
आज के दौर में तकनीक हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है. हर कार्य, हर आदत और हर भावना में कहीं न कहीं टेक्नोलॉजी की भूमिका दिखाई देती है. यही तकनीकी बदलाव अब श्रद्धा और भक्ति के रूप में भी नजर आने लगा है. जहां एक समय मंदिरों में केवल पूजा-अर्चना और ध्यान लगाया जाता था, वहीं अब लोग मंदिरों में दर्शन करने के साथ-साथ भगवान की तस्वीरें खींचते हैं, वीडियो बनाते हैं और उन्हें अपने फोन व सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. यह चलन न केवल युवाओं में लोकप्रिय हो रहा है, बल्कि सभी उम्र के लोग इससे जुड़ते जा रहे हैं.
डिजिटल दौर में बदली भक्ति की परिभाषा-
लोग मंदिरों में जाकर भगवान के दर्शन कर फोटो खींचते हैं, ताकि वे उन तस्वीरों को अपने मोबाइल के वॉलपेपर पर लगा सकें, जब भी मन अशांत हो तो उसे देख सकें या दूसरों को भेजकर शुभकामनाएं दे सकें. इससे जुड़ाव की भावना और भी मजबूत होती है. भक्ति का यह रूप पहले की तुलना में अधिक निजी और डिजिटल हो गया है. अब मंदिरों की दीवारों तक सीमित न रहकर भक्ति मोबाइल स्क्रीन तक पहुंच गई है. यह भावनात्मक जुड़ाव का नया माध्यम बन चुका है.
ऑनलाइन दर्शन और पूजा की सुविधा-
जहां पहले मंदिर जाने के लिए लोग दूर-दूर से यात्रा करते थे, वहीं अब ऑनलाइन दर्शन और पूजा की सुविधा ने एक नई क्रांति ला दी है. देश-विदेश में बैठे श्रद्धालु अब सिर्फ कुछ क्लिक के जरिए अपनी पसंदीदा मंदिरों में पूजा बुक कर सकते हैं. चाहे वह स्वास्थ्य के लिए हो, धन-समृद्धि के लिए, विवाह, संतान या किसी विशेष अवसर के लिए – हर तरह की पूजा अब ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से संभव है.
सोशल मीडिया पर फेमस मंदिर-
कई प्रसिद्ध मंदिरों ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स के माध्यम से इस प्रक्रिया को सरल बना दिया है. भक्त इन वेबसाइट्स पर जाकर पूजा की बुकिंग करते हैं, वहीं पेमेंट करते हैं और उसके बाद उन्हें ईमेल के माध्यम से पूजा की तारीख व समय की जानकारी दी जाती है. तय समय पर भक्त लाइव वीडियो के माध्यम से अपने नाम की पूजा को देख सकते हैं. कई मंदिर तो पूजा की रिकॉर्डिंग भी भक्तों को भेजते हैं, ताकि वे उसे बाद में भी देख सकें. इस सुविधा ने विशेषकर उन लोगों के लिए बहुत राहत दी है, जो विदेश में रहते हैं या किसी कारणवश मंदिर नहीं जा सकते.
सोशल मीडिया पर 'डिजिटल भक्ति' का ट्रेंड-
तकनीक के इस युग में सोशल मीडिया भी भक्ति का नया मंच बन गया है. इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर मंदिरों की आरती, श्रृंगार, हवन और उत्सवों की लाइव स्ट्रीमिंग आम हो गई है. जयपुर जैसे शहरों में गोविंददेव जी मंदिर, गोपीनाथ जी मंदिर, अक्षय पात्र, इस्कॉन मंदिर जैसे बड़े मंदिर अब हर एकादशी, विशेष श्रृंगार और पर्वों की झलकियां सोशल मीडिया पर साझा करते हैं. भक्त इन वीडियोज को देखकर खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है.
युवाओं में 'सेल्फी विद गॉड' का ट्रेंड भी तेजी से बढ़ रहा है. मंदिर में पहुंचते ही सबसे पहले मोबाइल कैमरा ऑन किया जाता है और भगवान के साथ एक फोटो लेकर उसे इंस्टाग्राम, स्टेटस या फेसबुक पर शेयर किया जाता है. यह चलन सिर्फ दिखावे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहराई से जुड़ी हुई आस्था और आंतरिक शांति की तलाश भी छिपी होती है.
तकनीक ने भक्ति को सरल बनाया-
तकनीक ने भक्ति को सरल, सुलभ और व्यापक बनाया है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या इससे पूजा-पाठ की पवित्रता और पारंपरिकता पर असर नहीं पड़ता? इस चिंता का उत्तर भी तकनीक ही देती है. अधिकांश मंदिर यह सुनिश्चित करते हैं कि ऑनलाइन बुक की गई पूजाएं वैदिक विधि अनुसार, मंदिर के योग्य पंडितों द्वारा, पूर्ण श्रद्धा और नियमों के साथ की जाएं. पूजा में भक्त का नाम, गोत्र और अन्य विवरण शामिल किए जाते हैं ताकि वह व्यक्तिगत रूप से जुड़ा महसूस कर सके.
इस तरह, तकनीक ने न केवल भक्ति को बाधारहित बनाया है, बल्कि यह सुनिश्चित भी किया है कि पूजा की गरिमा और आत्मिक शक्ति बरकरार रहे. यह प्रणाली विशेष रूप से महामारी के समय बहुत उपयोगी साबित हुई, जब मंदिर बंद थे और लोग अपने घरों में ही पूजा करना चाहते थे. उस समय ऑनलाइन पूजा बुकिंग और लाइव दर्शन ने एक नई उम्मीद दी और अब यह स्थायी व्यवस्था बनती जा रही है.
भगवान की तस्वीरें और वीडियो साझा करने से न केवल खुद को आंतरिक शांति मिलती है, बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा भी फैलती है, जो आपके संपर्क में आने वाले लोगों को प्रेरणा देती है. सोशल मीडिया पर जब कोई आरती, भजन या मंदिर के दर्शन शेयर करता है, तो वह हजारों-लाखों लोगों तक आध्यात्मिक संदेश पहुंचाता है. यही कारण है कि आज भक्त सोशल मीडिया को ‘डिजिटल धर्मपथ’ की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
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