Harshit Jain
Harshit Jain उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले 30 वर्षीय हर्षित जैन दिल्ली में कपड़ों के बड़े व्यापारी थे, जो अब करोड़ों का कारोबार, बड़ा परिवार, सुख-सुविधाओं से भरी जिंदगी सबकुछ होते हुए भी अब वैराग्य को अपना चुके हैं. हर्षित का परिवार भी बागपत का जाना माना है. परिवार पिता सुरेश जैन दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा बिजनेस चलाते हैं. भाई संयम मैक्स अस्पताल में डॉक्टर हैं. लेकिन इन सबके बीच हर्षित के मन में कोविड के दौर में उठे सवालों ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी.
करोड़ों का कारोबार छोड़ बन गए वैरागी-
हर्षित के मुताबिक कोविड के समय इंसानियत का टूटना, अपनों का दूर होना, डर का असर और मौत की सच्चाई ने उनके भीतर की दुनिया हिला दी. एक भाई का दूसरे बीमार भाई को दूर से खाना देते देख, लोगों को कंधा देने से कतराते देखकर उन्होंने महसूस किया कि इंसान अकेला आया है और अकेला ही जाएगा. इन्हीं सवालों के बीच 4 साल तक हर्षित के मन में वैराग्य पर चिंतन चलता रहा. उनका जैन मुनियों से जुड़ाव बढ़ा और अब उन्होंने सारी धन-दौलत छोड़कर वैराग्य की राह पकड़ने का फैसला किया. उन्होंने दीक्षा ग्रहण की. दीक्षा ले चुके हर्षित कहते हैं कि अब मेरा जीवन सादगी और संयम का होगा. मुनि परंपरा के हर नियम को निभाऊंगा.
बैंड-बाजे के साथ निकाली गई शोभायात्रा-
बागपत जिले के दोघट और बामनौली के जैन मंदिरों में हजारों भक्तों की मौजूदगी में हर्षित का ना सिर्फ तिलक समारोह किया गया, बल्कि बग्घी पर बैठे हर्षित बैंड-बाजे के साथ पूरे कस्बे में शोभायात्रा निकाली गई. मंदिर में विरक्ति और भक्ति का अद्भुत संगम था. वहीं, इसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ दोबारा तिलक हुआ और हर्षित ने अपना सामान बांधकर मुनि जीवन की पहली यात्रा शुरू की.
बेटे पर पिता को गर्व-
वहीं, हर्षित के पिता सुरेश जैन कहते हैं कि मैं खुश हूं, मेरे बेटे ने सत्य को करीब से देखा है. कोविड के समय जिस सच्चाई का एहसास उसे हुआ, उसने उसे धर्म के रास्ते पर ला दिया. आज वह मुनि बन गया है. इससे बड़ा गर्व क्या होगा?
हर्षित जैन ने कहा कि कोविड के बाद मेरा मन बदला और मैंने गुरु जी से दीक्षा ली. मेरा दिल्ली चांदनी चौक में कपड़े का काम था. पिता का इलेक्ट्रॉनिक का व्यापार है. घर में भी भाभी सब है.
(मनुदेव उपाध्याय की रिपोर्ट)
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