
इसरो ने अमेरिका की निजी कंपनी एक्सियॉम स्पेस के साथ मिलकर Ax-4 मिशन में शुभांशु शुक्ला के लिए एक सीट बुक की है. यह मिशन नासा, इसरो और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) की साझेदारी का नतीजा है, जो स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन कैप्सूल और फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च होगा. इस मिशन की लागत सुनकर आप हैरान रह जाएंगे- लगभग 510 करोड़ रुपये! लेकिन इसरो का कहना है कि यह खर्च भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक फायदे का सौदा है.
इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने हाल ही में कहा, "इस मिशन से हमें जो अनुभव, प्रशिक्षण और सुविधाओं की समझ मिलेगी, वह गगनयान मिशन के लिए अमूल्य होगी. शुभांशु अंतरिक्ष में जॉइंट एक्सपेरिमेंट्स में हिस्सा लेंगे, जो भारत के वैज्ञानिकों के लिए नई राहें खोलेगा." यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा.
एक साल की ट्रेनिंग भी होती है
बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक, Axiom Space की इस सैर का टिकट कोई साधारण टिकट नहीं है. ये आपको सिर्फ अंतरिक्ष की सैर नहीं कराता, बल्कि एक साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद आपको एक प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री बनाता है! जहां Blue Origin की न्यू शेपर्ड फ्लाइट आपको 11 मिनट की वेटलेसनेस और धरती की वापसी का मजा देती है, वहीं Axiom Space आपको सीधे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक ले जाती है.
Blue Origin के लिए आपको 1.1 करोड़ रुपये ($150,000) का रिफंडेबल डिपॉजिट देना पड़ता है, और एक टिकट की कीमत 210 करोड़ रुपये ($28 मिलियन) तक जा सकती है. Virgin Galactic के टिकट 4.4 करोड़ रुपये ($600,000) से शुरू होते हैं. लेकिन Axiom Space का 510 करोड़ रुपये ($70 मिलियन) का टिकट इन सबसे कहीं ज्यादा महंगा है. क्यों? क्योंकि ये सिर्फ सैर नहीं, बल्कि एक मिशन है!
Axiom Space के सीईओ तेजपॉल भाटिया ने बिजनेस इनसाइडर को बताया, “ये 510 करोड़ का टिकट सिर्फ अंतरिक्ष की सैर का नहीं, बल्कि एक साल की अंतरिक्ष यात्री ट्रेनिंग का पूरा पैकेज है.” ये ट्रेनिंग नासा के स्टैंडर्ड्स पर आधारित है, हालांकि ये नासा के अंतरिक्ष यात्रियों जितनी कठिन नहीं है. भाटिया, जिन्हें लोग “एस्ट्रोनॉट व्हिस्परर” कहते हैं, ने बताया कि ये एक “रग्ड एक्सपीरियंस” है, जिसमें हर मिनट की प्लानिंग होती है.
14 दिन का हाईटेक मिशन
Axiom Space का मिशन Blue Origin और Virgin Galactic की छोटी-मोटी सैर से बिल्कुल अलग है. ये आपको 14 दिन के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) ले जाता है, जहां आप एक प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री की तरह रिसर्च और साइंटिफिक काम करेंगे. ये कोई लग्जरी ट्रिप नहीं है! भाटिया कहते हैं, “ISS कोई आरामदायक जगह नहीं है. यहां हर मिनट का हिसाब होता है.” इस मिशन में आप साइंटिफिक रिसर्च, पब्लिक इंगेजमेंट, और यहां तक कि प्राइम-टाइम न्यूज ब्रॉडकास्ट में हिस्सा लेंगे.
इस मिशन का एक खास पहलू है कि ये सिर्फ अमीरों के लिए नहीं है. Axiom Space के प्रवक्ता ने बताया कि ये मिशन देशों, स्पेस एजेंसियों, रिसर्चर्स, संगठनों, और व्यक्तियों के लिए खुला है, बशर्ते उनकी मंशा कंपनी के मिशन और उद्देश्यों से मेल खाए. खास बात ये है कि Axiom Space अपने रॉकेट्स या स्पेसशिप्स नहीं बनाती.
ये SpaceX जैसे पार्टनर्स के साथ मिलकर काम करती है, जो अपने Dragon स्पेसक्राफ्ट और Falcon 9 रॉकेट से अंतरिक्ष यात्रियों को ISS तक पहुंचाते हैं. मिशन के अंत में Dragon स्पेसक्राफ्ट पानी में “स्मॉल स्प्लैशडाउन” के साथ लैंड करता है, और क्रू को धरती की ग्रैविटी में ढलने के लिए मेडिकल चेकअप्स से गुजरना पड़ता है.
510 करोड़ की कीमत का राज
आप सोच रहे होंगे कि आखिर इतनी महंगी कीमत क्यों? दरअसल, Axiom Space का मिशन सिर्फ टूरिज्म तक सीमित नहीं है. ये मिशन देशों को अंतरिक्ष तक पहुंच देने का मौका देता है, वो भी बिना खुद का स्पेस प्रोग्राम बनाए. उदाहरण के लिए, सोमवार को लॉन्च होने वाला Axiom-4 मिशन भारत, पोलैंड, और हंगरी जैसे देशों के साथ सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स का हिस्सा है. भाटिया कहते हैं, “510 करोड़ रुपये एक देश के लिए अपने स्पेस प्रोग्राम बनाने की तुलना में कुछ भी नहीं है.” उदाहरण के तौर पर, अमेरिका ने 1960-1973 के बीच अपोलो प्रोजेक्ट पर 25.8 बिलियन डॉलर खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से 237 बिलियन डॉलर (लगभग 17,775 अरब रुपये) है!
इसके अलावा, Axiom Space का लक्ष्य सिर्फ अंतरिक्ष की सैर कराना नहीं है. कंपनी दुनिया का पहला कमर्शियल स्पेस स्टेशन बनाने की दिशा में काम कर रही है, जो 2030 में ISS के रिटायर होने के बाद उसकी जगह लेगा. ये स्टेशन अंतरराष्ट्रीय क्रू और साइंटिफिक रिसर्च के लिए एक नया मंच बनेगा.
एक साल की ट्रेनिंग
Axiom Space का मिशन शुरू होने से पहले आपको एक साल की कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. भाटिया बताते हैं, “इस यात्रा की शुरुआत उस पल से होती है, जब आप अंतरिक्ष जाने का फैसला करते हैं.” इसके बाद 8 से 12 महीने की ट्रेनिंग शुरू होती है, जिसमें 700 से 1000 घंटे की ट्रेनिंग शामिल है. ये ट्रेनिंग नासा, SpaceX, ESA, और JAXA जैसे संगठनों के साथ मिलकर की जाती है. इसमें सेफ्टी, हेल्थ, ISS सिस्टम्स, और लॉन्च ऑपरेशंस की ट्रेनिंग दी जाती है.
ट्रेनिंग में SpaceX के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट और Falcon 9 रॉकेट की बारीकियां सिखाई जाती हैं, जिसमें सिस्टम ऑपरेशंस, इमरजेंसी प्रोसीजर्स, और फुल-मिशन सिमुलेशंस शामिल हैं. नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर में क्रू को ISS ऑपरेशंस, पेलोड मैनेजमेंट, माइक्रोग्रैविटी एडॉप्टेशन, और इमरजेंसी प्रिपेयर्डनेस की ट्रेनिंग दी जाती है. लॉन्च से दो हफ्ते पहले क्रू को क्वारंटाइन में जाना पड़ता है, और एक महीने पहले से मास्क पहनना अनिवार्य होता है.