
त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर में स्थित माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर भारत के 51 पवित्र शक्तिपीठों में से एक है. इस मंदिर को माताबाड़ी भी कहा जाता है. मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब उनकी दाहिनी पाँव का हिस्सा यहाँ गिरा था, जिससे यह स्थल अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र माना जाता है.
524 साल पुराना है मंदिर-
यह मंदिर 1501 ईस्वी में महाराजा धन्य माणिक्य द्वारा बनवाया गया था. उन्हें स्वप्न में माँ त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन हुए, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया. मंदिर की वास्तुकला बंगाल की एक-रतन शैली में बनी हुई है. यह एक कछुए के आकार की पहाड़ी पर है, जिसे कूर्म पीठ के नाम से भी जाना जाता है.
शक्त और वैष्णव परंपरा का अद्भुत संगम-
माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर उन दुर्लभ स्थलों में से है, जहाँ शक्ति की उपासना के साथ-साथ वैष्णव परंपरा का भी पालन होता है. गर्भगृह में माँ की दो मूर्तियाँ विराजमान हैं. एक पाँच फीट ऊँची भव्य प्रतिमा और दूसरी छोटो मा नाम से प्रसिद्ध छोटी प्रतिमा है. इस मंदिर में शालिग्राम शिला के रूप में भगवान विष्णु की भी पूजा होती है, जो शाक्त और वैष्णव संप्रदायों के बीच एकता का प्रतीक है.
दीवाली पर लगता है विशेष मेला-
यहाँ भक्तगण माँ को लाल गुड़हल के फूल और प्रसाद रूप में प्रसिद्ध माताबाड़ी पेड़ा अर्पित करते हैं. जिसे हाल ही में GI टैग भी प्राप्त हुआ है. दिवाली के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं और त्रिपुरा की सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिलती है.
माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर आज केवल एक शक्तिपीठ नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, सांप्रदायिक एकता और त्रिपुरा की सनातन आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक बन चुका है. यहाँ आने वाले श्रद्धालु केवल दर्शन नहीं करते, बल्कि एक दिव्य अनुभूति के साथ लौटते हैं.
मंदिर का हो रहा जीर्णोद्वार-
PRASAD योजना के तहत मंदिर कैंपस का जीर्णोद्वार किया जा रहा है. सरकार इसके लिए 54.04 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं. इस परियोजना के तहत संगमरमर की नई फर्श, श्रद्धालुओं के रास्ते, गेस्ट हाउस, भोजनालय और दुकानें बनाई जा रही हैं.
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