
नवरात्र का पावन पर्व आते ही मां विंध्यवासिनी धाम में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है. विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का यह धाम सिद्धपीठ माना जाता है. मान्यता है कि यहां माता अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान हैं, जबकि देश के अन्य शक्तिपीठों में माता सती के अंग गिरे थे. इसी कारण यह धाम विशेष महत्व रखता है.
चार रूपों में दर्शन देती हैं मां
विंध्य पर्वत और गंगा के पावन संगम पर विराजमान माता विंध्यवासिनी भक्तों को चार स्वरूपों महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती और मां तारा में दर्शन देती हैं. मां श्रीयंत्र पर विराजमान होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. यही कारण है कि माता को बिंदुवासिनी भी कहा जाता है.
देवता भी लगाते हैं हाजिरी
मान्यता है कि प्रतिदिन मां की आरती के समय देवी-देवता भी दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए उपस्थित होते हैं. आदिशक्ति की महिमा का बखान देवताओं ने स्वयं किया है. ऋषि-मुनियों के लिए भी यह धाम प्राचीन काल से तपोस्थली रहा है.
देवासुर संग्राम से जुड़ी कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवासुर संग्राम के दौरान त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने माता विंध्यवासिनी के दरबार में तपस्या की थी. माता की कृपा से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की और जगत के कल्याण का वरदान मिला. तभी से यह स्थान मणिद्वीप नाम से भी विख्यात हुआ.
नवरात्र में पूरी होती हैं मनोकामनाएं
नवरात्र में माता विंध्यवासिनी के धाम की छटा निराली होती है. मंदिर के शिखर पर लगे पताखा (ध्वज) का दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है. दूर-दराज से आने वाले भक्त यहां माता का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं और दर्शन-पूजन कर अपने जीवन को सार्थक मानते हैं.
मां को प्रिय है मखाने की खीर
माता विंध्यवासिनी को मखाने की खीर और हलवा-पूरी का भोग प्रिय है. नवरात्र में बड़ी संख्या में श्रद्धालु यह प्रसाद चढ़ाते हैं. कहा जाता है कि इससे मां प्रसन्न होकर भक्तों की झोली खुशियों से भर देती हैं.
---सुरेश कुमार सिंह