
छत्तीसगढ़ में विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा 2025 का शुभारंभ आज हरेली अमावस्या के पावन अवसर पर पाट जात्रा की पारंपरिक रस्म से हो गया. सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ दंतेश्वरी मंदिर परिसर में उमड़ी रही, जहां विधिवत पूजा-पाठ और पहली पवित्र लकड़ी की अर्चना के साथ इस 75 दिवसीय उत्सव की शुरुआत हुई.
618 साल से चल रही परंपरा-
बस्तर दशहरा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह देश का ऐसा दशहरा है, जिसमें रावण दहन नहीं होता, बल्कि देवी दंतेश्वरी की आराधना और रथ परिक्रमा की जाती है. यह परंपरा लगभग 618 वर्षों से चली आ रही है और इसे दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला दशहरा उत्सव माना जाता है. हर वर्ष बस्तर दशहरा की शुरुआत पाट जात्रा से होती है. इस दिन जंगल से लाई गई पवित्र लकड़ी, जिसे स्थानीय बोली में ‘ठुरलू खोट्ला’ कहा जाता है, को विधिविधान से पूजन कर रथ निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत होती है. इसे देवी दंतेश्वरी से दशहरा उत्सव की अनुमति लेने की प्रथम रस्म माना जाता है.
इस अवसर पर बस्तर दशहरा समिति, जनप्रतिनिधि, अधिकारियों और हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में पारंपरिक अंदाज़ में पूजा-अर्चना हुई. लकड़ी की पूजा के बाद पशु बलि की रस्म भी पूरी की गई. अगले कुछ दिनों में बस्तर के दो प्रमुख गांव – बड़े उमरगांव और छोटे उमरगांव के पारंपरिक कारीगर विशालकाय दुमंजिला रथ के निर्माण में जुट जाएंगे.
कब हुई थी बस्तर दशहरा की शुरुआत-
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार, बस्तर दशहरा की रथयात्रा की शुरुआत सन् 1408 ई. के बाद चालुक्य वंश के चौथे शासक राजा पुरूषोत्तम देव ने की थी. तब से लेकर अब तक यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जाती रही है. दशहरा के दौरान अनेक अनूठी रस्में निभाई जाती हैं, जैसे काछन देवी का झूला, रैनी रथ चोरी, मुरिया दरबार और अंत में देवी विदाई, जो इसे बाकी देश के दशहरों से पूरी तरह अलग बनाती हैं. बस्तर सांसद और बस्तर दशहरा समिति के पदेन अध्यक्ष महेश कश्यप ने इस मौके पर कहा कि यह पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा और संस्कृति का जीवंत प्रमाण है.पूरे विश्व में ऐसा दूसरा कोई आयोजन नहीं है. वहीं, पदेन सचिव व तहसीलदार रुपेश कुमार मरकाम ने कहा कि पाट जात्रा से लेकर देवी विदाई तक की हर रस्म में गहरी आस्था, अनुशासन और परंपरा का निर्वहन होता है, जो बस्तर की पहचान है.
(धर्मेन्द्र महापात्र की रिपोर्ट)
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