
क्या आपने कभी सोचा कि कोई इंसान मरने के बाद भी अपनी कला को जीवित रख सकता है? क्या मृत्यु के बाद भी कोई संगीतकार नई धुनें रच सकता है? यह सुनने में किसी साइंस-फिक्शन फिल्म की कहानी लग सकती है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया की एक आर्ट गैलरी में यह हकीकत बन चुकी है! अमेरिकी संगीतकार एल्विन लूसियर, जिनका निधन 2021 में हो गया, आज भी अपनी कला के जरिए दुनिया को चौंका रहे हैं. कैसे?
उनके ब्लड से बने आर्टिफिशियल दिमाग (सेरेब्रल ऑर्गेनॉइड्स) की मदद से, जो दीवारों पर लगे पीतल के प्लेट्स को हथौड़ियों से बजाकर संगीत पैदा कर रहे हैं. यह कोई जादू नहीं, बल्कि विज्ञान, कला और तकनीक का अनोखा संगम है, जिसे “रीवाईवीफिकेशन” प्रोजेक्ट कहा जा रहा है.
संगीत की दुनिया का अनोखा सितारा
एल्विन लूसियर कोई साधारण संगीतकार नहीं थे. 1931 में जन्मे इस अमेरिकी कम्पोजर ने अपने पूरे करियर में संगीत को एक नए आयाम में ले जाने की कोशिश की. उनकी रचनाएं हमेशा प्रयोगात्मक थीं, जो फिजिक्स ऑफ साउंड पर आधारित होती थीं. उनकी सबसे मशहूर रचना “आई एम सिटिंग इन अ रूम” (1969) में उन्होंने अपनी आवाज को रिकॉर्ड किया, फिर उसे बार-बार प्ले और री-रिकॉर्ड किया, जब तक कि शब्द पूरी तरह से समझ से बाहर नहीं हो गए. यह एक ऐसा प्रयोग था, जो ध्वनि की प्रकृति को समझने की उनकी जिज्ञासा को दिखाता था.
लूसियर हमेशा ऐसे सवालों के जवाब तलाशते थे कि अगर कोई खास प्रक्रिया अपनाई जाए, जैसे पेंसिल से टैप करना या दिमाग की तरंगों को रिकॉर्ड करना, तो कैसी ध्वनियां निकलेंगी. उनकी यह जिज्ञासा ही उन्हें 2018 में “रीवाईवीफिकेशन” प्रोजेक्ट की ओर ले गई, जिसमें उन्होंने अपने खून को डोनेट किया, ताकि उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी कला जीवित रहे.
आर्टिफिशियल दिमाग से संगीत की रचना
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की आर्ट गैलरी में एक अनोखा नजारा देखने को मिलता है. गैलरी की दीवारों पर 20 पीतल की प्लेट्स लगी हैं, जिन्हें समय-समय पर हथौड़ियां मारती हैं, और कमरे में एक गूंजती हुई ध्वनि फैल जाती है. इन हथौड़ियों को कंट्रोल करता है एक आर्टिफिशियल दिमाग- दो छोटे-छोटे सफेद ब्लॉब्स, जो गैलरी के बीच में एक पेडेस्टल पर रखे हैं. ये ब्लॉब्स हैं सेरेब्रल ऑर्गेनॉइड्स, यानी इंसानों के दिमाग की नकल करने वाली आर्टिफिशियल संरचनाएं, जो एल्विन लूसियर के खून से बनी हैं.
यह प्रोजेक्ट कलाकारों नाथन थॉम्पसन, गाय बेन-एरी, मैट गिंगोल्ड और यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के न्यूरोसाइंटिस्ट स्टुअर्ट हॉजेट्स की मेहनत का नतीजा है. थॉम्पसन कहते हैं, “हमने एक तरह से डिश पर दिमाग बनाया है, जो वास्तविक दुनिया में कार्रवाई कर सकता है.” लेकिन यह दिमाग कैसे बना? और यह संगीत कैसे पैदा करता है?
कैसे बना यह आर्टिफिशियल दिमाग?
2018 में, जब लूसियर अभी जीवित थे, उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए अपना ब्लड डोनेट किया. वैज्ञानिकों ने उनके खून की सेल्स को स्टेम सेल्स में बदला, जिन्हें बाद में न्यूरोनल संरचनाओं में विकसित किया गया. ये संरचनाएं, यानी सेरेब्रल ऑर्गेनॉइड्स, एक इलेक्ट्रोड्स के जाल पर रखी गई हैं. ये इलेक्ट्रोड्स ऑर्गेनॉइड्स से निकलने वाले न्यूरल सिग्नल्स को पकड़ते हैं और उन्हें हथौड़ियों तक पहुंचाते हैं. जब हथौड़ियां पीतल की प्लेट्स को मारती हैं, तो एक जटिल और लंबे समय तक गूंजने वाली ध्वनि पैदा होती है, जो गैलरी को संगीत से भर देती है.
“रीवाईवीफिकेशन” का मकसद लूसियर की पुरानी रचनाओं को दोहराना या उनकी याद में एक स्मारक बनाना नहीं है. बल्कि, यह उनकी रचनात्मकता को एक जीवित रूप देना है. कलाकारों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट “कला की अमरता को फिर से परिभाषित” करता है.
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की आर्ट गैलरी में आने वाले दर्शक इस इंस्टॉलेशन को देखकर हैरान रह जाते हैं. कुछ इसे लूसियर की आत्मा का विस्तार मानते हैं, तो कुछ इसे विज्ञान का चमत्कार. गैलरी में गूंजने वाली ध्वनियां न सिर्फ कानों को सुकून देती हैं, बल्कि दिमाग को भी सोचने पर मजबूर करती हैं.