
Saharanpur Scrap
Saharanpur Scrap उत्तर प्रदेश के सहारनपुर निवासी स्क्रैप आर्टिस्ट अरुण कुमार के लिए यह पल ऐतिहासिक बन गया, जब उन्हें हाल ही में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह सम्मान देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा प्रदान किया गया. कबाड़ को कला में बदलने वाले अरुण कुमार की मेहनत और नवाचार को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, जिसने सहारनपुर का नाम देश-विदेश में रोशन किया है, हाल ही में इन्होंने स्क्रैप से गणेश जी की मूर्ति बनाई थी.
कबाड़ चीजों से बनाते हैं कलाकृतियां
अरुण कुमार उन लोगों में से हैं, जो कबाड़ समझकर फेंक दी जाने वाली चीजों में भी संभावनाएं तलाशते हैं. पुराने ऑटोमोबाइल पार्ट्स, सिलाई मशीन के पुर्जे, बाइक और ट्रक के घिसे-पिटे हिस्सों को वह आकर्षक धातु कलाकृतियों में बदल देते हैं. उनकी हर रचना पूरी तरह से हस्तनिर्मित, पर्यावरण-अनुकूल और शून्य कार्बन फुटप्रिंट वाली होती है.
सहारनपुर की हौजरी मंडी से निकली सोच
सहारनपुर, जो देश की तीसरी सबसे बड़ी हौजरी मंडी के रूप में जाना जाता है, अरुण के लिए प्रेरणा का केंद्र बना. यहां से निकलने वाले सिलाई मशीन के पुर्जों और स्क्रैप को उन्होंने बड़े स्तर पर खरीदकर आर्टिकल्स बनाने की योजना बनाई. पहले छोटे-छोटे आर्टिकल तैयार किए गए, फिर बड़े और यूनिक पीस बनाए गए, जो आज अंतरराष्ट्रीय पहचान बन चुके हैं.

लाखों में बिक रहीं धातु से बनी कलाकृतियां
अरुण की कलाकृतियों को न केवल भारत में बल्कि अमेरिका, यूके और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में भी सराहा गया. उनकी बनाई धातु कलाकृतियों की कीमत 1,000 रुपये से लेकर 40 लाख रुपये तक जाती है. अबू धाबी में उनका एक आर्ट पीस स्थापित है, वहीं बॉलीवुड अभिनेत्री सनी लियोन भी उनके हॉर्स आर्ट पीस के साथ फोटो खिंचवा चुकी हैं.
40 से 50 लोगों को रोजगार दे रहे हैं
इस सफर में अरुण के भाई गौरव अग्रवाल की अहम भूमिका रही, जो पूरे बिजनेस मैनेजमेंट को संभालते हैं. आज अरुण अकेले नहीं, बल्कि अपने साथ 40 से 50 लोगों को रोजगार दे रहे हैं. वह साल में दो बार बड़े फेयर और एग्जीबिशन में हिस्सा लेते हैं, जहां हर बार 40-50 नए और यूनिक पीस लेकर पहुंचते हैं.

राज्य पुरस्कार के बाद अब राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने से अरुण कुमार का हौसला और बढ़ गया है. उनका अगला लक्ष्य अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपने आर्टिकल्स को पहुंचाना है, ताकि 500-600 से लेकर बड़े हाई-एंड पीस तक आम लोगों की पहुंच में आ सकें. कबाड़ से कला और कला से पहचान तक का यह सफर आज सहारनपुर के लिए गर्व की कहानी बन चुका है.