
नीदरलैंड्स को आज पूरी दुनिया एक ऐसे देश के रूप में जानती है, जहाँ स्ट्रे डॉग्स की समस्या लगभग ख़त्म हो चुकी है. लेकिन यह हमेशा से ऐसा नहीं था. 19वीं सदी में नीदरलैंड्स की गलियों में हजारों आवारा कुत्ते घूमते नज़र आते थे. उस समय यूरोप में पालतू कुत्ता रखना शान की निशानी माना जाता था.
नीदरलैंड्स में भी लोग बड़े पैमाने पर कुत्ते पालते थे, लेकिन सही देखभाल न होने, गरीबी और बीमारियों के कारण बड़ी संख्या में कुत्ते सड़कों पर छोड़ दिए जाते थे.भारत की तरह ही नीदरलैंड्स भी एक वक्त पर सड़कों पर घूमते हुए आवारा कुत्तों से परेशान था. इससे पहले कि यह परेशानी हाथों से बाहर निकल जाता, नीदरलैंड ने CNVR मॉडल लागू करने का फैसला किया. यह मॉडल क्या है और नीदरलैंड्स ने इसे क्यों अपनाया, आइए जानते हैं.
शुरुआती दौर और समस्या की जड़
19वीं शताब्दी में नीदरलैंड्स में रेबीज़ (Rabies) का बड़ा प्रकोप हुआ. यह बीमारी इंसानों तक भी फैलने लगी. बीमारी और अव्यवस्था से घबराकर सरकार ने कुत्तों पर टैक्स लगा दिया. नतीजा यह हुआ कि गरीब लोग अपने पालतू कुत्तों को सड़क पर छोड़ने लगे. धीरे-धीरे हालात इतने बिगड़े कि स्ट्रे डॉग्स की संख्या बेकाबू हो गई.
समस्या को सुलझाने के लिए शुरू में बड़े पैमाने पर कुत्तों को मारने का रास्ता अपनाया गया. लेकिन इससे समस्या हल नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई. रिसर्च से साबित हुआ कि किसी क्षेत्र में कुत्तों को हटाने या मारने पर दूसरी जगह से नए कुत्ते आ जाते हैं और उनकी संख्या फिर से बढ़ जाती है.
बदलाव की शुरुआत
20वीं सदी के मध्य तक नीदरलैंड्स ने महसूस किया कि केवल मारना समाधान नहीं है. इसके बाद धीरे-धीरे एनिमल वेलफेयर (पशु कल्याण) पर ध्यान दिया गया. समाज में पशुओं के प्रति संवेदना और दया की सोच बढ़ाई गई. इसी दौरान कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरिलाइज़ेशन (नसबंदी) और वैक्सीनेशन पर काम शुरू हुआ.
CNVR मॉडल की शुरुआत
नीदरलैंड्स ने स्ट्रे डॉग्स की समस्या को सुलझाने के लिए CNVR (Collect–Neuter–Vaccinate–Return) मॉडल अपनाया. इसका मतलब है:
1. Collect (पकड़ना) – स्ट्रे डॉग्स को सुरक्षित तरीके से पकड़कर आश्रय गृह या क्लिनिक में लाया जाता.
2. Neuter (नसबंदी करना) – उनकी नसबंदी की जाती ताकि उनकी संख्या आगे न बढ़े.
3. Vaccinate (टीकाकरण) – उन्हें रेबीज़ और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते.
4. Return (वापस छोड़ना) – इन कुत्तों को उसी इलाके में वापस छोड़ा जाता, ताकि क्षेत्र में संतुलन बना रहे और नए कुत्ते वहां न आ पाएं.
CNVR मॉडल क्यों सफल रहा?
कानून और सख्ती : नीदरलैंड्स ने कुत्तों को छोड़ने पर कड़ा कानून बनाया. किसी को भी पालतू कुत्ता त्यागने या उसके साथ क्रूरता करने पर भारी जुर्माना और सज़ा का प्रावधान किया गया.
एडॉप्शन को बढ़ावा : यहां सरकार ने 'Adopt, Don’t Shop' अभियान चलाया. यानी लोग पालतू कुत्ता खरीदने के बजाय शेल्टर से गोद लें. टैक्स पॉलिसी भी ऐसी बनाई गई कि ब्रीडर्स से कुत्ता खरीदना महंगा और एडॉप्शन आसान हो गया.
एनिमल पुलिस फोर्स : नीदरलैंड्स ने एक विशेष *एनिमल पुलिस यूनिट बनाई, जो पशुओं के अत्याचार के मामलों की जांच करती है.
जनजागरूकता : स्कूलों से लेकर मीडिया तक, हर जगह पशुओं के प्रति संवेदना और जिम्मेदारी की भावना जगाई गई.
शेल्टर होम्स की व्यवस्था : पूरे देश में कुत्तों के लिए आधुनिक शेल्टर बनाए गए जहाँ उन्हें अच्छी देखभाल, खाना और इलाज मिलता है.
इन सतत प्रयासों की वजह से नीदरलैंड्स ने धीरे-धीरे स्ट्रे डॉग्स की संख्या कम की. नसबंदी और टीकाकरण के कारण उनकी आबादी नियंत्रण में आई, और एडॉप्शन की संस्कृति ने उन्हें घर दिलाए. आज नीदरलैंड्स दुनिया का पहला देश है, जहां स्ट्रे डॉग्स लगभग न के बराबर हैं.
नीदरलैंड्स का अनुभव बताता है कि समस्या का हल केवल मारने या हटाने से नहीं निकलता. असली समाधान है मानवीय तरीके से, दीर्घकालिक सोच और सख्त कानूनों के साथ काम करना. CNVR मॉडल और जनजागरूकता से ही कुत्तों और इंसानों के बीच संतुलन बन सकता है.