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अलग-अलग टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से हवा हो रही है साफ! पिछले एक दशक में सल्फर डाइऑक्साइड के लेवल में आई है कमी, IIT की स्टडी में खुलासा

हाल ही में IIT खड़गपुर ने एक स्टडी की है जिसमें सामने आया है कि पिछले एक दशक में भारत में सल्फर डाइऑक्साइड के लेवल में कमी आई है. पिछले तीन दशकों के आंकडें से ये कहीं ज्यादा है. इसका कारण है कि हवा का साफ करने के लिए कई अलग-अलग तकनीकों जैसे स्क्रबर और फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन का इस्तेमाल किया जा रहा है.

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हाइलाइट्स
  • आईआईटी खड़गपुर की स्टडी में हुआ खुलासा 

  • मानव स्वास्थ्य को भी करती है ये प्रभावित

दुनियाभर में लगातार बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए कई अलग-अलग उपाय किए जा रहे हैं. खराब होती आबोहवा को लेकर हर कोई परेशान है. हालांकि अब हवा की शुद्धता को लेकर एक राहत भरी खबर है. भारत की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के लेवल में कमी आई है. पिछले एक दशक में इस लेवल में अच्छी खासी कमी नजर आई है. ये आंकडां पिछले तीन दशकों के आंकडें से कहीं ज्यादा है. 

आईआईटी खड़गपुर की स्टडी में हुआ खुलासा 

दरअसल, आईआईटी खड़गपुर की एक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. स्टडी के मुताबिक ऐसा इसलिए हो पाया है क्योंकि पिछले कुछ समय से देश में हवा को साफ करने के लिए अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिसमें ‘स्क्रबर’ (scrubber) और ‘फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन’ (flue gas desulphurisation) जैसी टेक्नोलॉजी शामिल हैं.

साल 1980 से 2020 तक के सालों का किया गया आकलन

आपको बताते चलें कि इस स्टडी में 1980 से 2020 तक के समय का आकलन किया गया है. जिसमें पाया गया कि साल 1980 से 2010 तक कोयले के जलने से होने वाले प्रदूषण का रोकने का लिए बेहद कम प्रयास किए गए थे. जिसकी वजह से इससे होने वाले प्रदूषण में कोई कमी नजर नहीं आई. जबकि बाद के सालों में ऐसी नहीं था.  

मानव स्वास्थ्य को भी करती है ये प्रभावित

स्टडी को करने वाले प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीपुरथ कहते हैं कि SO2 और GHG (ग्रीनहाउस गैस) एमिशन को कम करने के लिए नई तकनीकों को अपनाकर आर्थिक विकास और वायु प्रदूषण नियंत्रण साथ में किया जा सकता है. SO2 एक वायुमंडलीय प्रदूषक है और आर्द्र परिस्थितियों में यह सल्फेट एरोसोल में बदल सकता है. ये एरोसोल इतने खतरनाक होते हैं कि बादलों,वर्षा और क्षेत्रीय जलवायु तक को प्रभावित कर सकते हैं.

प्रोफेसर जयनारायणन आगे कहते हैं कि SO2 मानव स्वास्थ्य और इकोसिस्टम दोनों पर प्रभाव डालता है. इसलिए, इसकी निरंतर निगरानी जरूरी है.

भारत में SO2 उत्सर्जन को कम करना जरूरी

स्टडी को करने वाले एक अन्य प्रोफेसर विकास कुमार पटेल कहते हैं कि भारत में SO2 उत्सर्जन को कम करने के अपने प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता है. इसके लिए चाहे नई तकनीकों का सहारा लिया जाए या फिर पर्यावरण नियमों के माध्यम से ऐसी किया जाए. 

देश में कोयले पर निर्भरता हो रही है कम

संस्थान के डायरेक्टर प्रोफेसर वी के तिवारी कहते हैं कि चूंकि भारत अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए कोयला पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रणनीति तैयार करना जरूरी है. वे आगे कहते हैं, “2010 के बाद से, भारत ने कोयला पर अपनी निर्भरता कम की है. इसके लिए अब रिन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन में भी काफी वृद्धि हुई है.”