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Alien life Discovery: वैज्ञानिकों का नया फॉर्मूला उड़ा देगा होश, क्या वाकई मिल जाएंगे हमें पड़ोसी ग्रहों पर एलियंस?

इस मॉडल की खासियत है कि ये ब्लैक-एंड-व्हाइट जवाब नहीं देता. बल्कि, ये संभावनाओं की गणना करता है. उदाहरण के लिए, अगर ऊंट को गर्म और शुष्क जलवायु चाहिए, तो मॉडल अंटार्कटिका को ऊंट के लिए 0% उपयुक्त बताएगा.

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क्या आपने कभी सोचा कि हमारी धरती के बाहर, दूर किसी तारे के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों पर जीवन हो सकता है? क्या एलियंस सचमुच हमारे पड़ोसी ग्रहों पर मौजूद हैं? अगर ये सवाल आपके मन में भी कौंधते हैं, तो तैयार हो जाइए एक ऐसी खबर के लिए, जो आपके दिमाग को हिलाकर रख देगी! 

यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के खगोल भौतिकीविद् डैनियल अपाई और उनकी टीम ने एक ऐसा क्रांतिकारी फ्रेमवर्क तैयार किया है, जो हमें बता सकता है कि सौरमंडल से बाहर के ग्रहों (एक्सोप्लैनेट्स) पर जीवन संभव है या नहीं. ये नया मॉडल सिर्फ पानी की मौजूदगी पर नहीं रुकता, बल्कि तापमान, मेटाबॉलिक फिजिबिलिटी और कई अन्य फैक्टर्स को ध्यान में रखकर ये तय करता है कि क्या कोई जीव वहां जिंदा रह सकता है. 

पानी ही सबकुछ नहीं
अब तक वैज्ञानिक एक्सोप्लैनेट्स पर जीवन की खोज के लिए सिर्फ एक ही सवाल पूछते थे- क्या वहां पानी है? लेकिन डैनियल अपाई की टीम ने इस पुराने ढर्रे को तोड़ दिया है. उनकी रिसर्च, जो नासा के एलियन अर्थ्स प्रोजेक्ट का हिस्सा है, कहती है कि जीवन के लिए सिर्फ पानी काफी नहीं. जैसे पृथ्वी पर हर जीव को अलग-अलग हालात चाहिए- मिसाल के तौर पर, ऊंट अंटार्कटिका की बर्फीली दुनिया में नहीं जी सकता वैसे ही एक्सोप्लैनेट्स पर भी खास पर्यावरणीय परिस्थितियों की जरूरत होती है.

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अपाई ने द कन्वर्सेशन में लिखा, “हमने सवाल को आसान बनाया. हम ये नहीं पूछते कि ग्रह पर जीवन संभव है या नहीं. बल्कि, हम पूछते हैं कि क्या कोई खास जीव वहां के हालात में जिंदा रह सकता है.” उनकी टीम ने एक ऐसा क्वांटिटेटिव हैबिटेबिलिटी फ्रेमवर्क बनाया, जो कंप्यूटर मॉडल्स की मदद से यह गणना करता है कि किसी ग्रह पर जीवन की कितनी संभावना है. यह मॉडल जीव की जरूरतों (ऑर्गनिज्म मॉडल) और ग्रह के पर्यावरण (हैबिटेट मॉडल) की तुलना करता है.

मॉडल की जादुई टेस्टिंग
इस मॉडल की खासियत है कि ये ब्लैक-एंड-व्हाइट जवाब नहीं देता. बल्कि, ये संभावनाओं की गणना करता है. उदाहरण के लिए, अगर ऊंट को गर्म और शुष्क जलवायु चाहिए, तो मॉडल अंटार्कटिका को ऊंट के लिए 0% उपयुक्त बताएगा.

लेकिन जब बात एक्सोप्लैनेट्स की आई, तो अपाई की टीम ने TRAPPIST-1e जैसे ग्रहों पर टेस्टिंग की. उन्होंने मिथेनोजन्स (माइक्रो ऑर्गेनिज्म) जो बिना ऑक्सीजन के भी जीवित रह सकते हैं, के लिए इस ग्रह की जांच की. नतीजा? 69% हैबिटेबिलिटी स्कोर! इसका मतलब है कि इस ग्रह पर साधारण जीवन रूप, जैसे मिथेनोजन्स, पनप सकते हैं. ये खोज वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा संकेत है कि ऐसे ग्रहों पर और रिसर्च की जानी चाहिए.

नासा का 'एलियन अर्थ्स' प्रोजेक्ट
डैनियल अपाई की यह रिसर्च नासा के एलियन अर्थ्स प्रोजेक्ट का हिस्सा है. ये पास के तारों के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों की खोज और अध्ययन पर केंद्रित है. इस प्रोजेक्ट का मकसद है भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को सही दिशा देना, ताकि हम उन ग्रहों की गहराई से जांच कर सकें, जहां जीवन हो सकता है. इस नए फ्रेमवर्क ने वैज्ञानिकों को एक नया नजरिया दिया है, जिससे वे अब सिर्फ पानी की तलाश नहीं करेंगे, बल्कि ग्रहों के तापमान, वायुमंडल, और जीवों की जैविक जरूरतों को भी परखेंगे.

क्या मिलेंगे हमें एलियंस?
यह फ्रेमवर्क न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए, बल्कि हम सबके लिए एक रोमांचक खबर है. सोचिए, अगर हमें किसी दूर के ग्रह पर मिथेनोजन्स जैसे सूक्ष्मजीव मिल जाएं, तो ये इस बात का सबूत होगा कि हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं हैं! और अगर साधारण जीवन मिल सकता है, तो क्या पता, किसी दिन हमें जटिल एलियन सभ्यताएं भी मिल जाएं? अपाई की रिसर्च ने इस सपने को हकीकत के और करीब ला दिया है.

उनका कहना है, “हमारा मॉडल संभावनाओं को परखता है. ये हमें बताता है कि कौन से ग्रह जीवन की खोज के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार हैं.” TRAPPIST-1e जैसे ग्रह, जो हमारे सौरमंडल से सिर्फ 40 प्रकाशवर्ष दूर हैं, अब वैज्ञानिकों के रडार पर हैं. भविष्य में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप जैसे उपकरण इन ग्रहों के वायुमंडल का विश्लेषण कर सकते हैं, जिससे हमें जीवन के और सबूत मिल सकते हैं.

डैनियल अपाई का यह फ्रेमवर्क इसलिए खास है, क्योंकि ये हमें ब्रह्मांड को समझने का एक नया तरीका देता है. पानी जरूरी है, लेकिन जीवन के लिए और भी बहुत कुछ चाहिए. ये मॉडल न सिर्फ वैज्ञानिकों, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो ब्रह्मांड के रहस्यों को जानना चाहता है.