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Do you Know: मुसलमानों से जोड़े जाने वाले चांद-सितारे की शुरुआत कहां से हुई? जानिए इसका पूरा इतिहास

तुर्की, पाकिस्तान, अल्जीरिया, अज़रबैजान और कई अन्य मुस्लिम देशों के राष्ट्रीय झंडे पर चांद-सितारे का प्रतीक मौजूद है. शायद यही वजह है कि इसे इस्लाम और मुसलमानों से जोड़ा जाने लगा है. लेकिन इसकी शुरुआत कहीं और हुई थी. इस झंडे का संबंध इस्लाम से तो क़तअन नहीं है.

Representational Image: Freepik Representational Image: Freepik

पाकिस्तान और तुर्की जैसे मुल्कों के झंडों पर मौजूद चांद-सितारे का प्रतीक दुनिया भर में इस्लाम और मुस्लिम कल्चर से जोड़ा जाता है. ट्यूनीशिया, अलजीरिया और अज़रबैजान सहित कई अन्य देशों के राष्ट्रीय ध्वज पर चांद-सितारे का प्रतीक मिल जाता है. मुस्लिम समाज के कई लोग भी शायद समझते हों कि इसका ताल्लुक़ इस्लाम से है. आम धारणा के विपरीत, इस प्रतीक का इस्लाम धर्म से कोई सीधा धार्मिक संबंध नहीं है. 

तो आखिर इस प्रतीक के इस्तेमाल की शुरुआत कहां से हुई? इसका इतिहास क्या है? इसकी शुरुआत और कई मुस्लिम राष्ट्रों का प्रतीक बनने तक इसके ऐतिहासिक विकास को समझने के लिए हमें प्राचीन सभ्यताओं और ऐतिहासिक घटनाओं की गहराई में जाना होगा. 

झंडे पर कैसे पहुंचा चांद-सितारे का प्रतीक?
चांद और सितारे का प्रतीक इस्लाम के उदय से बहुत पहले का है. प्राचीन मेसोपोटामिया, मिस्र और अन्य सभ्यताओं में चंद्रमा को अक्सर देवताओं और खगोलीय शक्तियों से जोड़ा जाता था. सितारे और चंद्रमा ज़रख़ेज़ी (Fertility) के प्रतीक थे. चांद और सितारे जब एक साथ आ जाते थे तो वह देवी आईसिस और चंद्र देव खोंसू का प्रतीक माने जाते थे. 

इसी तरह मेसोपोटामिया में चंद्र देवता सिन (Sin) की पूजा की जाती थी और चंद्रमा का प्रतीक विभिन्न संस्कृतियों में महत्वपूर्ण था. सितारों को नेविगेशन और समय मापने के लिए भी उपयोग किया जाता था, जो प्राचीन समाजों में खगोलीय प्रतीकों को महत्वपूर्ण बनाता था. 

बाइज़ैंटीन साम्राज्य से तुर्कों तक पहुंचा
चांद-सितारे के प्रतीक का आधुनिक स्वरूप बाइज़ैंटीन साम्राज्य से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है. कॉन्स्टेंटिनोपल (आधुनिक इस्तांबुल) शहर इस प्रतीक का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. बाद में यह तुर्क साम्राज्य का हिस्सा बन गया. किंवदंती के अनुसार, कॉन्स्टेंटिनोपल के संस्थापक सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने चांद और सितारे को शहर के प्रतीक के रूप में अपनाया. 

यह प्रतीक बाद में तुर्क साम्राज्य, विशेष रूप से उस्मानी साम्राज्य (Ottoman Empire) ने इस्तेमाल किया. उस्मानी साम्राज्य के दौरान चांद-सितारा धीरे-धीरे तुर्क पहचान का हिस्सा बन गया और उनके झंडों पर प्रमुखता से दिखाई देने लगा.

इस्लाम से कथित संबंध
यह धारणा कि चांद-सितारा इस्लाम का प्रतीक है, मुख्य रूप से उस्मानी साम्राज्य के प्रभाव के कारण फैली. उस्मानी साम्राज्य 13वीं से 20वीं सदी तक इस्लामी खलीफा का केंद्र रहा. साम्राज्य ने इस प्रतीक को अपने झंडों और सैन्य प्रतीकों में प्रमुखता दी. चूंकि उस्मानी साम्राज्य इस्लाम का एक प्रमुख प्रतिनिधि था, इसलिए चांद-सितारे को धीरे-धीरे इस्लाम से जोड़ा जाने लगा. हालांकि इस्लाम में कोई धार्मिक ग्रंथ या परंपरा इस प्रतीक को आधिकारिक तौर पर इस्लाम का प्रतीक घोषित नहीं करती. कुरान या हदीस में चांद-सितारे का कोई खास ज़िक्र नहीं है.

पाकिस्तान के झंडे पर चांद-सितारा 1947 में आज़ादी के बाद अपनाया गया. इसमें हरा रंग इस्लाम और सफेद पट्टी अल्पसंख्यकों का प्रतीक है. पाकिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज में चांद-सितारा प्रगति और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है. बात अगर तुर्की के झंडे की करें तो यहां यह प्रतीक उस्मानी विरासत से लिया गया है. 

यानी चांद-सितारे का प्रतीक प्राचीन धार्मिक प्रतीकवाद से पैदा हुआ और बाइज़ैंटीन व उस्मानी प्रभावों के ज़रिए से आधुनिक युग में प्रचलित हुआ. इसे भले ही इस्लाम से जोड़ा जाता है, लेकिन इसका मूल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक है. पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों ने इसे अपनी राष्ट्रीय पहचान के हिस्से के रूप में अपनाया जो उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है.