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Digital Fasting: फोन की लत छुड़ाने में डिजिटल फास्टिंग हो सकता है बढ़िया उपाय, जानें इसके बारे में 

What is Digital Fasting: एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लोग एवरेज 6 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं. ये एक तरह की लत ही होती है. इसी लत को छुड़ाने में डिजिटल फास्टिंग बढ़िया उपाय हो सकता है.

डिजिटल फास्टिंग डिजिटल फास्टिंग
हाइलाइट्स
  • भारत में लोग एवरेज 6 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं

  • डिजिटल डेटॉक्स जरूरी है

Digital Fasting: साल दर साल मोबाइल फोन पर घंटे बढते जा रहे हैं. कोई सोशल मीडिया में गुम है तो कोई रील्स देख रहा है. घर, बाहर, दफ्तर, बाजार... जगह कोई भी हो, तस्वीर एक-सी नजर आती है. युवा हो या बुजुर्ग...पुरुष हो या महिलाएं...सभी की आंखें मोबाइल फोन पर हैं...और अंगुलियां स्क्रीन पर. ऐसा नहीं कि रोजमर्रा के काम नहीं हो रहे हैं, लेकिन ध्यान हर वक्त फोन पर है. जरूरी बातचीत या मैसेज के अलावा, जैसे ही खाली वक्त मिलता है, सोशल मीडिया और रील्स देखने की तलब होती है. लेकिन ये आपकी सेहत के लिए  बिलकुल ठीक नहीं है. ऐसे में डिजिटल फास्टिंग के एक अच्छा उपाय हो सकती है. 

क्या है डिजिटल फास्टिंग?

डिजिटल फास्टिंग आपके दिन या आपके सप्ताह में अवधि निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है जहां आप डिजिटल टेक्नोलॉजी से दूर रहते हैं. इसमें आमतौर पर फोन, टैबलेट या लैपटॉप शामिल हो सकता है.  नियमित 'डिजिटल फास्टिंग' को अपने रूटीन में शामिल करना आपके दूसरों के साथ रिश्ते को बेहतर बनाने और खुद को डेटॉक्स करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है. इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे- डिजिटल डिटॉक्स, डोपामाइन फास्टिंग, अनप्लगिंग फ्रॉम टेक्नोलॉजी, डिजिटल सब्बाथ आदि. 

भारत में लोग एवरेज 6 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं

मोबाइल फोन या यूं कहें कि स्क्रीन से चिपकने की आदत कैसे लत में तब्दील हो चुकी है, इसका अंदाजा आंकड़ों से लगाया जा सकता है. एक स्टडी के मुताबिक भारत में लोग रोजाना करीब पांच से 6 घंटे मोबाइल फोन पर गुजारते हैं. पिछले कुछ वर्षोें में ये समय बढता रहा है, यानी 2019 में औसत करीब साढे तीन घंटे का था. 2021 में भारतीयों ने साल के 6 हजार 550 करोड़ घंटे मोबाइल पर गुजारे, 2019 की तुलना में इसमें 37 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. फोन पर वक्त गुजारने के मामले में भारत दुनिया में पांचवें नंबर पर है. जो देश आगे हैं उनमें ब्राजील, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया और मैक्सिको हैं. 

डिजिटल डेटॉक्स जरूरी है

हालांकि, युवाओं के मामले में तस्वीर और भी चिंताजनक है. एक स्टडी के मुताबिक, नई आधुनिक पीढ़ी ऑनलाइन पर रोजाना करीब 8 घंटे गुजारती है. फोन पर घंटों गुजारने का सीधा असर सेहत पर पड़ता है. सोशल मीडिया की लत लोगों के बर्ताव और स्वभाव को बदल रही है. जानकार मानते हैं कि सोशल मीडिया की वजह से अकेलापन चिड़चिड़ापन और ऐसी दूसरी कई मानसिक समस्याएं बढ़ती जा रही हैं और इसके लिए डॉक्टर डिजिटल डिटॉक्स की सलाह देते हैं.