाव सिखाया
सांप-सीढ़ी में सवालों के जवाब देकर ऊपर चढ़ने या नीचे गिरने की ट्रिक
शतरंज से घातांक (पावर) सिखाया
गणितीय संतुलन को पीटी के खेलों में जोड़ा
इन सब के जरिए गणित अब बच्चों को डराने वाला विषय नहीं रहा, बल्कि खेलने और समझने का जरिया बन गया है.
खुद के खर्च से स्कूल की दशा बदली
प्रज्ञा सिंह ने अब तक 8 लाख रुपए अपनी जेब से स्कूल के विकास में लगाए हैं.
500 से ज्यादा टीचिंग लर्निंग मटेरियल बनाए
स्कूल में मुस्कान पुस्तकालय के लिए 30,000 रुपए की किताबें दान दीं
बालिका स्वास्थ्य कार्यक्रम ‘जागो सखियों’ शुरू किया
एनएमएमएस परीक्षा में अब तक 23 बच्चों का चयन कराया
श्रेष्ठा योजना में भी बच्चों का चयन दिलाया
स्कूल को प्रिंट-रिच वातावरण में बदला
प्रज्ञा सिंह कहती हैं, ''मैं महिला हूं, मां भी हूं, इसलिए बच्चों से मेरा रिश्ता सिर्फ शिक्षिका का नहीं, एक मां जैसा हो गया है. कई बार बच्चे अपनी बातें पहले मुझसे शेयर करते हैं, घर पर भी नहीं बताते.''
उन्होंने बताया कि जब वह स्कूल में आईं, तो गांव में पहली महिला शिक्षक थीं. गांव में शराबखोरी जैसी समस्याएं थीं, लेकिन उन्होंने इसे चुनौती नहीं, मौका समझा. माताओं को स्कूल से जोड़ा और आज पूरा गांव उनके साथ खड़ा है.
वे कहती हैं, ''यह पुरस्कार सिर्फ मेरा नहीं, पूरे गांव और बच्चों का है. मैंने कर्मभूमि को सम्मानित किया है. होशियार बच्चे तो पढ़ लेते हैं, मेरा फोकस उन बच्चों पर है जो गणित से डरते हैं.''
-रघुनंदन पंडा की रिपोर्ट
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