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आठ साल से चल रही मोटरसाइकिल वाली स्वच्छता यात्रा, गांव-गांव जाकर खुद सफाई करता है यह युवक, लोगों को कर रहा जागरूक

आठ साल की इस अनवरत यात्रा ने विष्णु को लोगों के बीच एक ‘स्वच्छता दूत’ बना दिया है. आसपास के गांव ही नहीं, बल्कि अन्य जिलों और प्रदेशों से भी लोग उन्हें बुलाते हैं. यहां तक कि ट्रेन में सफर करते समय भी वे यात्रियों को सफाई का संदेश देना नहीं भूलते.

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क्या आपने कभी देखा है कोई स्नातक युवक, जो कपड़े की दुकान चलाने के साथ-साथ अपनी मोटरसाइकिल पर डस्टबिन और स्पीकर लगाकर गांव-गांव घूमता हो, खुद झाड़ू लगाता हो और लोगों को सफाई के लिए जागरूक करता हो? सुनने में यह अनोखा लगता है, लेकिन आगर मालवा जिले का 44 वर्षीय विष्णु भारतेश पिछले आठ साल से यही काम कर रहे हैं.

उनकी यह पहल आज न सिर्फ उनके कस्बे डग की गलियों और चौपालों में चर्चा का विषय है, बल्कि दूर-दराज के गांवों तक एक मिसाल बन चुकी है.

सऊदी अरब से लौटा, तब आया सफाई का जुनून

विष्णु मूलतः डग कस्बे के रहने वाले हैं. सन 2000 में वे नौकरी के लिए कुवैत गए थे. वहां की साफ-सफाई और स्वच्छ माहौल ने उनके मन को गहराई से प्रभावित किया. जब वे भारत लौटे, तो उन्हें अपने कस्बे और गांव की गंदगी देखकर पीड़ा हुई. उन्हें लगा कि अगर लोग चाहें, तो अपने आसपास के माहौल को भी वैसा ही स्वच्छ रख सकते हैं.

इसी सोच ने 5 दिसंबर 2015 को उन्हें झाड़ू उठाने और खुद सफाई शुरू करने की प्रेरणा दी.

मोटरसाइकिल बनी ‘मोबाइल स्वच्छता रथ’

विष्णु की मोटरसाइकिल आज गांव-गांव में उनकी पहचान बन चुकी है. बाइक पर डस्टबिन और चिमटा हमेशा रहता है. साथ ही, सफाई संदेश लिखे पोस्टर और एक माइक-स्पीकर भी लगे हैं. वे कहीं भी जाते हैं, तो पहले माइक से सफाई का संदेश देते हैं और फिर खुद झुककर कचरा उठाना शुरू कर देते हैं.

गांव के बच्चे, महिलाएं और युवा यह देखकर प्रेरित होते हैं और उनके साथ जुड़ जाते हैं. धीरे-धीरे उनका यह प्रयास एक आंदोलन का रूप लेता जा रहा है.

कपड़े की दुकान से निकालते हैं समय

विष्णु स्नातक और B.Ed की डिग्री कर चुके हैं. डग कस्बे में उनकी कपड़ों की एक छोटी दुकान और सिलाई का काम है, जिससे परिवार का गुजारा चलता है. लेकिन हर दिन कुछ समय निकालकर वे पास के गांवों में निकल पड़ते हैं. खुद का पेट्रोल, खुद का समय और मिशन सिर्फ एक- “गांव-गांव को कचरा मुक्त बनाना.”

बच्चों और महिलाओं पर खास असर

विष्णु का मानना है कि सफाई की असली शिक्षा बचपन से शुरू होती है. इसलिए वे अक्सर स्कूलों में जाकर बच्चों को समझाते हैं कि साफ-सफाई सेहत और समाज दोनों के लिए जरूरी है. गांवों की चौपाल पर बैठकर वे महिलाओं और बुजुर्गों को भी जागरूक करते हैं.

उनके इस अभियान का असर साफ दिखने लगा है. बच्चे अब घरों और गलियों में गंदगी नहीं फैलाते. महिलाएं भी खुलेआम कहती हैं कि “सफाई रखना हम सबकी जिम्मेदारी है.”

प्रेरणा से आंदोलन तक

शुरुआत में लोग विष्णु की बातों को गंभीरता से नहीं लेते थे. कुछ तो उल्टा कह देते, “आप ही क्यों नहीं सफाई करते?”

लेकिन विष्णु ने यह चुनौती भी स्वीकार की. उन्होंने खुद झाड़ू उठाई, नालियों और गलियों से प्लास्टिक-कचरा निकाला और उसे डस्टबिन में डालते हुए सबको दिखाया कि सफाई सिर्फ दूसरों की जिम्मेदारी नहीं है.

आज हालात यह हैं कि जहां-जहां वे पहुंचते हैं, लोग उनके साथ झाड़ू उठाने लगते हैं.

सम्मान और पहचान

आठ साल की इस अनवरत यात्रा ने विष्णु को लोगों के बीच एक ‘स्वच्छता दूत’ बना दिया है. आसपास के गांव ही नहीं, बल्कि अन्य जिलों और प्रदेशों से भी लोग उन्हें बुलाते हैं. यहां तक कि ट्रेन में सफर करते समय भी वे यात्रियों को सफाई का संदेश देना नहीं भूलते.

आज जब सरकार “स्वच्छ भारत” अभियान को लेकर बड़े-बड़े बजट खर्च कर रही है, तब विष्णु भारतेश जैसे लोग बिना किसी सरकारी मदद के सिर्फ अपनी सोच और जुनून से गांव-गांव को बदल रहे हैं.

उनकी यह मोटरसाइकिल वाली यात्रा आने वाली पीढ़ी के लिए एक बड़ा सबक है-“सफाई सिर्फ सरकार का काम नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है.”

(प्रमोद कारपेंटर की रिपोर्ट)