
हिंदू धर्म और पुराणों में पुत्र के हाथों से ही माता-पिता को मुखाग्नि देने का जिक्र मिलता है. कहते है कि पुत्र माता-पिता के पार्थिव शरीर को अग्नि देकर, मातृ और पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है. इस संसार का विचित्र चक्र है कि माता पिता बच्चों को इस संसार में लाते हैं और पिंड दान कर बच्चे उनको इस जीवन चक्र से मुक्त कर वापिस मोक्ष के मार्ग पर भेज देते हैं. इसलिए कहा जाता है कि पुत्र माता-पिता का अंतिम संस्कार कर उनके सारे उपकारों से मुक्त हो जाता है. ऐसे तो यह परंपरा वक्त के साथ प्रथा बन गई.
माना जाता है कि पुत्र का मतलब होता है नरक से निकालने वाला. माना जाता है कि पुत्र के मुखाग्नि देने से आत्मा को शांति मिलती है और उसे नरक में जाने से बचाया जा सकता है और उसे मोक्ष या स्वर्ग की प्राप्ति होती है. लेकिन सवाल यह भी है कि जिसके दो से अधिक पुत्र हैं, उनके बड़े या छोटे बेटे को ही क्यों माता-पिता को मुखाग्नि और पिंडदान करने का हक होता है? जबकि पुत्र तो सभी हैं.
बड़ा या छोटा बेटा ही दे सकता है मुखाग्नि?
अगर उदाहरण रामायण से उठाए तो जब भगवान राम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मन के साथ 14 सालों के लिए वनवास काट रहे थे, तब उनके पीछे उनके पिता दशरथ की मृत्यु हो गई थी. उस वक्त उनके शरीर को राम के छोटे भाई भरत ने मुखाग्नि दी थी, जोकि दूसरे नम्बर पर थे. ऐसे ही पुराणों में वंश के पुरुषों को मुखाग्नि का हक दिया गया है. अगर मृतक को पुत्र न हो या फिर पुत्र पास न हो. यहां तक की दामाद को भी मुखाग्नि देने का हक प्राप्त है.
इसके पीछे क्या कारण है?
पुराणों में बड़े पुत्र को संपत्ति और कर्तव्यों का उत्तराधिकारी माना जाता है. इसलिए उसके कर्तव्यों में से यह भी कर्तव्य है कि बड़ा पुत्र ही मुखाग्नि देगा. कई जगहों पर तो पिंड दान के बाद एक खास रस्म होती है. जिसमें जिस भी पुत्र ने अंतिम संस्कार किया है. उस पुत्र के सिर पर पगड़ी पहनाई जाती है कि अब इस परिवार का बुरा-भला सब तुम्हारे सर पर है, तुम सिर्फ संपत्ति के ही उत्तराधिकारी नहीं हो, बल्कि अब परिवार के मुखिया भी हो और छोटे भाइयों और बहनों के लिए पिता के समान जिम्मेदारियों के प्रति भी जवाब देह होगे. कई बार सारे संस्कार अगर छोटा पुत्र करता है तो वह उस पगड़ी को ले जाकर सबसे बड़े भाई को देता है कि अब आप सारी जिम्मेदारी निभाइए'. छोटे पुत्र पर माता-पिता का विशेष प्रेम होता है तो कई बार वह इच्छा रखते है कि छोटा बेटा ही उनको आग दे और बड़ा भाई किसी वजह वहां मौजूद नहीं होता, तब भी छोटे बेटे को अंतिम संस्कार का हक मिलता है.
भारतीय कल्चर में उत्तराधिकार का कॉनसेप्ट होता था. अगर पिता नहीं रहते थे, तब बड़ा भाई पिता की तरह ही घर की सारी जिम्मेदारियां निभाता था. इस कारण पिता को अग्नि देने का हक बड़े बेटे को होता था. यह केवल एक परंपरा थी. जिसने वक्त के साथ प्रथा का रूप ले लिया और अब यह धारणा बन चुकी है कि बड़ा बेटा ही माता-पिता के पार्थिव शरीर को आग देगा.
(ये स्टोरी अमृता सिन्हा ने लिखी है. अमृता जीएनटी डिजिटल में बतौर इंटर्न काम करती हैं.)
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