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देवोत्थान एकादशी 2021: कल से शुरू होंगे शुभ कार्य, जानिए इस दिन क्या करें व क्या न करें

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान या देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व है क्योंकि हिन्दू धर्म में सामान्यतः आषाढ़ से कार्तिक माह तक शुभ कार्य बंद रहते हैं. माना जाता है कि इस समय देवता और मुख्य रूप से श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं. इसके बाद, देवोत्थान एकादशी के दिन श्री हरि योगनिद्रा से जगते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
हाइलाइट्स
  • देवोत्थान एकादशी से शुरू हो जाते हैं सभी शुभ कार्य

  • इस दिन व्रत करने का होता है विशेष महत्व

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान या देव उठनी एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व है क्योंकि हिन्दू धर्म में सामान्यतः आषाढ़ से कार्तिक माह तक शुभ कार्य बंद रहते हैं. माना जाता है कि इस समय सभी देवता और मुख्य रूप से श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं. 

इसके बाद, देवोत्थान एकादशी के दिन श्री हरि योगनिद्रा से जगते हैं. तब जाकर शुभ कार्य फिर से शुरू होते हैं. यह अवसर हिन्दू धर्म में विशेष आनंद और मंगल का माना जाता है. 

कब है देवोत्थान एकादशी:

इस साल देवोत्थान एकादशी की तारीख को लेकर एक संशय बना हुआ है कि यह 14 नवंबर को है या 15 नवंबर को है. लेकिन ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, इस साल एकादशी तिथि 14 नवंबर सुबह 5:48 से शुरू होकर 15 नवंबर सुबह 6:39 तक रहेगी.

14 नवंबर की सुबह से एकादशी का व्रत रखा जाएगा और 15 नवंबर की सुबह  भगवान श्री विष्णु की पूजा करके व्रत का पारण करें.

क्या है देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि:

देवोत्थान एकादशी के दिन विधिवत पूजा करने का बहुत महत्व होता है. इस दिन गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाया जाता है. चौक के बीच में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं. चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाये जाते हैं. जिसको ढक दिया जाता है. 

भगवान को गन्ना, सिंघाडा तथा फल-मिठाई समर्पित किए जाते हैं. साथ ही, घी का एक दीपक जलाया जाता है जो रात भर जलता रहता है. सुबह के समय भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की जाती है. फिर चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता है. 

इस समय शंख व घंटा बजाया जाता है और कीर्तन किया जाता है. इसके बाद व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है. इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरू किये जा सकते हैं. 

क्या है देवोत्थान एकादशी का महत्व:

भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं. इसके बाद, कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं. इन चार महीनो में देव शयन के कारण सभी मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. लेकिन देवोत्थान एकादशी से सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. 

इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है. कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा इस दिन तुलसी विवाह, और दीप-दान का भी महत्व है. 

इस दिन न करें यह काम: 

देवोत्थान एकादशी के दिन भूल से भी न करें यह काम: 

  • एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है. इसलिए इस दिन चावल न खाएं.
  • अगर आपने एकादशी का व्रत रखा है तो इस दिन किसी लकड़ी के दातुन या टूथपेस्ट से अपने दांत साफ न करें. क्योंकि इस दिन किसी पेड़-पौधे को नहीं तोड़ना चाहिए.
  • एकादशी के दिन तुलसी भी नहीं तोड़नी चाहिए.
  • व्रत रखने वाले भूल से भी गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग आदि का सेवन नहीं करें. 
  • इस दिन घर में भूलकर भी कलह न करें.