
क्या आपने कभी सोचा कि आपकी कार, आपके स्मार्टफोन, या फिर हवा से बिजली बनाने वाली विशाल पवन चक्कियां कैसे काम करती हैं? इनके पीछे छिपा है एक अनमोल खजाना- रेयर अर्थ मेटल्स. लेकिन अब, चीन ने इन सात महत्वपूर्ण धातुओं और उनके बने शक्तिशाली मैग्नेट्स का निर्यात लगभग पूरी तरह से रोक दिया है. अब हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने US और चीन की डील को लेकर पोस्ट किया है. उनके मुताबिक, अमेरिका और चीन की डील हुई है जिसमें चीन उन्हें रेयर अर्थ मेटल्स देने वाला है.
रेयर अर्थ मेटल्स
रेयर अर्थ मेटल्स- नाम सुनने में भले ही लगे कि ये धातुएं बहुत दुर्लभ हैं, लेकिन हकीकत में ये दुनिया भर में पाई जाती हैं. डिस्प्रोसियम, गैडोलिनियम, ल्यूटेशियम, समैरियम, स्कैंडियम, टर्बियम और येट्रियम- ये सात धातुएं उन 17 रेयर अर्थ तत्वों में शामिल हैं, पीरियोडिक टेबल के निचले हिस्से में पाए जाते हैं. लेकिन इन्हें "रेयर" क्यों कहते हैं? क्योंकि इन्हें खनिजों से अलग करना बेहद मुश्किल और महंगा है. इसके लिए सैकड़ों चरणों की केमिकल प्रक्रिया और ताकतवर एसिड्स की जरूरत पड़ती है.
चीन ने इन धातुओं पर अपनी पकड़ इतनी मजबूत कर ली है कि वह विश्व का 70% रेयर अर्थ खनन करता है और 90% रिफाइनिंग. खास तौर पर इन सात धातुओं में उसका दबदबा 99.9% तक है. म्यांमार और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भले ही कुछ खनन करते हों, लेकिन उनकी रिफाइनिंग भी ज्यादातर चीन में ही होती है.
चीन का एकछत्र राज
चीन की इस बादशाहत की कहानी शुरू होती है लॉन्गनान की घाटियों से, जहां भारी रेयर अर्थ धातुओं के भंडार छिपे हैं. ये इलाका, जो दक्षिण-मध्य चीन से लेकर उत्तरी म्यांमार तक फैला है, दुनिया का सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार माना जाता है. यहां की खदानों में खनिक अमोनियम सल्फेट नामक रसायन का इस्तेमाल करते हैं. यह केमिकल मिट्टी में मौजूद रेयर अर्थ को घोलकर स्लरी के रूप में बाहर लाता है, जिसे बाद में ऑक्सालिक एसिड की मदद से गुलाबी क्रिस्टल में बदला जाता है.
लेकिन यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं. लॉन्गनान की इन खदानों पर एक समय चीनी माफिया का कब्जा था. 2010 में तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने सैन्य कार्रवाई कर इन खदानों को माफिया से मुक्त कराया था. आज ये खदानें चीन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं.
क्यों हैं ये धातुएं इतनी खास?
रेयर अर्थ मेटल्स का महत्व समझने के लिए बस अपनी कार पर नजर डालिए. एक लग्जरी कार में 12 रेयर अर्थ मैग्नेट्स हो सकते हैं, जो सीट एडजस्टमेंट से लेकर ब्रेक और स्टीयरिंग तक को नियंत्रित करते हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों में तो इनकी जरूरत और भी ज्यादा है. ये मैग्नेट्स सामान्य लोहे के मैग्नेट्स से 15 गुना ज्यादा ताकतवर होते हैं.
लेकिन इनका उपयोग सिर्फ कारों तक सीमित नहीं. स्मार्टफोन्स, रोबोट्स, पवन चक्कियां, मेडिकल इमेजिंग, और यहां तक कि सैन्य उपकरण जैसे F-35 फाइटर जेट और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए भी ये जरूरी हैं. खास तौर पर डिस्प्रोसियम और टर्बियम जैसे भारी रेयर अर्थ तत्वों से बने मैग्नेट्स गर्मी और बिजली के प्रभाव में भी अपनी चुंबकीय शक्ति नहीं खोते, जिसके कारण ये ऑटोमोबाइल और सैन्य उद्योगों में अपरिहार्य हैं.
चीन का निर्यात पर रोक
4 अप्रैल, 2025 से चीन ने इन सात रेयर अर्थ धातुओं और उनसे बने मैग्नेट्स का निर्यात लगभग पूरी तरह से रोक दिया. इसका असर तुरंत दिखा- अमेरिका और यूरोप की कई फैक्ट्रियां बंद होने की कगार पर हैं. उदाहरण के लिए, फोर्ड ने शिकागो में अपनी फोर्ड एक्सप्लोरर एसयूवी फैक्ट्री को एक हफ्ते के लिए बंद कर दिया, क्योंकि उसे मैग्नेट्स की कमी हो गई.
चीन का कहना है कि उसने यह कदम "दोहरे उपयोग" (सैन्य और नागरिक) वाले उत्पादों की वजह से उठाया है. मसलन, समैरियम से बने मैग्नेट्स मिसाइलों के मार्गदर्शन प्रणाली में और येट्रियम का उपयोग लेजर हथियारों में होता है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह रोक वास्तव में अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध का हिस्सा है. ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल में चीन समेत कई देशों पर भारी टैरिफ लगाए थे, जिसके जवाब में चीन ने यह कदम उठाया.
पहले भी हुआ है ऐसा
हालांकि, न्यू यॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पहली बार नहीं है जब चीन ने रेयर अर्थ निर्यात पर रोक लगाई है. 2010 में, जापान के साथ एक क्षेत्रीय विवाद के दौरान चीन ने दो महीने के लिए जापान को रेयर अर्थ की आपूर्ति बंद कर दी थी. इससे जापानी कंपनियां डर गई थीं और उन्होंने 18 महीने तक का स्टॉक जमा करना शुरू कर दिया. जापान ने ऑस्ट्रेलिया की लिनास कंपनी के साथ मिलकर वैकल्पिक खनन और रिफाइनिंग सुविधाएं विकसित कीं.