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साल 2000 का दशक था BSNL के लिए स्वर्णिम युग, फिर धीरे-धीरे पटरी से फिसली और इस तरह नंबर वन कंपनी डूब गई करोड़ों के कर्ज में

आज बीएसएनएल पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. बता दें, अक्टूबर 2002 में बीएसएनएल मोबाइल सेवा को लॉन्च किया गया था. उसके लॉन्च होने के कुल डेढ़ दो साल में ही भारत की ये कंपनी देश में नंबर वन मोबाइल सर्विस बन गई थीं. अब इसी के रिवाइवल के लिए केंद्र ने 1.64 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दे दी है.

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हाइलाइट्स
  • केंद्र ने 1.64 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दे दी है.

  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1851 में की थी टेलीग्राफ की शुरुआत  

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) के रिवाइवल का फैसला लिया है. बुधवार को केंद्र ने 1.64 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दे दी है. इतना ही नहीं बल्कि कैबिनेट बीएसएनएल और भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL) के मर्जर को भी हरी झंडी दे दी है. इस मर्जर से ये फायदा होगा कि बीबीएनएल के 5.67 लाख किलोमीटर के ऑप्टिकल फाइबर का पूरा कंट्रोल बीएसएनएल के हाथों में आ जाएगा. एक समय में भारत की नंबर 1 कंपनी आज करोड़ों रुपये के कर्ज में है.

चलिए जानते हैं आखिर नंबर 1 कंपनी आज इतने रुपये के कर्ज में कैसे आ गई-

दरअसल, अक्टूबर 2002 में बीएसएनएल मोबाइल सेवा को लॉन्च किया गया था. उसके लॉन्च होने के कुल डेढ़ दो सालों में भारत की नंबर वन मोबाइल सेवा बनने वाली बीएसएनएल पर क़रीब 20 हज़ार करोड़ रुपए का क़र्ज़ है. एक समय में ये कंपनी  देश में सबकी पसंद थी, और जब यह शुरू हुई थी तब इसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं था. जैसे जैसे समय गुजरा इन 20 सालों में बाजार और नई निजी कंपनियां  ने दस्तक दी. लोग जियो, एयरटेल, और वोडाफोन जैसे ऑपरेटर्स की तरफ भागने लगे हैं. और  इसका अंदाजा  इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन-चार सालों में ही जियो ने 40 करोड़ से ज्यादा ग्राहक बना लिए हैं.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1851 में की थी टेलीग्राफ की शुरुआत  

पैन इंडिया टेलीकॉम ऑपरेटर बीएसएनएल पहले सौ प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाली टेलीकॉम ऑपरेटर कंपनी थी जिसे 15 सितंबर 2000 को शुरू किया गया था. हालांकि,  इतिहास में जाएंगे तो पता  चलेगा कि 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल के दौरान यह पहली टेलीग्राफ लाइन थी जो 1851 में स्थापित हुई थी. 1854 में जनता ने टेलीग्राफ सेवाओं का उपयोग करना शुरू किया, 1885 में, ब्रिटिश लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा पारित भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1975 में, यह पोस्टल टेलीग्राफ से अलग हो गया और 1980 में टेलीग्राफ सर्विस की आवश्यकता के कारण एक टेलीग्राफ विभाग बनाया गया. 

इसके बाद, भारत सरकार ने अक्टूबर 2000 में एक कॉर्पोरेशन में टेलीकॉम और टेलीग्राफ सर्विस को बनाया और इसका नाम भारत संचार निगम लिमिटेड रखा. पीएसयू ने भारत में बीएसएनएल टेलीग्राफ सेवाएं चलाई हैं. टेलीग्राम सेवाओं को जुलाई 2015 में बंद कर दिया गया था.

कौन है बीएसएनएल  की हालत का जिम्मेदार? 

-बीएसएनएल की संस्थागत कमियों के अलावा एक बहुत बड़ा कारण निजी खिलाड़ियों की संख्या बढ़ना भी है. कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये एक टेक्निकल आधारित इंडस्ट्री है. जहां का स्टाफ नॉन-टेक्निकल है. ऐसे में  कुछ क्वालिफाइड इंजीनियर और स्टाफ का होना जरूरी है.  

-कम बाजार कौशल भी एक बहुत बड़ा कारण है कि कंपनी इतने करोड़ों रुपये के कर्ज में है.  बीएसएनएल और एमटीएनएल केवल ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अलग अलग भ्रामक योजनाओं के माध्यम से हथकंडे नहीं अपनाते है. हालांकि, कुछ इनोवेशन किए जा सकते हैं. 

-बाजार के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य यह होता है कि अगर कोई कंपनी महंगी सर्विस दे रही है तो वो उसे छोड़ने में समय नहीं लगाते हैं क्योंकि आज उनके पास बहुत सारे ऑप्शन हैं. 

1990 में बीएसएनएल ने शुरू की थी लैंडलाइन 

बता दें, बीएसएनएल ने लैंडलाइन सर्विस 1990 में शुरू की थी. उस वक्त अकेली ऐसी कंपनी थी जो लोगों को फिक्स्ड लाइन टेलीफोन दे रही थी. 1990 और 2000 का दशक बीएसएनल के लिए एक स्वर्णिम युग था. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, 30 अप्रैल 2019 तक बीएसएनएल के पास बेसिक टेलीफोन की क्षमता 2.96 करोड़ थी और  डब्ल्यूएलएल की क्षमता 13.9 लाख थी. फिक्स्ड एक्सचेंज की 1.46 लाख और मोबाइल ग्राहकों की संख्या 11.58 करोड़ थी. वहीं, 1.17 करोड़ वायरलाइन फोन ग्राहक भी इससे जुड़े हुए हैं.