scorecardresearch

एयरलाइंस सैकड़ों मिलियन डॉलर के हवाई जहाज कैसे खरीदती हैं? किराए पर भी ले सकते हैं? डिस्काउंट भी होता है? कीमत कितने से शुरू होती है?

दुनिया के 40% कमर्शियल हवाई जहाज खरीदे नहीं, बल्कि किराए पर लिए जाते हैं. यानी एयरलाइंस को हर महीने किराए के तौर पर पैसे देने होते हैं, और बदले में वो हवाई जहाज का इस्तेमाल करती हैं. ये लीजिंग कंपनियां, जैसे कि Aercap, Avolon, और GECAS, इस खेल की सबसे बड़ी खिलाड़ी हैं.

How to buy an airplane (Photo: Unsplash) How to buy an airplane (Photo: Unsplash)

हवाई जहाज, जो आसमान में उड़ते हुए हमें दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जाते हैं, सिर्फ तकनीक का चमत्कार नहीं, बल्कि एक ऐसी खरीदारी का नमूना हैं, जिसके पीछे छिपा है पैसों का बड़ा खेल! जी हां, एक हवाई जहाज की कीमत सैकड़ों मिलियन डॉलर में होती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि एयरलाइंस इतने महंगे हवाई जहाज कैसे खरीदती हैं? क्या उनके पास इतना पैसा होता है, या फिर इसके पीछे कोई और जादू है? 

आसमान छूती लागत!
सबसे पहले बात करते हैं हवाई जहाज की कीमत की. एक हवाई जहाज खरीदना कोई बच्चों का खेल नहीं है. बोइंग और एयरबस जैसे दिग्गज निर्माता अपने हवाई जहाज की लिस्ट प्राइस (आधिकारिक कीमत) ऐसी रखते हैं कि सुनकर ही सिर चकरा जाए. मिसाल के तौर पर, एक बोइंग 737-700 की कीमत है करीब 89.1 मिलियन डॉलर (लगभग 750 करोड़ रुपये), जबकि एयरबस A321 की कीमत है 114.9 मिलियन डॉलर (करीब 960 करोड़ रुपये).

अब अगर बात करें वाइडबॉडी हवाई जहाज की, तो यहां कीमतें और भी आसमान छूती हैं. एयरबस A380, जो दुनिया का सबसे बड़ा यात्री विमान है, उसकी कीमत है 412 मिलियन डॉलर (करीब 3440 करोड़ रुपये). वहीं, बोइंग का आगामी 777-9 मॉडल तो 442 मिलियन डॉलर (लगभग 3700 करोड़ रुपये) में बिकता है. लेकिन रुकिए! ये तो सिर्फ लिस्ट प्राइस की बात है. असल में, कोई भी एयरलाइन इतनी कीमत चुकाने को तैयार नहीं होती. तो फिर सवाल उठता है- ये डील होती कैसे है?

सम्बंधित ख़बरें

50% तक की छूट!
आपको जानकर हैरानी होगी कि एयरबस और बोइंग जैसी कंपनियां अपनी लिस्ट प्राइस पर भारी-भरकम डिस्काउंट देती हैं. जी हां, 2019 में एयरबस ने खुलासा किया था कि उनकी ऑर्डर बुक की असली वैल्यू लिस्ट प्राइस से करीब 50% कम होती है. यानी अगर कोई हवाई जहाज लिस्ट में 100 मिलियन डॉलर का है, तो एयरलाइन उसे 50-60 मिलियन डॉलर में खरीद सकती है. बोइंग भी 40-60% तक डिस्काउंट देता है.

लेकिन ये डिस्काउंट इतनी आसानी से नहीं मिलता. इसके पीछे होती है तगड़ी मोल-भाव की रणनीति. अगर कोई एयरलाइन एक साथ कई हवाई जहाज खरीदती है, तो डिस्काउंट और भी ज्यादा हो सकता है. मिसाल के तौर पर, अगर कोई कंपनी 10 बोइंग 737 ऑर्डर करती है, तो वो अरबों रुपये की बचत कर सकती है. लेकिन सवाल फिर भी वही है- इतने पैसे कहां से आते हैं?

खरीदें नहीं, किराए पर लें!
अब यहां आता है उड्डयन जगत का सबसे बड़ा ट्विस्ट- लीजिंग! आपने सही सुना, दुनिया के 40% कमर्शियल हवाई जहाज खरीदे नहीं, बल्कि किराए पर लिए जाते हैं. यानी एयरलाइंस को हर महीने किराए के तौर पर पैसे देने होते हैं, और बदले में वो हवाई जहाज का इस्तेमाल करती हैं. ये लीजिंग कंपनियां, जैसे कि Aercap, Avolon, और GECAS, इस खेल की सबसे बड़ी खिलाड़ी हैं.

ज्यादातर लीजिंग कंपनियां आयरलैंड में बेस्ड हैं. इसका कारण है वहां की टैक्स छूट और उड्डयन उद्योग का मजबूत ढांचा. लेकिन सवाल ये है कि ये लीजिंग कंपनियां इतने महंगे हवाई जहाज खरीदती कैसे हैं? इसका जवाब है- बेहतर क्रेडिट रेटिंग. लीजिंग कंपनियों को बैंकों और क्रेडिटर्स से कम ब्याज पर लोन मिलता है, क्योंकि इन्हें कम रिस्क वाला माना जाता है. इस सस्ते लोन का फायदा वो एयरलाइंस को देती हैं, जिससे लीजिंग डील और आकर्षक हो जाती है.

लीजिंग का एक और बड़ा फायदा है-तेज़ डिलीवरी. अगर कोई एयरलाइन सीधे बोइंग या एयरबस से हवाई जहाज़ ऑर्डर करती है, तो उसे 2 से 10 साल तक का इंतजार करना पड़ सकता है. लेकिन लीजिंग के जरिए वो तुरंत हवाई जहाज ले सकती है और अपने बेड़े का विस्तार कर सकती है.

खरीदना है तो कैसे?
कई एयरलाइंस हवाई जहाज को किराए पर लेने के बजाय खरीदना पसंद करती हैं. इसके पीछे कारण है कि अपने हवाई जहाज होने से कंपनी की वैल्यू बढ़ती है. अगर कभी पैसों की तंगी हुई, तो इन हवाई जहाज़ों को बेचकर या गिरवी रखकर पैसा जुटाया जा सकता है. लेकिन इतने महंगे हवाई जहाज खरीदने के लिए पैसे कहां से आते हैं?

यहां दो बड़े ऑप्शन हैं:

  • डायरेक्ट लेंडिंग: यानी बैंक से लोन लेना. जैसे हम घर या गाड़ी के लिए लोन लेते हैं, वैसे ही एयरलाइंस भी हवाई जहाज़ खरीदने के लिए लोन लेती हैं. लेकिन यहाँ रकम इतनी बड़ी होती है कि एक बैंक अकेले लोन नहीं देता. इसके लिए कई बैंकों का कंसोर्टियम बनता है, जो मिलकर लोन देते हैं. ये लोन सिक्योर्ड (हवाई जहाज को गिरवी रखकर) या अनसिक्योर्ड हो सकता है.
  • फाइनेंस लीजिंग: इसे कैपिटल लीजिंग भी कहते हैं. ये एक ऐसा समझौता है, जिसमें एयरलाइन लंबे समय तक हवाई जहाज़ को किराए पर लेती है और लीज खत्म होने पर उसे खरीदने का मौका मिलता है. इसे आप किश्तों पर खरीदारी जैसा समझ सकते हैं.

लीजिंग बनाम खरीदारी- कौन बेहतर?
लीजिंग और खरीदारी, दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं. लीजिंग से एयरलाइंस को कम शुरुआती लागत और तेज डिलीवरी मिलती है, लेकिन लंबे समय में किराए के तौर पर ज्यादा पैसे खर्च होते हैं. वहीं, खरीदारी से कंपनी की वैल्यू बढ़ती है, लेकिन इसके लिए भारी-भरकम शुरुआती निवेश चाहिए.
मिसाल के तौर पर, अगर कोई नई एयरलाइन मार्केट में उतरना चाहती है, तो वो लीजिंग का रास्ता चुनती है, क्योंकि इससे उसे तुरंत हवाई जहाज मिल जाते हैं. लेकिन अगर कोई बड़ी एयरलाइन, जैसे एयर इंडिया या लुफ्थांसा, अपने बेड़े को मजबूत करना चाहती है, तो वो खरीदारी पर फोकस करती है.