

जब भी हम “सबसे महंगी चीज़ों” की बात करते हैं, दिमाग में सबसे पहले हीरे, सोना या पेट्रोलियम जैसे नाम आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी की कीमत हीरे से भी ज्यादा हो सकती है? हम बात कर रहे हैं ‘अगरवुड’ (Agarwood) की- जिसे हिंदी में अगरबत्ती की लकड़ी या उद भी कहा जाता है.
इस लकड़ी की महक इतनी खास होती है कि इसका इस्तेमाल दुनिया की सबसे महंगी परफ्यूम और धूपबत्तियों में किया जाता है. यही नहीं, इसे 'Wood of Gods' (देवताओं की लकड़ी) भी कहा जाता है.
दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी कौन सी है?
दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी का नाम है अगरवुड (Agarwood). इसे oud wood, gaharu, eaglewood के नाम से भी जाना जाता है.
अगरवुड की कीमत क्या है?
अगरवुड की कीमत लकड़ी की गुणवत्ता और किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है.
यह लकड़ी इतनी महंगी क्यों है?
इसकी कई वजहें हैं:
अगरवुड का उपयोग कहां होता है?
अगरवुड किस देश में सबसे ज़्यादा होता है?
भारत में अगरवुड की खेती कहां होती है?
भारत में मुख्य रूप से असम को अगरवुड की राजधानी कहा जाता है. इसके अलावा नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में भी इसकी खेती होती है.
प्राकृतिक सुगंध का बेशकीमती खजाना
अगरवुड तभी बनती है जब Aquilaria पेड़ की लकड़ी पर फफूंद लगती है और वह अपने बचाव में एक विशेष रेजिन (resin) बनाती है. यही रेजिन लकड़ी को सुगंधित और कीमती बना देता है. इस प्रक्रिया में 15 से 25 साल तक का समय लग सकता है. यही कारण है कि इसकी कीमत लगातार बढ़ रही है.
अवैध तस्करी और संरक्षण की चुनौती
अगरवुड की भारी मांग के कारण इसकी अवैध कटाई और तस्करी भी बढ़ गई है. इसी वजह से Aquilaria पेड़ों को IUCN Red List में संकटग्रस्त प्रजातियों में रखा गया है. भारत में इसकी कटाई के लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी होती है.
क्या आप भी अगरवुड की खेती कर सकते हैं?
जी हां, भारत सरकार अगरवुड की खेती को बढ़ावा दे रही है. विशेष प्रशिक्षण और लाइसेंस लेकर किसान इसकी खेती कर सकते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगरवुड खेती से प्रति एकड़ 10 से 15 लाख रुपये तक की कमाई की जा सकती है, लेकिन धैर्य और समय की जरूरत होती है.
अगर आप अब तक यही सोचते थे कि हीरे सबसे कीमती होते हैं, तो अब आपको पता चल गया कि अगरवुड जैसी दुर्लभ लकड़ी भी दुनिया के सबसे महंगे प्राकृतिक संसाधनों में शुमार है. आने वाले समय में अगरवुड की मांग और भी बढ़ेगी और यह लकड़ी सिर्फ व्यापार ही नहीं, संस्कृति, परंपरा और श्रद्धा का भी प्रतीक बन चुकी है.
(नोट- यहां बताई गई बातें सामान्य जानकारी पर आधारित है. Gnttv.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.)