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2 साल में वेद पढ़ने वाले शंकराचार्य ने 4 मठ की स्थापना कर जगाई थी हिंदू धर्म में नई चेतना

केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ और मात्र 32 साल तक ही जीवित रह पाए. अपने अल्प आयु में ही उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिसके बाद लोग उन्हें भगवान शंकर का अवतार मानने लगे.

आदि शंकराचार्य आदि शंकराचार्य
हाइलाइट्स
  • 7 साल की उम्र में ही ले लिया था संन्यास

  • दसनामी सम्प्रदाय को माना जाता है संत सम्प्रदाय

16 साल तक वेदों के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए भारत की यात्रा करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य की 6 मई को जयंती मनाई जाएगी. उनका जन्म केरल में हुआ था.उन्होंने 7 साल की आयु में ही संन्यास ले लिया था और मात्र 2 साल की आयु में सारे वेदों, उपनिषद, रामायण को कंठस्थ कर लिया था. वे मात्र 32 साल तक ही जिए. इतनी कम आयु में ही उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को देखते हुए लोगों ने उन्हें भगवान शिव का अवतार माना. उन्होंने चार मठों की स्थापना की थी. जिसमें ज्योतिर्मठ, शारदामठ, श्रंगेरी मठ और गोवर्धन मठ शामिल है. आइए जानते हैं उनकी जंयती पर समाज के लिए किए गए उनके सुधार कार्यों के बारे में.


जातिवाद को समाप्त करने के लिए उठाए कदम

आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को बिखरने से रोकने के लिए दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी. वे चाहते थे कि हिंदू संगठित रहे और अलग-अलग जातियों में न बटें. बता दें कि जो 13 अखाड़े कुंभ में स्नान करते हैं वो इन्हीं दसनामी सम्प्रदाय से आते हैं जिन्हें अब संत सम्प्रदाय कहा जाता है. उन्होंने पूरे भारत में घुम घुम कर हिंदू समाज को एकत्रित करने का प्रयास किया और चार मठों की स्थापना की. इन्हीं चार मठों के शंकराचार्य हिंदूओं के आचार्य माने जाते हैं. उन्होंने निर्वाण शाल्कम, मनीषा पंचकम जैसे 72 भक्ति भजनों की रचना की.
 
उनकी जिंदगी से लोग लेते हैं प्रेरणा 

उन्होंने जिंदगी को लेकर कई महत्वपूर्ण बाते कही जो आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है. वो कहते थे कि शुद्ध मन ही सबसे सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ है इसलिए तीर्थ के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है. वो जिंदगी को असल रूप में देखते थे. उनका कहना था कि लोग आपको उसी वक्त तक याद करते हैं जब तक आपकी सांसें चल रही हैं. सांसों के रुकने के बाद सब लोग दूर चले जाते हैं. उनके विचारों पर आज भी लोग अमल करते हैं.