

महाराष्ट्र के अकोला जिले में मां अन्नपूर्णा का एकमात्र मंदिर है, जो भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति और सेवा का अनोखा उदाहरण पेश करता है. लगभग एक एकड़ में फैला यह मंदिर परिसर, खासकर शारदीय नवरात्रों के समय पूरी तरह से झूमरों की रौशनी से जगमगा उठता है. यहां भक्त माता अन्नपूर्णा की कृपा का अनुभव लेने के लिए दूर-दूर से आते हैं और भंडारे में प्रसाद ग्रहण कर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं.
15 साल पहले हुई थी मंदिर की स्थापना
अकोला में मां अन्नपूर्णा मंदिर का स्थापना 15 साल पहले नंदकिशोर पाटिल ने अपने निजी जमीन पर की थी. वर्तमान में मंदिर के सेवाधारी अन्नपुर्णेश पाटिल बताते हैं कि उनके पिता ने यह मंदिर 2009 में नवरात्रि की तीसरी माला के दिन स्थापित किया.
मंदिर स्थापना के पीछे की कहानी काफी रोचक है. नंदकिशोर पाटिल के पिता बचपन में संपन्न परिवार में जन्मे थे, लेकिन समय के साथ उनकी संपत्ति और शोहरत चली गई. जीवन की कठिनाइयों के दौरान उन्हें अन्नपूर्णा माता की भक्ति करने वाली एक महिला मिली, जिन्होंने उन्हें माता का व्रत करने की सलाह दी. व्रत करने के दौरान उनके पिता इंदौर गए और बस से उतरते ही उन्होंने इंदौर में मां अन्नपूर्णा का मंदिर और उसमें तेजस्वी प्रतिमा देखी. यह दृश्य देखकर उनके पिता प्रभावित हुए और उन्होंने अकोला में मां अन्नपूर्णा का मंदिर बनाने का संकल्प लिया.
कुछ वर्षों की मेहनत और श्रद्धा के बाद, अकोला में महाराष्ट्र का एकमात्र अन्नपूर्णा माता मंदिर स्थापित हुआ.
दान नहीं, सिर्फ भक्ति और सेवा
मंदिर के संचालन में सबसे अनोखी बात यह है कि यहां कहीं भी दान-पेटी नहीं रखी गई है, और न ही किसी से दान या दक्षिणा ली जाती है. अन्नपुर्णेश पाटिल बताते हैं, “मां अन्नपूर्णा सभी को देने वाली हैं. हम किसी से दान लेकर दान नहीं देते. भक्तों की सेवा करना और प्रसाद देना ही हमारी भक्ति है.”
शारदीय नवरात्र उत्सव के दौरान, मंदिर परिसर में भंडारा का आयोजन रोजाना किया जाता है, जिसमें हजारों लोग माता अन्नपूर्णा की कृपा से प्रसाद ग्रहण करते हैं. यह भंडारा और सेवा का कार्य पूरी तरह से श्रद्धा और भक्तिभाव पर आधारित है.
भक्तों के दुख-दर्द हर लेती हैं अन्नपूर्णा माता
अकोला का यह मंदिर न केवल महाराष्ट्र में अनोखा है, बल्कि यह भक्तों के लिए आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र भी है. भक्त यहां आकर माता के आशीर्वाद लेते हैं और जीवन की कठिनाइयों से राहत पाते हैं. अन्नपूर्णा माता की मान्यता है कि वह भक्तों के दुख-दर्द हर लेती हैं और सभी को अन्न की पूर्णता प्रदान करती हैं.
मंदिर परिसर में झूमर से रोशनी का विशेष आकर्षण नवरात्रों में देखने को मिलता है. भक्त यहां दूर-दूर से आते हैं और मां अन्नपूर्णा की कृपा के अनुभव के साथ भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं.
दान की व्यवस्था नहीं है
अकोला के इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह निजी भूमि पर निजी श्रद्धा से बना, लेकिन पूरी तरह से सभी भक्तों के लिए खुला है. नंदकिशोर पाटिल और उनके परिवार ने अपने निजी प्रयासों से यह मंदिर स्थापित किया और अब अन्नपुर्णेश पाटिल इसका संचालन कर रहे हैं.
उन्होंने साफ-साफ कहा है कि दान की व्यवस्था नहीं होने के बावजूद मंदिर रोजाना हजारों भक्तों के लिए प्रसाद और भंडारा आयोजित करता है. यही वजह है कि यह मंदिर सेवा, भक्ति और श्रद्धा का एक जीता-जागता उदाहरण बन गया है.
रिपोर्ट-धनंजय साबले