Ganga saptami subh vivah and muhurat
Ganga saptami subh vivah and muhurat गंगा मां भी हैं और देवी भी हैं. गंगा जीवनदायनी हैं. गंगा गंगोत्री से निकल कर गंगासागर में विलीन हो जाती हैं. लेकिन गंगोत्री से गंगासगर तक के सफर में गंगा शहरों को छू कर उसे तीर्थ बना देती है. गंगा के इसी चमत्कारी शक्ति के बारे में शास्त्र कहता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा शिव के जटाओं में अवतरित हुईं. इसके बाद गंगा की उत्पत्ति पृथ्वी पर हुई. इस तिथि को मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के कारण इस दिन को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. धार्मिक दृष्टि से हिंदू धर्मावलम्बियों में गंगा सप्तमी का विशेष महत्व है. इस दिन लोग गंगा में स्नान करते हैं और मां गंगा की विधि-विधान से पूजा अर्चना करते हैं.
कब है गंगा सप्तमी व्रत?
गंगा सप्तमी की उदयातिथि 8 मई को है. इसलिए इस बार गंगा सप्तमी 8 मई को मनाई जाएगी. इसका शुभ समय 10:57 मिनट से लेकर दोपहर 2:38 मिनट तक होगा. पूजा के लिए शुभ समय 2 घंटे 41 मिनट तक रहेगा. गंगा सप्तमी के दिन रविपुष्य योग का निर्माण भी हो रहा है.
क्या है इसका महत्व?
गंगा सप्तमी एक प्रकार से गंगा के पुनर्जन्म का दिन है इसलिये इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. यदि गंगा नदी में जाकर स्नान करना संभव न भी हो तो गंगा जल की कुछ बूंदें साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जाता है. वहीं गंगा सप्तमी के दिन गंगा मैया के पूजन और स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है. समस्त पापों का क्षय होता है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं. इस तिथि पर गंगा स्नान और तप ध्यान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन गंगा पूजा करने से मांगलिक दोष से पीड़ित व्यक्ति को काफी लाभ होता है. विधि-विधान से किया गए गंगा का पूजन अमोघ फल प्रदान करता है.
शास्त्रों के अनुसार, गंगा सप्तमी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी जरूरतमंद, गरीबों, असहाय और ब्राह्मणों को वस्त्र, अन्न और फल दान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति है. मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई जन्मों के पुण्य के रूप में मनुष्य को प्राप्त होता है.
गंगा सप्तमी की कथा
गंगा सप्तमी मनाए जाने के पीछे पुराणों में दो कथाएं मिलती हैं. पहली कथा के अनुसार, मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होने से पूर्व भगवान शिव के जटाओं में उतरी थीं. गंगा के वेग को रोकने के लिए भगवान शिव ने उनको अपनी जटाओं में बांध दिया था, जिसकी वजह से उनको पृथ्वी पर उतरने का मौका नहीं मिला. इस बात का ध्यान भगीरथ को भी नहीं था. एक बार फिर भगीरथ ने भगवान शिव को अपनी कठोर तप से प्रसन्न किया और मां गंगा को उनकी जटाओं से होते हुए पृथ्वी पर अवतरित होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ. तब जाकर मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं और राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया.
गंगा सप्तमी से जुड़ी दूसरी कथा मां गंगा के एक नाम जाह्नवी से जुड़ी है. गंगा पृथ्वी पर आते ही प्रचंड वेग से बह रही थीं. महर्षि जहनु अपने आश्रम में ध्यान में लीन थे तभी गंगा अपने वेग के अभिमान में ऋषि का आश्रम बहा ले गईं. इस पर ऋषि ने क्रोध में अपने तपो बल से गंगा को स्वयं में समाहित कर लिया. तब भगवान शंकर के कहने पर ऋषि जहनु ने गंगा को मुक्त किया. इसीलिए गंगा को ऋषि जहनु की पुत्री और जाह्नवी कहा गया है. एक मान्यता के अनुसार गंगा सप्तमी पर ही मां गंगा और मां नर्मदा का मिलन हुआ था इसीलिए इस दिन इन दोनों नदियों में स्नान की मान्यता कही गई है.
गंगा स्नान और पूजा विधि
गंगा सप्तमी की पुण्य तिथि पर भक्त मां गंगा की पावन धारा में दीपदान करते हैं. इस दिन गायत्री मंत्र और गंगा सहस्त्रनाम का जाप किया जाता है. गंगा सप्तमी पर गंगा स्नान का महत्व है. गंगा स्नान संभव ना हो तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. गंगा सप्तमी पर सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहनें. पूजाघर में ही चौकी रखकर मां गंगा की प्रतिमा या चित्र रखें. गंगा पूजन के लिए कलश स्थापना करें. इसके बाद कलश में रोली, अक्षत, इत्र, शहद, गंगाजल और दूध डालें. कलश के ऊपर पांच अशोक के पत्ते रखें. कलश पर नारियल में कलावा बांधकर रख दें. मां गंगा को लाल कनेर के फूल, लाल चंदन, फल और मिठाई अर्पित करें और ऊँ गं गंगायै हरवल्लभायै नमः” का 108 बार जप जरूर करें. इसके बाद मां गंगा की आरती करें.
मां गंगा की पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं जीवन में खुशहाली का आगमन होता है. वैशाख महीना भगवान विष्णु का माह है इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा भी करनी चाहिए. गंगा सप्तमी के दिन गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं. कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है.