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पूर्णामिकावु मंदिर में देवी की मूर्तियों का नाम मलयालम वर्णमाला के 51अक्षरों के नाम पर, दुनिया में पहला ऐसा मंदिर

पूर्णामिकावु मंदिर केवल पूर्णिमा के दिन ही खुलता है. यह मलयालम वर्णमाला के 51 अक्षरों के नामों पर आधारित 51 देवियों का मंदिर है जिसे नवरात्र में प्राणप्रतिष्ठा के बाद लोगों के लिए खोला जाएगा.

देवी की मूर्तियों का नाम मलयालम वर्णमाला के 51अक्षरों के नाम पर देवी की मूर्तियों का नाम मलयालम वर्णमाला के 51अक्षरों के नाम पर
हाइलाइट्स
  • पूर्णामिकावु मंदिर केवल पूर्णिमा के दिन ही खुलता है.

  • ये मलयालम वर्णमाला के 51 अक्षरों पर आधारित 51 देवियों का मंदिर है.

तिरुवनंतपुरम के पूर्णामिकावु देवी मंदिर (Pournamikavu Devi Temple) में देवी की मूर्तियों का नाम वर्णमाला के 51 मलयालम अक्षरों के नाम पर रखा जाएगा.  पूर्णामिकावु मंदिर के ट्रस्टी एम एस भुवनचंद्रन ने शनिवार को बताया कि यह दुनिया का पहला मंदिर है जहां 51 मूर्तियों पर 51 अक्षर उकेरे गए हैं. 

 पूर्णामिकावु मंदिर के लिए इन 51 देवियों की ये प्रतिमाएं तमिलनाडु के तंजावुर के निकट मइलाडी गांव में बनायी गयी हैं. ये स्थान मूर्तिकला के दुनियाभर में प्रसिद्ध है. पूर्णामिकावु मंदिर केवल पूर्णिमा के दिन ही खुलता है. यह मलयालम वर्णमाला के 51 अक्षरों के नामों पर आधारित 51 देवियों का मंदिर है जिसे नवरात्र में प्राणप्रतिष्ठा के बाद लोगों के लिए खोला जाएगा. मइलाडी के मूर्तिकारों ने इन मूर्तियों को बारीकी से पत्थर पर उकेरा है. सभी मूर्ति के नीचे उस देवी को निरूपित करने वाला अक्षर भी खूबसूरती से बनाया गया है. 

मंदिर की मुख्य देवी बाला भद्र देवी हैं

मंदिर की मुख्य देवी बाला भद्र देवी हैं जिन्हें भद्रकाली के पांच अलग-अलग रूपों में माना जाता है. ये रूप हैं बाला भद्र, सौम्य भद्र, वीरा भद्र, क्रोध भद्र, समारा भद्र. बाला भद्र देवी पदकालियम्मन (युद्ध की देवी) थीं, जिनकी पूजा तिरुवनंतपुरम के आज़ी शाही परिवार के शासनकाल के दौरान की जाती थी. पूर्णामिकावु मंदिर का वार्षिक उत्सव मार्च के महीने में तीन दिनों तक मनाया जाता है. 

मंदिर के ट्रस्टी एम एस भुवनचंद्रन का कहना है कि वेदों के अनुसार अक्षरों में खास  शक्ति होती है. अक्षरों की इन्हीं शक्तियों के आधार पर ऋग्वेद, शिव संहिता, देवी भागवत, हरिनाम कीर्तनम् और आदिशंकर की रचनाओं में सभी मलयालम अक्षर की देवियों की पहचान की गई है. प्राचीन काल में वैज्ञानिकों और ऋषियों ने अक्षरों और शब्दों की शक्ति को पहचाना था. 

सभी अक्षरों के देव नारी स्वरूप में हैं

भुवनचंद्रन ने कहा कि पहली चुनौती यह थी कि इस पूरे ज्ञान को वैज्ञानिक रीति से इस्तेमाल किया जाए और प्रतिमाओं के स्वरूप का निर्धारण किया जाए. उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों के आधुनिक शिक्षा केंद्रों और प्रमुख विश्वविद्यालयों में भी मंत्रों की शक्ति का अध्ययन-विश्लेषण किया गया है. मूर्तिकारों और शोधकर्ताओं ने इन अध्ययनों को गहनता से समझकर वेदों में लिखे ज्ञान से उसकी तुलना की. अध्ययन के परिणामस्वरूप उन्हें पता चला कि सभी अक्षरों के देव नारी रूप यानि कि देवी स्वरूप में हैं. 

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