
जहां पूरे देश में रक्षा बंधन पर बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, वहीं ओडिशा के पुरी स्थित विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में यह त्योहार एक अनोखे और दिव्य अंदाज में मनाया जाता है. यहां भगवान जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलराम को विशेष राखियां पहनाई जाती हैं. यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही आध्यात्मिक परंपरा है, जिसे देखने हर साल श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
अनोखी तारीख और खास परंपरा
पुरी में यह रक्षा बंधन देश के बाकी हिस्सों से थोड़ी अलग तारीख को मनाया जाता है. यह त्योहार चित्ताला अमावस्या के दो दिन बाद, गम्मा पूर्णिमा के अवसर पर होता है. इस दिन मंदिर में राखियों का एक भव्य आयोजन होता है, जो भाई-बहन के प्यार के मानवीय त्योहार को देवत्व से जोड़ देता है.
चार रंगों में सजी दिव्य राखियां
यहां की राखियां साधारण धागों से नहीं बनतीं, बल्कि एक बेहद दुर्लभ प्राकृतिक पदार्थ- बसुगा पाटा- से तैयार की जाती हैं, जिसे खास कीड़ों से प्राप्त किया जाता है. इन राखियों को परंपरागत चार रंगों- लाल, नीला, हरा और पीला- से रंगा जाता है.
ये चारों राखियां न सिर्फ रंगों में, बल्कि अपनी गूढ़ आध्यात्मिक महत्ता में भी अनोखी हैं- ये संरक्षण और स्नेह का प्रतीक मानी जाती हैं.
15 दिन की मेहनत का नतीजा
इन राखियों को बनाने की जिम्मेदारी वर्षों से पुरी के कारीगरों के पास है. संतोष कुमार पात्रा, जो इस परंपरा से जुड़े प्रमुख कारीगर हैं, बताते हैं, “एक राखी बनाने में करीब 15 दिन लगते हैं. अभी 80% काम पूरा हो चुका है और बाकी अंतिम सजावट अगले 2-3 दिनों में हो जाएगी.”
इन राखियों की बुनाई, रंगाई और सजावट पूरी तरह हाथ से की जाती है, और इसमें पीढ़ियों से चली आ रही तकनीक का इस्तेमाल होता है.
मंदिर में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
मंदिर से आए विजुअल्स में देखा जा सकता है कि किस तरह श्रद्धालु और सेवक मिलकर तैयारी कर रहे हैं. रंग-बिरंगे धागे, पूजा सामग्री और मंत्रोच्चार की गूंज पूरे परिसर को पवित्र माहौल में डुबो देती है.
जैसे ही भगवान जगन्नाथ और बलराम को ये राखियां पहनाई जाती हैं, भक्त भाव-विभोर होकर इस पल को अपने कैमरों और दिलों में कैद कर लेते हैं. कई श्रद्धालु मानते हैं कि इस दिन मंदिर में राखी बांधने का दर्शन मात्र से ही भाई-बहन के रिश्ते में मजबूती आती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है.
मानवीय रिश्तों से जुड़ी आध्यात्मिक सीख
पुरी का यह रक्षा बंधन हमें यह संदेश देता है कि स्नेह, सुरक्षा और एकता का बंधन केवल इंसानों तक सीमित नहीं है. यह बंधन देवताओं के साथ भी उतना ही गहरा है. जिस तरह बहन अपने भाई से रक्षा का वचन लेती है, वैसे ही यहां भक्त भगवान से अपने और संसार के कल्याण का आशीर्वाद मांगते हैं.
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