
अब राखी का त्योहार सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं रहा, यह अब एक सामाजिक और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गया है. नोएडा की महिलाओं ने इस रक्षाबंधन पर “मेड इन इंडिया” की ताकत दिखा दी है. अब देशभर में चाइनीज़ राखियों की जगह हाथ से बनी भारतीय राखियों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. इस बार बाजार में लोकल राखियों को जबरदस्त रिस्पॉन्स मिल रहा है और खासकर नोएडा का एक सेंटर इस बदलाव का उदाहरण बन गया है.
सखा एक पहल फाउंडेशन का अनोखा सेंटर
नोएडा में 'सखा एक पहल फाउंडेशन' नाम की संस्था महिलाओं को रोजगार देने और स्ट्रीट डॉग्स की सेवा के मिशन के साथ काम कर रही है. इस फाउंडेशन ने मई के आखिर से ही राखियों का निर्माण शुरू कर दिया था.
यहां हाउस वाइव्स खुद अपने हाथों से खूबसूरत और ट्रेंडिंग राखियां बना रही हैं. हर राखी में परंपरा और आधुनिकता का अनोखा मेल दिखाई देता है.
अब तक यहां से 1000 से ज्यादा राखियां बिक चुकी हैं.
महिलाओं के हुनर की पहचान
इस सेंटर पर महिलाएं बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग डिज़ाइनों की राखियां बना रही हैं. इन राखियों में क्राफ्टिंग, कलर कंबिनेशन और थीम्स का खास ख्याल रखा गया है ताकि हर उम्र और पसंद के व्यक्ति को कुछ न कुछ खास मिल सके.
यह पहल उन महिलाओं के लिए एक बड़ा सहारा बन गई है जो घर संभालने के साथ-साथ कुछ कमाना भी चाहती थीं. अब वे आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने परिवार में आर्थिक योगदान दे पा रही हैं.
स्ट्रीट डॉग्स के लिए भी राखी!
इस सेंटर की एक और खास बात है डॉग फ्रेंडली राखी. यहां स्ट्रीट डॉग्स के लिए भी राखियां बनाई गईं, जो कुछ ही घंटों में हाथों-हाथ बिक गईं.
फाउंडेशन की शुरुआत ही स्ट्रीट डॉग्स को खाना, इलाज और शेल्टर मुहैया कराने के उद्देश्य से हुई थी. आज भी संस्था अपने उत्पादों की कमाई का 30% हिस्सा इन बेजुबानों की भलाई में खर्च करती है.
विदेशों तक पहुंचा नोएडा की राखियों का जादू
इन हाथ से बनी राखियों की डिमांड अब सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक पहुँच चुकी है. संस्था के कई उत्पाद अमेरिका, कनाडा और यूरोपियन देशों में भी भेजे जा रहे हैं. इससे 'लोकल से ग्लोबल' का सपना भी साकार होता दिख रहा है.
इस रक्षाबंधन पर नोएडा का यह केंद्र 'वोकल फॉर लोकल' का असली उदाहरण बन चुका है. यह न सिर्फ महिलाओं को रोजगार दे रहा है, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी भी निभा रहा है.