Vriksha Katha
Vriksha Katha रामकथा, श्रीमद्भागवत और शिव महापुराण जैसी धार्मिक कथाओं की ही तरह अब वृक्ष कथा भी जयपुर शहर में लोकप्रिय हो रही है. इस कथा के माध्यम से पेड़-पौधों के धार्मिक, आध्यात्मिक और औषधीय महत्व को बताते हुए आमजन को प्रकृति से जोड़ा जा रहा है. तीन घंटे चलने वाली यह संगीतमय कथा वृक्ष देवता की आरती के साथ संपन्न होती है. अन्य धार्मिक आयोजनों की तरह यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप पौधे भेंट किए जाते हैं, ताकि वे पौधरोपण कर पर्यावरण को संरक्षित कर सकें.
दो वर्षों में इतनी वृक्ष कथाओं का आयोजन
इस अनूठी पहल के सूत्रधार हैं पर्यावरणविद् अशोक कुमार शर्मा, जिन्होंने बीते दो वर्षों में 157 वृक्ष कथाओं का आयोजन कर हजारों लोगों को जागरूक किया है. वे इस कथा के माध्यम से लोगों को पौधरोपण, जीवदया, वृक्षों की पूजा और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं. कथा में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ अन्य देवताओं के वृक्षों में वास की व्याख्या की जाती है. पीपल, बरगद, नीम, बिल्वपत्र, खेजड़ी, केला, पलाश, अशोक जैसे पेड़ों की पूजा का धार्मिक महत्व बताया जाता है. बताया जाता है कि कैसे इनके पत्ते, फूल और फल भगवान को अर्पित किए जाते हैं.
क्या है उद्देश्य
जनसमस्या निवारण मंच द्वारा भी इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता सूरज सोनी बताते हैं कि यह पहल पूरी तरह नि:शुल्क है और इसका उद्देश्य है अधिक से अधिक लोगों को पौधरोपण और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प दिलाना. वे बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और ग्लेशियरों के असमय पिघलने जैसी समस्याएं प्रकृति से दूरी का परिणाम हैं, जिन्हें पौधरोपण और प्रकृति के संरक्षण से रोका जा सकता है.
पंचवटी का करते हैं उल्लेख
कथा में विशेष रूप से पंचवटी (बरगद, पीपल, आंवला, बिल्वपत्र और अशोक) का उल्लेख होता है, जिसे अरण्य पुराण में अत्यंत पवित्र बताया गया है. इसी तरह 9 ग्रह वाटिका और नव दुर्गा वाटिका का भी वर्णन किया जाता है, जिनमें विभिन्न ग्रहों और देवी स्वरूपों से संबंधित पौधों को शामिल किया गया है. उदाहरणस्वरूप, शनि का शमी, सूर्य का आक, गुरु का पीपल और नव दुर्गा में शैलपुत्री का हरड़, ब्रह्मचारिणी की ब्राह्मी, महागौरी की तुलसी जैसे पौधों का उल्लेख किया जाता है.
धरती मां की रक्षा का संकल्प
वृक्ष कथा को मधुर भजनों और संगीतमय प्रस्तुति के साथ आयोजित किया जाता है. इसमें संदेश होता है- थे जहां-जहां भी जाओ बरगद-पीपल लगाओ, धरती को स्वर्ग बनाओ, ये परम प्रभु की सेवा है, जीवमात्र की सेवा है, पेड़ लगाकर नारायण बन जाओ. यह कथा एक नई धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण कर रही है, जिसमें भक्ति के साथ-साथ धरती मां की रक्षा का भी संकल्प जुड़ा है.