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Do You Know: पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण देने की परंपरा क्यों है? जानिए घर पर श्राद्ध और तर्पण करने की आसान विधि

देश-विदेश में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों को तर्पण देते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

Pitru Paksha Pitru Paksha

पितृ पक्ष का प्रारंभ अश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि से होता है. आज पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि है. पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध, धूप-ध्यान, पिंडदान, तर्पण आदि धर्म-कर्म करने की परंपरा है.

देश-विदेश में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों को तर्पण देते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. आइए जानते हैं कि पितृ पक्ष में तर्पण क्यों दिया जाता है, इसका क्या महत्व है और इसे कैसे किया जाता है.

पितृ पक्ष क्या है?
पितृ पक्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष (अश्विन के पहले दिन से लेकर अमावस्या तक) का काल होता है. यह समय मृत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है. इस दौरान परिवार के सदस्य पितरों के नाम तर्पण और पिंडदान करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म से पितर प्रसन्न होते हैं और वे अपने वंशजों की रक्षा करते हैं.

पितृ पक्ष में तर्पण की परंपरा क्यों?
तर्पण का शाब्दिक अर्थ है "प्यास बुझाना". पितर जो इस लोक से विदा होकर दूसरे लोक में निवास करते हैं, वे अपने जीवित वंशजों के सत्कार और तर्पण से तृप्त होते हैं. यह पितृदोष और अन्य बाधाओं को दूर करने का उपाय भी माना जाता है.

पुराणों और वेदों में पितरों को तर्पण देने का उल्लेख मिलता है. वेदों के अनुसार, पितर अपने वंशजों की भलाई के लिए परम शक्तियों से जुड़े होते हैं. अगर उनका तर्पण सही समय और विधि से किया जाए तो इससे परिवार में सुख, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है.

घर पर श्राद्ध और तर्पण करने की आसान विधि

  • सुबह जल्दी उठें और स्नान करें. नहाने के बाद पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध और दान का संकल्प लें.

  • दोपहर करीब 12 बजे दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें.

  • बाएं पैर को मोड़ें और घुटनों को जमीन पर टिकाकर बैठ जाएं.

  • तांबे के बर्तन में जौ, तिल, चावल, कच्चा दूध, गंगाजल, फूल और पानी डालें.

  • कुशा घास हाथ में लें और जल से भरे बर्तन में सीधे हाथ के अंगूठे से जल गिराएं. ऐसा 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें.

  • गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं. जब धुआं रुक जाए तो उसमें घी, गुड़ और थोड़ी-थोड़ी खीर-पूड़ी अर्पित करें.

  • होली (जल पात्र) में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पण करें.

  • इसके बाद देवता, गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों के लिए अलग से भोजन निकालें.

  • जरूरतमंदों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा दें.

तर्पण से क्या लाभ होता है?
पितृ तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. इससे उनकी ओर से शुभ फल मिलने की संभावना बढ़ती है.

पितृदोष से मुक्ति: ज्योतिषशास्त्र में माना जाता है कि यदि पितृदोष हो तो व्यक्ति के जीवन में अनेक कष्ट और बाधाएं आती हैं. तर्पण से यह दोष शांत होता है.

परिवार में सुख-शांति: तर्पण करने से परिवार में सौहार्द, शांति और समृद्धि बनी रहती है.

धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ: तर्पण से आत्मा का दुष्ट प्रभाव समाप्त होता है और वंशजों को आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है.

पितरों का आशीर्वाद: पितर प्रसन्न होकर वंशजों की रक्षा करते हैं और जीवन की कठिनाइयों से बचाते हैं.

तर्पण कैसे किया जाता है?
पितृ पक्ष में सूर्यास्त के बाद नदी, तालाब या किसी पवित्र जलाशय के किनारे तर्पण करने की परंपरा है. व्यक्ति शुद्ध जल लेकर, धतूरा, जौ, तिल, अक्षत (चावल), और जल अर्पित करता है. साथ ही पितरों के नाम मंत्रोच्चारण और पूजा-अर्चना की जाती है. पंडित या ज्येष्ठ पुत्र तर्पण करते हैं. पौत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार होता है.