

किसी भी मां-बाप के लिए उसकी संतान उसकी जान से बढ़कर होती है. उसे खरोंच भी आ जाए तो मां-बाप के हलक से निवाला नीचे नहीं जाता. लेकिन जरा सोचिए वहीं मां-बाप रोज अपने जिगर के टुकड़ों को गहरे पानी और उफान मारती नदी पार कर स्कूल जाते कैसे देखते होंगे.
खबर मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले से है जहां स्कूल जाने के लिए बच्चों को मोटर बोट का सहारा है लेकिन गहरे पानी का डर ऐसा कि स्कूल जब बच्चों को इस वजह से दाखिला देने से मना करता है तो यहीं मां-बाप बकायदा स्टांप पेपर पर शपथ पत्र देकर अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं कि बीच नदीं में कुछ हुआ तो जिम्मेदारी स्कूल की नहीं बल्कि अभिभावकों की होगी.
इस गांव के बच्चे पढ़ने के लिए नदी पार कर नीमच जिले के आंतरीबुजुर्ग गाँव के सरकारी स्कूल पढ़ने जाते हैं. गांव से गुजरने वाली रेतम नदी बारिश में ओवरफ्लो रहती है जिसमें चम्बल नदी डैम का बेक वाटर भी होता है. इसी नदी के पानी में बच्चे एक स्टीमर बोट से स्कूल जाते हैं. लेकिन कहानी सिर्फ नदीं पार कर स्कूल जाने तक ही नहीं है.
दरअसल अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए इनके माता-पिता इनकी जिंदगी के संभावित खतरे की पूरी जिम्मेदारी अपने उपर लेते हैं और वो भी बकायदा स्टांप पेपर पर लिखापढ़ी कर के. जी हां, पिछले कई सालों से माता-पिता पढ़ाई के खातिर अपने रिस्क पर बच्चों की जान जोखिम में डाल उन्हे नदीं पार के सरकारी स्कूल में भेज रहे हैं और इसके लिए अभिभावकों ने स्कूल के प्रिंसिपल को बकायदा एक स्टांप पेपर पर लिख कर दिया है कि स्कूल आने-जाने के लिए बीच में पड़ने वाली नदी को पार करने की पूरी जिम्मेदारी अभिभावकों की रहेगी.
दरअसल, मंदसौर जिले के गांव छोटी आंतरी में आठवीं के बाद स्कूल नहीं है और पास के गांव में जो स्कूल है उसकी दूरी 15 से 17 किलोमीटर है. जहां माता-पिता बच्चों को पढ़ने नहीं भेजना चाहते जबकि नीमच जिले की आंतरी बुजुर्ग गांव में माध्यमिक स्कूल नदी पार कर सिर्फ दो किलोमीटर पड़ता है जिसके चलते स्टीमर बोट में बच्चों को रोजाना उफनती नदी में स्कूल भेजा जाता है.
अभिभावकों का कहना है कि नीमच जिले के आंतरी मे जो बोट से ढाई किलोमीटर ही पड़ता है, वही हमने भी पढ़ाई की है. पहले तो हम नाव से जाते थे. अब सरकार को ध्यान देकर कम से कम एक पुल तो बना ही देना चाहिए. पुल बनने से काफी लोगों को फायदा मिलेगा. मन्दसौर नीमच जिले आपस में जुड़ जाएंगे. अभिभावकों का कहना है कि स्कूल बहुत अच्छा है, लेकिन हमें नदी पार करके बच्ची को भेजना पड़ता है. इसलिए हमने स्कूल को स्टांप पर लिख कर दिया है कि बच्चे के नदीं पार करने की सारी जिम्मेदारी हमारी है हालांकि बच्चों के माता-पिता ने जो एग्रीमेंट साइन करके स्कूल में दिए हैं. स्कूल पक्ष अपने बचाव में एग्रीमेंट को तुरंत आगे कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है.
प्रिंसिपल युवराज चंदेल का कहना है कि उनके यहां प्रिंसिपल बनने के पहले से ही बच्चे इसी तरह नाव से स्कूल आ रहे हैं. हम मना करते हैं तो वो स्टांप पेपर पर लिख कर दे देते हैं कि नदी पार करने की उनकी जिम्मेदारी है.
इस बारे में जब स्थानीय विधायक माधव मारु से बात की गई तो उनका कहना था की वो इस मामले मे पहले भी मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री से यहां पुल बनाने की बात की है. विधायक का कहना है कि मंदसौर और नीमच जिले के बड़े विकास की बात करें तो कही ना कही एक पुल की दरकार इस इलाके को है. यदि मंदसौर से नीमच को जोड़ने वाला यह पुल बन जाता है तो मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ विधानसभा क्षेत्र के इस गांव के बच्चों को अच्छा स्कूल मिल जाएगा जो नीमच जिले में है और साथ ही इस इलाके के ये दोनों जिले जुड़ जाएंगे तो रास्ते की दूरी काफी कम भी हो जाएगी. इस बारे में सरकार का कहना है कि मामले की जांच करवाएंगे और पुल की जरूरत पड़ी तो पुल भी बनवाएंगे.
कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग ने आजतक से बात करते हुए कहा कि उसकी फिजिबिलिटी की जांच होगी. हमारी सरकार तो लगातार विकास कर रही है, फिजिबिलिटी होगी तो निश्चित रूप से पुल बन जाएगा. शिक्षा पाने का अधिकार हर बच्चे का है… लेकिन जब यह अधिकार बच्चों की जान दांव पर लगाकर हासिल करना पड़े, तो सवाल सिर्फ अभिभावकों से नहीं बल्कि सरकार और व्यवस्था से भी होना चाहिए. मंदसौर और नीमच को जोड़ने वाला पुल बनेगा तो न केवल बच्चों की राह आसान होगी बल्कि दो जिलों का विकास भी तेजी से होगा.
-रवीश पाल सिंह/आकाश चौहान
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