
Ayodhya Ram Temple: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि परिसर स्थित भव्य राम दरबार की प्रथम झलक ने पूरे देश को एक अनूठी आध्यात्मिक अनुभूति से भर दिया. इस दिव्य दृश्य का प्रथम दर्शन और प्राण प्रतिष्ठा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधिवत रूप से संपन्न की गई. यह अवसर केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्र की भावनात्मक एकता का प्रतीक बन गया.
योगी आदित्यनाथ ने विधिपूर्वक वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच भगवान श्रीराम और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की. इस अवसर पर उन्होंने भगवान श्रीराम से राज्य की समृद्धि, सामाजिक सद्भाव और जनकल्याण की प्रार्थना की. यह दूसरी बार है जब श्रीराम मंदिर में इतने भव्य स्तर पर प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई है. पहली बार जनवरी 2024 में श्रीराम लला की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई थी.
भगवान श्रीराम का परिधान एवं मुद्रा
राम दरबार की यह प्रतिमा, जिसमें प्रभु श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमानजी एक साथ विराजमान हैं, एक संपूर्ण धर्म-दर्शन, पारिवारिक मर्यादा और भक्ति की प्रतिमूर्ति बन गई है. राम दरबार में मध्य में प्रतिष्ठित भगवान श्रीराम की प्रतिमा दिव्यता, संयम और मर्यादा की पराकाष्ठा को दर्शाती है. उनका परिधान अत्यंत पारंपरिक, समृद्ध और प्रतीकात्मक है. जिसमें काशी का प्रसिद्ध रेशमी सिल्क वस्त्र प्रयुक्त हुआ है. इस परिधान में बंधेज (बांधनी) की हल्की डाई की बारीक छपाई है, जो भारतीय वस्त्र शिल्प की परंपरागत सुंदरता को दर्शाती है.
भगवान राम ने पीले रंग की रेशमी धोती की है धारण
ड्रेस डिजायनर मनीष त्रिपाठी बताते हैं कि भगवान राम ने पीले रंग की रेशमी धोती धारण की है, जो न केवल शुभता और पवित्रता का प्रतीक है, बल्कि यह बुद्धि, विवेक और तेज का प्रतिनिधित्व भी करता है. धोती के किनारों और किनारों पर सुनहरे जरी का महीन व सुरुचिपूर्ण काम किया गया है, जिससे परिधान और अधिक भव्य एवं राजसी प्रतीत होता है. उनके वक्षस्थल पर लहराता कंधे से नीचे की ओर गिरता अंगवस्त्र, उसी पीले-स्वर्ण आभायुक्त रेशमी कपड़े से बना है, जो उनकी राजसी गरिमा और धर्मनिष्ठ जीवन का प्रतीक है.
रत्नजटित सुवर्ण मुकुट
भगवान राम का मस्तक एक रत्नजटित सुवर्ण मुकुट से अलंकृत है, जिसमें लाल, हरे और नीले माणिक्य रत्नों से जड़ा हुआ कलात्मक डिजाइन है. मुकुट के ऊपर ऊंचा कलशाकार शीर्ष है, जो उनके अधिराज्यत्व का प्रतीक है. उनके कानों में झूलते झुमके, हाथों में कड़ा और बाजूबंद और गले में मोती, स्वर्ण, रुद्राक्ष और रत्नों की विविध मालाएं उनकी वैभवपूर्ण दिव्यता को दर्शाती हैं.
भगवान राम के दाएं हाथ में है कमल पुष्प
भगवान राम के दाएं हाथ में कमल पुष्प है, जो सौम्यता, करुणा और शांति का प्रतीक है. यह पुष्प यह दर्शाता है कि वे बाह्य रूप से एक शक्तिशाली योद्धा हैं, परंतु अंतर्मन से विनम्र, उदार और कोमलचित्त हैं. उनके बाएं हाथ में धनुष है, जो उनके क्षत्रिय धर्म, रक्षक रूप और धर्म के लिए युद्ध करने की तत्परता का प्रतीक है.
पद्मासन मुद्रा में हैं विराजमान
प्रभु राम सिंहासन पर पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं. उनके चरणों के पास दो शेर अंकित हैं, जो साहस और स्थायित्व का प्रतीक हैं. उनका मुखमंडल अत्यंत शांत, करुणामय और तेजस्वी है. मानो समस्त सृष्टि की पीड़ा को आत्मसात करते हुए भी वे मर्यादा और न्याय से कभी विचलित नहीं होते. उनकी मुद्रा में न तो क्रोध है, न दंभ, न अधिक शस्त्रों का प्रदर्शन, न विलासिता का अतिरेक. यह संतुलन ही उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ बनाता है. एक ऐसा राजा जो केवल शक्तिशाली नहीं, बल्कि सर्वगुणसंपन्न, प्रजावत्सल और नीति के अधिष्ठाता हैं.
माता सीता की ड्रेस एवं मुद्रा
राम दरबार में भगवान श्रीराम के दाईं ओर विराजमान माता सीता केवल एक रानी नहीं, बल्कि भारतीय नारी आदर्श, पतिव्रता धर्म, त्याग और वात्सल्य की मूर्त रूप हैं. उनका परिधान पारंपरिक भारतीय राजसी परंपरा का प्रतीक है. उन्होंने गहरे गुलाबी रंग की काशी सिल्क की साड़ी धारण की है, जिसमें बंधेज (बांधनी) की महीन छपाई और सुनहरी जरी का बारीक कार्य है. यह परिधान संभवतः साड़ी और लहंगा दोनों की शैलियों से प्रेरित है, जिसमें कमरबंध और प्लीट्स के साथ देवीय गरिमा झलकती है.
स्वर्ण जटित मुकुट
मां सीता के सिर पर भी स्वर्ण जटित मुकुट है. इसमें रत्न जड़े हुए हैं, जो उन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप दर्शाते हैं. उनके गले में स्वर्ण हार, मोतियों की माला और उनकी कलाई में कंगन, बाजूबंद, कमर में कमरबंध तथा पैरों में पायलें हैं, जो उन्हें राजमाता और देवी दोनों की भूमिका में प्रतिष्ठित करते हैं.
चेहरा शांत, सौम्य और वात्सल्य से भरा
माता सीता का चेहरा शांत, सौम्य और वात्सल्य से भरा हुआ है. उन्होंने अपने दाहीने हाथ में कमल पुष्प धारण किया है, जो करुणा, मातृत्व और पवित्रता का प्रतीक है. उनकी आंखों में भक्तों के प्रति स्नेह और आशीर्वाद की झलक है. उनकी मुद्रा पूर्ण समर्पण और आत्मबल की परिचायक है, जहां वे पति धर्म के साथ-साथ समाज की स्त्री गरिमा की भी प्रतीक बन जाती हैं. राम के संग बैठी सीता, केवल पत्नी नहीं, 'शक्ति' रूप में 'रामत्व' की पूर्णता हैं.
लक्ष्मण जी की सेवा, त्याग और समर्पण की जीवंत मूर्ति
राम दरबार में सबसे बाईं ओर प्रतिष्ठित हैं लक्ष्मण जी, जो भगवान राम के अनन्य अनुयायी, सेवक और छोटे भाई के रूप में भक्ति, त्याग और धर्मपरायणता के प्रतीक हैं. उनका परिधान अत्यंत सादा किंतु गरिमामय है. उन्होंने पीले रंग की रेशमी धोती पहनी है, जो गुरु सेवा, निष्ठा और तेज का प्रतीक है. उनके ऊपर का अंगवस्त्र हरे रंग का है, जो संतुलन, सौम्यता और आत्मिक शांति को दर्शाता है.
अंगवस्त्र एक ओर से कंधे पर रखा गया है, जिससे उनकी विनम्रता और संयम प्रकट होता है. लक्ष्मण जी के परिधान पर सुनहरी जरी की महीन कढ़ाई की गई है और वे सिर पर मुकुट, गले में मोतियों और स्वर्ण की मालाएं, कलाई और भुजाओं में बाजूबंद-कड़े धारण किए हुए हैं. उनका चेहरा अत्यंत शांत, विनीत और समर्पण से युक्त है. उन्होंने दोनों हाथों में पुष्पमाला थाम रखी है और श्रीराम की ओर निहारते हुए खड़े हैं. यह उनकी निःस्वार्थ भक्ति और सदैव सेवा में तत्पर रहने की भावना का प्रतीक है. लक्ष्मण न केवल राम के साथ खड़े हैं, बल्कि रामत्व के स्थायी भाव, त्याग, कर्तव्य और समर्पण की मूर्त अभिव्यक्ति हैं.
हनुमान जी की ड्रेस एवं मुद्रा
राम दरबार में सबसे श्रद्धापूर्ण मुद्रा में विराजमान हैं हनुमान जी. वे भगवान राम के चरणों में वंदन करते हुए दिखते हैं. उन्होंने पीले रंग की धोती पहन रखी है, जो बल, ऊर्जा और सेवा का प्रतीक है. कमर पर लाल रंग का पट्टा बंधा हुआ है, जो उनके युद्धपराक्रम और भक्ति के तेज को दर्शाता है. उनके सिर पर मुकुट और शरीर पर कंठहार, बाजूबंद और अन्य आभूषण हैं.
हाथ जोड़कर वे श्रीराम के चरणों में बैठे हैं. उनकी मुद्रा सम्पूर्ण समर्पण, भक्ति और विनम्रता की है. उनके चेहरे पर प्रभु-दर्शन की आनंदानुभूति और शांति स्पष्ट झलकती है. हनुमान जी की इस मुद्रा को देख यह भाव स्वतः उपजता है कि सच्ची भक्ति में अहंकार का कोई स्थान नहीं होता. वे अपने ईश्वर को केवल आराध्य नहीं मानते, बल्कि उन्हें पूर्ण जीवन का केंद्र मानते हैं.
भरत जी की ड्रेस एवं मुद्रा समर्पण और निष्ठा का प्रतीक
राम दरबार में भगवान राम और माता सीता के सामने बैठे हुए हैं भरत जी, जो सेवा, समर्पण और आदर्श अनुशासन की प्रतिमूर्ति माने जाते हैं. उन्होंने पीले रंग की रेशमी धोती धारण की है, जो ज्ञान, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है.
उनके कंधे पर नीले रंग का अंगवस्त्र लहराता है, जो शांति, स्थिरता और विश्वास का द्योतक है. भरत जी के सिर पर छोटा स्वर्ण मुकुट सुशोभित है और उनके गले में मोती और स्वर्ण के विविध हार शोभा बढ़ा रहे हैं. उन्होंने एक हाथ में पुष्पमाला पकड़ी हुई है, जो नम्रता और भक्ति भाव को दर्शाती है. उनका मुखमंडल गंभीर, विनीत और ध्यानमग्न है.भरत जी की मुद्रा से स्पष्ट होता है कि वे अपने राम के चरणों में पूर्ण समर्पित, धर्मनिष्ठ और कर्तव्यपरायण हैं.
ऐसी है शत्रुघ्न जी की ड्रेस
राम दरबार में माता सीता के पास, भगवान श्रीराम के दाहिने ओर खड़े हैं शत्रुघ्न जी, जो निःस्वार्थ सेवा, त्याग और भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं. उन्होंने बैंगनी रंग का अंगवस्त्र और पीली रेशमी धोती धारण की है.
बैंगनी रंग त्याग और भक्ति का, जबकि पीला रंग सेवा और पवित्रता का प्रतीक है. उनके वस्त्रों पर सुनहरी ज़री की सुंदर कढ़ाई की गई है. शत्रुघ्न जी के सिर पर छोटा स्वर्ण मुकुट सुशोभित है और शरीर पर हार, कंगन, बाजूबंद जैसे आभूषण उन्हें एक राजसी और अनुशासित योद्धा के रूप में दर्शाते हैं. उन्होंने एक हाथ में पुष्प लिया है और दूसरा हाथ वंदन या आशीर्वाद मुद्रा में है, जो उनकी विनम्रता और श्रद्धा को दर्शाता है. उनकी शांत मुद्रा यह दर्शाती है कि वे राज्य, सत्ता या सम्मान के बजाय धर्म और भ्रातृ प्रेम को सर्वोच्च मानते हैं.
राम दरबार की सामूहिक महिमा
राम दरबार की यह भव्य प्रस्तुति केवल मूर्तियों का संग्रह नहीं, बल्कि धर्म, भक्ति और मर्यादा के समग्र आदर्शों की जीवंत प्रतिकृति है. प्रत्येक पात्र का वस्त्र, उनकी मुद्रा और उनकी स्थिति यह दर्शाती है कि जीवन के हर रिश्ते में जिम्मेदारी, प्रेम और त्याग कितना आवश्यक है.
इन सभी पात्रों की संयुक्त उपस्थिति दर्शाती है कि एक आदर्श समाज के निर्माण में केवल राजा नहीं, बल्कि परिवार, सेवक और सहयोगियों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है. विशेष बात यह है कि इन मूर्तियों के वस्त्र हर सप्ताह बदले जाएंगे और प्रत्येक बार वे कम से कम दो भारतीय राज्यों की पारंपरिक वस्त्र-शैली और कपड़ों का प्रतिनिधित्व करेंगे. इससे न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता झलकेगी, बल्कि राम दरबार के माध्यम से देश की एकता और समरसता का भी सशक्त संदेश मिलेगा.