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60 साल पहले नंदा देवी पर छोड़ा गया था न्यूक्लियर डिवाइस, आजतक नहीं मिला, गंगा के लिए क्यों बना खतरा?

कोल्ड वॉर के दौर में नंदा देवी पर छोड़ा गया एक न्यूक्लियर पावर्ड डिवाइस आज भी बर्फ के नीचे कहीं मौजूद हो सकता है. आज हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. 2021 की चमोली आपदा जैसी घटनाओं ने खतरे को और गंभीर बना दिया है. वैज्ञानिकों को डर है कि ग्लेशियर के पीछे हटने से यह डिवाइस कभी भी बाहर आ सकता है या क्षतिग्रस्त हो सकता है.

Nanda Devi: Photo: https://unsplash.com/ Nanda Devi: Photo: https://unsplash.com/
हाइलाइट्स
  • क्या था RTG और क्यों था खास?

  • 1965 में क्यों लगाया गया था यह डिवाइस?

हिमालय की बर्फीली चोटियों के बीच करीब 60 साल पुराना एक रहस्य आज फिर चर्चा में है. उत्तराखंड की नंदा देवी चोटी के पास कोल्ड वॉर के दौर में लगाया गया एक न्यूक्लियर पावर्ड डिवाइस आज तक नहीं मिला है. आशंका है कि यह डिवाइस आज भी बर्फ के नीचे कहीं दबा हुआ है, और इसका सीधा संबंध देश की सबसे पवित्र नदी गंगा के उद्गम क्षेत्र से जुड़ता है. यही वजह है कि वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों की चिंता एक बार फिर बढ़ गई है.

1965 में क्यों लगाया गया था यह डिवाइस?
साल 1965 का दौर पूरी दुनिया में कोल्ड वॉर का समय था. चीन के तेजी से बढ़ते परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और भारत दोनों ही चिंतित थे. इसी डर के चलते अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA और भारत की इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ने मिलकर एक सीक्रेट मिशन शुरू किया. प्लानिंग थी भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर एक खास किस्म का लिसनिंग डिवाइस लगाया जाए. इससे चीन के परमाणु और मिसाइल परीक्षणों पर नजर रखी जा सके.

क्या था RTG और क्यों था खास?
इस मिशन में जिस डिवाइस का इस्तेमाल होना था, वह RTG यानी रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर था. यह कोई परमाणु बम नहीं था, बल्कि एक ऐसा डिवाइस था जो रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकलने वाली गर्मी से बिजली बनाता है. इस RTG में कई किलो प्लूटोनियम लगा हुआ था, जो बिना किसी मूविंग पार्ट के दशकों तक बिजली पैदा कर सकता था. आमतौर पर ऐसे RTG का इस्तेमाल स्पेस मिशन या बेहद दूर-दराज इलाकों में किया जाता है, जहां सोलर पावर काम नहीं करती.

कैसे गायब हो गया न्यूक्लियर डिवाइस?
जब टीम नंदा देवी पर चढ़ाई कर रही थी, तभी एक भीषण बर्फीला तूफान आ गया. जान बचाने के लिए टीम को RTG डिवाइस को पहाड़ पर ही छोड़कर लौटना पड़ा. अगले साल जब पर्वतारोही वापस पहुंचे, तो वह डिवाइस वहां से गायब था. माना जाता है कि या तो वह किसी हिमस्खलन में बह गया या फिर ग्लेशियर की मोटी बर्फ के नीचे दब गया.

Ganga river. (Photo: Unsplash)

क्या कभी मिला यह डिवाइस?
इसके बाद कई सालों तक भारत और अमेरिका की टीमों ने इसे खोजने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. सरकार ने कभी खुलकर नहीं बताया कि आखिर इसका क्या हुआ. 1978 में भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग ने एक सर्वे किया. रिपोर्ट में कहा गया कि आसपास की नदियों में प्लूटोनियम का कोई रेडियोधर्मी असर नहीं मिला, लेकिन RTG की सही जगह का भी पता नहीं चल सका.

गंगा के लिए क्यों है खतरा?
नंदा देवी के ग्लेशियरों से ऋषि गंगा और धौली गंगा निकलती हैं, जो आगे चलकर अलकनंदा और भागीरथी से मिलती हैं और फिर गंगा का रूप लेती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर RTG सुरक्षित हालत में बर्फ के नीचे दबा है, तो फिलहाल खतरा कम है. लेकिन अगर समय के साथ उसकी सुरक्षा परत टूटती है, तो रेडियोधर्मी पदार्थ ग्लेशियर के पिघलते पानी के साथ नदियों में जा सकता है. यह करोड़ों लोगों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. आज हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. 2021 की चमोली आपदा जैसी घटनाओं ने खतरे को और गंभीर बना दिया है. वैज्ञानिकों को डर है कि ग्लेशियर के पीछे हटने से यह डिवाइस कभी भी बाहर आ सकता है या क्षतिग्रस्त हो सकता है.