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शुभांशु शुक्ल के साथ स्पेस में जाएगा Swan, आखिर क्यों एस्ट्रोनॉट अपने साथ लेकर जाते हैं एक सॉफ्ट टॉय?

पहले भी कई मजेदार सॉफ्ट टॉय अंतरिक्ष में जा चुके हैं, जैसे स्पेसएक्स के क्रू-10 मिशन का “ड्रूग” (एक क्रोशिए क्रेन) और सोयुज MS-27 का एक हॉर्न बजाने वाला एंजल. 'जॉय' इस परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ेगा, और माना जाता है कि यह पहला हंस है जो शून्य गुरुत्वाकर्षण संकेतक के रूप में अंतरिक्ष में जाएगा.

Sudhanshu Shukla with Swan Sudhanshu Shukla with Swan

जब 10 जून को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन-9 रॉकेट अंतरिक्ष की सैर पर निकलेगा, तो ये सिर्फ चार अंतरिक्ष यात्रियों और वैज्ञानिक उपकरणों को ही नहीं ले जाएगा, बल्कि एक छोटा सा सॉफ्ट टॉय- 'जॉय' नाम का सफेद हंस भी इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा होगा! जी हां, Axiom-4 मिशन के पायलट और भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के साथ ये प्यारा सा हंस अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की सैर करेगा. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये सॉफ्ट टॉय अंतरिक्ष में क्यों जा रहा है? और क्यों इसे 'जॉय' नाम दिया गया? 

'जॉय' का जादू
'जॉय' कोई साधारण सॉफ्ट टॉय नहीं है. यह Axiom-4 मिशन का शून्य गुरुत्वाकर्षण संकेतक (Zero-Gravity Indicator) है. अंतरिक्ष यात्राओं में एक पुरानी परंपरा है कि अंतरिक्ष यात्री अपने साथ एक छोटा सा हल्का ऑब्जेक्ट ले जाते हैं, जो अंतरिक्ष यान के पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होने पर हवा में तैरने लगता है.

जैसे ही 'जॉय' स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल में तैरना शुरू करेगा, यह संकेत देगा कि मिशन ने शून्य गुरुत्वाकर्षण की स्थिति हासिल कर ली है. यह परंपरा 1961 में सोवियत कॉस्मोनॉट यूरी गागरिन से शुरू हुई थी, जिन्होंने अपनी वोस्तोक मिशन में एक छोटी गुड़िया ले जाकर इस रिवाज की नींव रखी थी. तब से रूसी और अब अमेरिकी अंतरिक्ष मिशनों में सॉफ्ट टॉय ले जाना आम बात हो गई है.

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'जॉय' का गहरा सांस्कृतिक महत्व
'जॉय' सिर्फ एक शून्य गुरुत्वाकर्षण संकेतक नहीं है, बल्कि यह Axiom-4 मिशन के चार अंतरिक्ष यात्रियों- भारत के शुभांशु शुक्ला, अमेरिका की पैगी व्हिटसन, पोलैंड के स्लावोस उज़नांस्की-विस्निव्स्की और हंगरी के टिबोर कपु- के लिए एक सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतीक भी है. प्री-फ्लाइट प्रेस कॉन्फ्रेंस में चारों अंतरिक्ष यात्रियों ने बताया कि 'जॉय' को चुनने में सभी ने योगदान दिया, और यह हंस तीन देशों की संस्कृतियों को जोड़ता है.

शुभांशु शुक्ला के लिए 'जॉय' का मतलब: भारतीय संस्कृति में हंस को ज्ञान, शुद्धता और अनुग्रह का प्रतीक माना जाता है. यह माता सरस्वती का वाहन है, जो विद्या और बुद्धि की देवी हैं. शुभांशु ने कहा, “हंस में दूध और पानी को अलग करने की अनोखी क्षमता होती है, जो शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक है. 'जॉय' को साथ ले जाना मुझे मेरे मूल्यों और संस्कृति से जोड़े रखता है. यह मिशन मेरे लिए सिर्फ एक वैज्ञानिक यात्रा नहीं, बल्कि 1.4 अरब भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक है.”

मिशन की कमांडर पैगी व्हिटसन ने कहा, “'जॉय' भारत में ज्ञान, पोलैंड में लचीलापन और हंगरी में अनुग्रह का प्रतीक है. यह तीन देशों की एकता और स्पेस एक्सप्लोरेशन के साझा सपनों को दर्शाता है.” स्लावोस ने इसे “हमारी खुशी और एकता का प्रतीक” बताया, जबकि टिबोर कपु ने कहा, “'जॉय' हमारी टीम की खुशी, विश्वास और दोस्ती का प्रतीक है.”

अंतरिक्ष में सॉफ्ट टॉय की अनोखी परंपरा
सॉफ्ट टॉय को अंतरिक्ष में ले जाना भले ही मजेदार लगे, लेकिन यह एक गंभीर परंपरा है. रूसी कॉस्मोनॉट्स अक्सर अपने बच्चों द्वारा चुनी गई गुड़ियाएं ले जाते थे. अमेरिका में स्पेस शटल युग के बाद यह रिवाज लोकप्रिय हुआ, और अब स्पेसएक्स, बोइंग और नासा के आर्टेमिस मिशनों में सॉफ्ट टॉय आम हैं.

पहले भी कई सॉफ्ट टॉय अंतरिक्ष में जा चुके हैं, जैसे स्पेसएक्स के क्रू-10 मिशन का “ड्रूग” (एक क्रोशिए क्रेन) और सोयुज MS-27 का एक हॉर्न बजाने वाला एंजल. 'जॉय' इस परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ेगा, और माना जाता है कि यह पहला हंस है जो शून्य गुरुत्वाकर्षण संकेतक के रूप में अंतरिक्ष में जाएगा.

कौन हैं शुभांशु शुक्ला?
शुभांशु शुक्ला इस मिशन के साथ इतिहास रचने जा रहे हैं. वह 1984 में राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय और ISS पर कदम रखने वाले पहले भारतीय होंगे. 39 वर्षीय शुभांशु भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट हैं, जिनके पास 2,000 घंटे से ज्यादा का उड़ान अनुभव है. वह ISRO के गगनयान मिशन के लिए भी चुने गए हैं. इस मिशन में वह सात वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिनमें अंतरिक्ष में मेथी और मूंग की खेती जैसे प्रयोग शामिल हैं.