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लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला, इन किताबों को लेकर आ चुके हैं विवाद में

सलमान रुश्दी का पूरा नाम सर अहमद सलमान रुश्दी है. भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक की पहचान दुनिया भर में है. धार्मिक और राजनीतिक विषयों पर रुश्दी की कई किताबें भारत समेत बाहरी देशो में बैन है.

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ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक सलमान रुश्दी पर पश्चिमी न्यूयॉर्क में जानलेवा हमला हुआ. रुश्दी एक कार्यक्रम के दौरान मंच पर अपना संबोधन दे रहे थे. खबरें आ रही हैं कि रुश्दी के संबोधन के दौरान एक व्यक्ति उनकी तरफ बढ़ा और चाकू से उनपर हमला कर दिया. रुश्दी अभी अस्पाताल में भर्ती हैं, अभी तक हमलावार की कोई जानकारी नहीं मिली है. 

75 साल पहले सलमान रुश्दी ने किताबों के जरिए दुनिया में अपनी पहचान बनाई है. रुश्दी के उपन्यास ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ के लिए 1981 में ‘बुकर प्राइज’ और 1983 में ‘बेस्ट ऑफ द बुकर्स’ पुरस्कार से भी नवाजा गया है. सलमान रुश्दी का पूरा नाम सर अहमद सलमान रुश्दी है. रुश्दी की किताबों में धर्म को लेकर संवेदनशीलता और राजनीतिक विषयों के बारे में उनकी एक अलग सोच साफ नजर आती है, जिससे रुश्दी कई बार विवादों में भी घिर चुके हैं.  

मुस्लिम परिवार में पैदा हुए सलमान रुश्दी ने स्कूली पढ़ाई रग्बी स्कूल और आगे की शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से की. रुश्दी ने 1968 में इतिहास में एम.ए. की डिग्री हासिल की. 1970 के दशक में उन्होंने लंदन में एक विज्ञापन कॉपीराइटर के तौर पर काम किया.

रुश्दी ने अपनी पहलाी किताब साल 1975 में लिखी, जिसका नाम ‘ग्राइमस’ (Grimus) था. रुश्दी की दूसरी किताब ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ थी , इस किताब से रुश्दी को काफी पहचान मिली. इन किताबों के अलावा रुश्दी ने कई किताबें लिखीं जिसमें द जैगुअर स्माइल, द मूर्स लास्ट साई, द ग्राउंड बिनीथ हर फीट और शालीमार द क्लाउन शामिल हैं. शालीमार द क्लाउन कश्मीर को लेकर लिखी गई किताब है. रुश्दी की सबसे ज्यादा विवादित किताब ‘द सैटेनिक वर्सेस’ रही है. 

भारत समेत कई देशों में इस नॉवेल पर बैन

पाकिस्तान में समकालीन राजनीति पर आधारित उपन्यास शेम (1983) भी रुश्दी की काफी मशहूर किताब है. ‘द सैटेनिक वर्सेस’ सलमान रुश्दी की चौथी किताब है, बता दें कि ये किताब भारत और दुनिया के कई देशों में बैन है. यह नॉवेल 1988 में प्रकाशित हुआ था, जिस पर पर काफी विवाद हुआ था. इस किताब को लेकर रुश्दी पर पैगंबर मोहम्मद के अपमान का आरोप लगाया गया. 

रुश्दी ने इस किताब में एक मुस्लिम परंपरा का जिक्र किया है, जिसे लेकर कई इस्लामिक देशों ने रुश्दी की इस किताब पर बैन लगा दिया. इस किताब के छपने के बाद भी रुशदी को मौत की धमकियां मिलती रही हैं, ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्ला रुहोल्ला खोमैनी तो रुश्दी के खिलाफ फतवा भी जारी कर दिया था. बता दें कि इस किताब के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की हत्या कर दी गई और इटैलियन अनुवादक और नॉर्वे के प्रकाशक पर भी जानलेवा हमले किए जा चुके हैं. 

मौत की धमकी के बावजूद, रुश्दी ने लिखना जारी रखा, रुश्दी ने  बच्चों का नॉवेल हारून एंड द सी ऑफ़ स्टोरीज़ (1990);  और नॉवेल द मूर्स लास्ट सिघ (1995) भी लिखा है. रुश्दी की लोकप्रियता को देखते हुए 1998 में, लगभग एक दशक के बाद, ईरानी सरकार ने घोषणा की कि वह अब रुश्दी के खिलाफ अपने फतवे को लागू करने की कोशिश नहीं करेगी.