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अमेरिका का सीक्रेट हथियार... टेक्नोलॉजी इतनी खतरनाक कि अपने सबसे करीबी दोस्तों को भी नहीं देता US... जानिए क्यों B-2 स्पिरिट है दुनिया का सबसे अनोखा लड़ाकू विमान

B-2 की टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस है कि अभी तक कोई भी देश इसके बराबर का स्टील्थ बॉम्बर नहीं बना पाया है. रूस और चीन अपने स्टील्थ विमानों पर काम कर रहे हैं, लेकिन उनके विमान अभी भी B-2 की तकनीक से पीछे हैं

अमेरिका का सीक्रेट हथियार (Photo/US AIR Force) अमेरिका का सीक्रेट हथियार (Photo/US AIR Force)

दुनियाभर में जेट्स, रॉकेट और मिसाइल को लेकर चर्चा चल रही है. ऐसे में एक ऐसा भी हथियार है जिसे दुनिया का सबसे ताकतवर देश, अमेरिका, किसी भी कीमत पर अपने सहयोगी देशों को नहीं बेचता? यह है अमेरिका का B-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर, एक ऐसा लड़ाकू विमान जो न केवल तकनीक का चमत्कार है, बल्कि युद्ध के मैदान में दुश्मनों के लिए एक अनदेखा खतरा भी है. इसकी गुप्त तकनीक, अकल्पनीय ताकत और अमेरिका की गोपनीय नीतियों ने इसे दुनिया का एकमात्र ऐसा लड़ाकू विमान बना दिया है जिसे अमेरिका ने कभी किसी अन्य देश को नहीं बेचा. 

B-2 स्पिरिट रडार से बच सकता है 
B-2 स्पिरिट, जिसे "स्टील्थ बॉम्बर" के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा विमान है जो रडार की नजरों से बच सकता है. इसका डिजाइन इतना अनोखा है कि यह आसमान में उड़ते समय लगभग अदृश्य हो जाता है. इसकी बनावट, जिसे फ्लाइंग विंग डिज़ाइन कहा जाता है, इसे रडार सिग्नल्स को अवशोषित करने और उन्हें बिखेरने की क्षमता देता है. इसका मतलब है कि दुश्मन के रडार इसे आसानी से पकड़ नहीं सकते. इस विमान की खासियत यह है कि यह रात के अंधेरे में या बादलों के बीच बिना किसी को भनक लगे दुश्मन के इलाके में घुस सकता है और तबाही मचा सकता है.

B-2 स्पिरिट की लंबाई करीब 69 फीट और पंखों का फैलाव 172 फीट है. यह विशालकाय विमान 80,000 पाउंड तक के हथियार ले जा सकता है, जिसमें परमाणु बम और सटीक गाइडेड मिसाइलें शामिल हैं. यह 6,000 नॉटिकल मील तक की उड़ान भर सकता है और हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता इसे लगभग असीमित रेंज प्रदान करती है. इसकी गति ध्वनि की गति से थोड़ी कम, यानी मैक 0.95 है, लेकिन इसकी ताकत इसकी गति में नहीं, बल्कि इसकी गुप्तता और मारक क्षमता में है.

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B-2 था एक सीक्रेट प्रोजेक्ट 
B-2 स्पिरिट की कहानी शुरू होती है 1970 के दशक में, जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध अपने चरम पर था. उस समय अमेरिका को एक ऐसे विमान की जरूरत थी जो सोवियत रक्षा प्रणालियों को चकमा दे सके. इस जरूरत को पूरा करने के लिए नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन नामक कंपनी ने B-2 को डिज़ाइन किया. इस परियोजना को इतना गोपनीय रखा गया कि इसके बारे में केवल कुछ चुनिंदा लोग ही जानते थे. 1980 के दशक में जब इसका विकास शुरू हुआ, तब इसकी लागत और तकनीक को लेकर कई सवाल उठे.

(Photo/US AIR Force)
(Photo/US AIR Force)

B-2 का पहला प्रोटोटाइप 1989 में उड़ा और 1997 में इसे पूरी तरह से अमेरिकी वायु सेना में शामिल किया गया. लेकिन इसकी कीमत सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. एक B-2 बॉम्बर की लागत उस समय 2.1 बिलियन डॉलर थी, जो इसे दुनिया का सबसे महंगा विमान बनाती है. आज के समय में इसकी कीमत और भी ज्यादा हो सकती है. कुल 21 B-2 बॉम्बर बनाए गए, जिनमें से एक दुर्घटना में नष्ट हो गया. आज अमेरिकी वायु सेना के पास केवल 20 B-2 विमान हैं, और ये सभी व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस, मिसौरी में तैनात हैं.

क्यों है B-2 इतना खास?
B-2 की खासियत इसकी स्टील्थ टेक्नोलॉजी में छिपी है. यह विमान रडार को चकमा देने के लिए विशेष सामग्रियों और डिजाइन का उपयोग करता है. इसकी बॉडी कार्बन-आधारित कंपोजिट सामग्रियों से बना है, जो रडार तरंगों को अब्सॉर्ब करती हैं. इसके अलावा, इसका डिजाइन ऐसा है कि यह रडार सिग्नल्स को बिखेर देता है, जिससे यह रडार स्क्रीन पर एक छोटे से पक्षी जैसा दिखाई देता है.

B-2 की एक और खासियत है इसकी लंबी दूरी की मारक क्षमता. यह विमान बिना रुके हजारों मील की दूरी तय कर सकता है और दुश्मन के क्षेत्र में गहरे तक हमला कर सकता है. यह परमाणु और गैर-परमाणु दोनों तरह के हथियार ले जा सकता है, जिससे यह किसी भी युद्ध में एक गेम-चेंजर बन जाता है. इसके अलावा, यह विमान एडवांस नेविगेशन और टारगेटिंग सिस्टम से लैस है, जो इसे सटीक हमले करने की क्षमता देता है.

अमेरिका क्यों नहीं बेचता B-2?
अब आते हैं उस सवाल पर जो हर किसी के मन में है: अमेरिका B-2 को किसी भी देश को क्यों नहीं बेचता? इसके कई कारण हैं, जो तकनीकी, रणनीतिक और राजनीतिक स्तर पर महत्वपूर्ण हैं.

  1. B-2 की स्टील्थ तकनीक अमेरिका की सबसे बड़ी सैन्य ताकतों में से एक है. इस तकनीक को विकसित करने में दशकों का समय और अरबों डॉलर का निवेश लगा है. अगर यह विमान किसी अन्य देश को बेचा जाता है, तो इसकी तकनीक लीक होने का खतरा है. अगर यह तकनीक चीन, रूस या किसी अन्य प्रतिद्वंद्वी देश के हाथ लग जाए, तो अमेरिका की सैन्य श्रेष्ठता खतरे में पड़ सकती है. यही कारण है कि अमेरिका ने इसे अपने सबसे करीबी सहयोगियों, जैसे कि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया या इजराइल को भी नहीं बेचा.
  2. इसके अलावा, B-2 एकमात्र ऐसा विमान है जो दुश्मन के क्षेत्र में बिना पकड़े गए परमाणु हमला करने की क्षमता रखता है. अगर इसे अन्य देशों को बेचा जाता है, तो यह अनोखा लाभ खत्म हो सकता है. अमेरिका चाहता है कि यह ताकत केवल उसके पास रहे, ताकि वह वैश्विक मंच पर अपनी सैन्य शक्ति को बनाए रख सके.
  3. साथ ही, B-2 का उत्पादन बेहद महंगा और जटिल है. केवल 21 विमान बनाए गए, और अब इनका उत्पादन बंद हो चुका है. नए विमानों को बनाने के लिए फिर से प्रोडक्शन लाइन शुरू करनी पड़ेगी, जो बहुत महंगा और समय लेने वाला होगा. इसके अलावा, इन विमानों का रखरखाव भी बहुत महंगा है. एक B-2 को उड़ाने की लागत प्रति घंटे $150,000 से अधिक है. ऐसे में, इसे बेचने का कोई आर्थिक लाभ नहीं है.
  4. इतना ही नहीं, B-2 जैसे विमान को बेचने के लिए कई स्तरों पर मंजूरी चाहिए, और अमेरिकी कांग्रेस कभी भी ऐसी तकनीक को विदेश भेजने की अनुमति नहीं देगी. B-2 का उपयोग केवल अमेरिका की वैश्विक रणनीति के लिए किया जाता है. यह विमान उन मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है जहां अमेरिका को अकेले ही निर्णायक हमला करना हो. इसे किसी अन्य देश के साथ साझा करने का मतलब होगा अमेरिका की रणनीतिक स्वतंत्रता को कम करना.
(Photo/US AIR Force)
(Photo/US AIR Force)

B-2 का युद्ध में उपयोग
B-2 ने कई युद्धों में अपनी ताकत दिखाई है. 1999 में कोसोवो युद्ध में, B-2 ने पहली बार युद्ध में हिस्सा लिया और सर्बियाई ठिकानों पर सटीक हमले किए. इसके बाद, यह अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में भी इस्तेमाल हुआ. हर बार, इसने दुश्मन के रडार को चकमा देकर सटीक हमले किए और सुरक्षित वापस लौटा. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बिना किसी नुकसान के दुश्मन के क्षेत्र में गहरे तक हमला कर सकता है.

B-2 की टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस है कि अभी तक कोई भी देश इसके बराबर का स्टील्थ बॉम्बर नहीं बना पाया है. रूस और चीन अपने स्टील्थ विमानों पर काम कर रहे हैं, लेकिन उनके विमान अभी भी B-2 की तकनीक से पीछे हैं. उदाहरण के लिए, चीन का J-20 और रूस का Su-57 स्टील्थ फाइटर हैं, लेकिन B-2 जैसी लंबी दूरी की बॉम्बर क्षमता उनके पास नहीं है.