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Story of Eleventh General Elections: 1991 और 1996 के बीच का वो समय जब राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गुजर रहा था देश, पढ़ें घोटालों और बदलते गठबंधनों वाले चुनावी माहौल की कहानी

India's Eleventh General Election: 1996 के आम चुनाव में देश घोटालों, आर्थिक बदलावों और बदलते गठबंधनों से गुजर रहा था. इन सबके केंद्र में थे पीवी नरसिम्हा राव, जिन्हें राजीव गांधी की दुखद हत्या के बाद प्रधानमंत्री की भूमिका में लाया गया था. आप भी पढ़ें 11वें आम चुनाव की यात्रा.

11th General Elections (Photo: India Today) 11th General Elections (Photo: India Today)
हाइलाइट्स
  • आर्थिक बदलावों और बदलते गठबंधनों का दौर

  • राजनीतिक उतार-चढ़ाव वाला समय

11th General Elections: भारत में सत्ता के गलियारों में माहौल तनाव से भर गया था, क्योंकि देश 11वीं लोकसभा चुनाव के लिए तैयार था. मौजूदा प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) ने अपने साहसिक सुधारों से देश को अशांत आर्थिक संकट से बाहर निकाला था. फिर भी, घोटालों और विवादों ने उनकी सरकार की विश्वसनीयता को धूमिल कर दिया था, जिससे वह मतदाताओं की नजर में कमजोर हो गई थी.

1991 और 1996 के बीच के सालों में भारतीय राजनीति में उतार-चढ़ाव भरा दौर रहा. ये समय आर्थिक सुधारों, घोटालों और बदलते गठबंधनों के तूफान से गुजर रहा था. और इस तूफान के केंद्र में थे पीवी नरसिम्हा राव, जिन्हें राजीव गांधी की दुखद हत्या के बाद प्रधानमंत्री की भूमिका में लाया गया था.

पीवी नरसिम्हा राव का कार्यकाल उपलब्धियों और विवादों दोनों से भरा रहा. आर्थिक बदलावों की तत्काल आवश्यकता को पहचानते हुए, उनकी सरकार ने साहसिक उदारीकरण नीतियों की शुरुआत की, जिससे भारत के बाजार निजी और विदेशी निवेश के लिए खुल गए. यह कदम उस ठहराव और संकट की प्रतिक्रिया थी जिसने 1980 के दशक के आखिर में भारतीय अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया था.

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हालांकि, पीवी नरसिम्हा और उनके वित्त मंत्री, मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को अर्थव्यवस्था को संकट से बचाने का श्रेय दिया गया, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों ने सरकार की छवि को धूमिल कर दिया था. राजनेताओं और अपराधियों के बीच सांठगांठ पनपी, जबकि पंजाब और जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में हिंसा ने और चुनौतियां खड़ी कर दीं. कांग्रेस पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह ने उथल-पुथल बढ़ा दी, जिसके विरोध में कई कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. 

जैसे-जैसे 1996 के लोकसभा चुनाव नजदीक आए, देश की पूरी राजनीतिक अनिश्चितता से भर गई. ऐसे में अपने बढ़ते हुए समर्थन की बदौलत भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता पर कब्जा करने का मौका देख रही थी. ऐसे में घटती विश्वसनीयता का सामना कर रही कांग्रेस ने अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए गठबंधन बनाने की कोशिश की.

चुनाव से पहले ही जैन हवाला कांड (Jain Hawala Scandal) सामने आया. इसने कई राजनेताओं को रिश्वतखोरी के आरोपों में फंसा दिया था, जिससे भारतीय राजनीति की नींव हिल गई. फिर भी, अराजकता के बीच, लाखों मतदाताओं ने अपने मत डाले, जिसमें रिकॉर्ड संख्या में उम्मीदवार सीटों की लड़ाई लड़ रहे थे. 

(Photo: Getty images)
(Photo: Getty images)

बीजेपी अपने हिंदुत्व एजेंडे और बदलाव के वादों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई. कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ, जबकि नेशनल फ्रंट ने खुद को एक वैकल्पिक ताकत के रूप में पेश किया. 

बीजेपी ने 161 सीटें हासिल की. वहीं कांग्रेस को 140 सीटें. चूंकि कोई भी पार्टी स्वतंत्र रूप से सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्या जुटाने में सक्षम नहीं थी, इसलिए निर्णायक कदम उठाने की जिम्मेदारी राष्ट्रपति पर आ गई.

ये काफी ऐतिहासिक क्षण था. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को निमंत्रण दिया और उनसे प्रधानमंत्री के रूप में पद संभालने का संकेत किया. आशा और अनिश्चितता के बीच, अटल बिहारी वाजपेयी  (Atal Bihari Vajpayee) ने सत्ता संभाली और गठबंधन सरकार बनाने के मिशन पर निकल पड़े.  

फिर भी, अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयास विफल हो गए, क्षेत्रीय दलों से समर्थन जुटाने के उनके प्रयास निरर्थक साबित हुए. अपने कार्यकाल के केवल 13 दिन बाद, उन्होंने राजनीतिक उथल-पुथल और अनिश्चितता के दौर की शुरुआत करते हुए अपना इस्तीफा दे दिया. 

अटल बिहारी वाजपेयी के इस्तीफे के बाद, कमान जनता दल के एचडी देवेगौड़ा (HD Deve Gowda) को दे दी गई, जिन्होंने संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार बनाई. हालांकि, देवेगौड़ा का कार्यकाल अल्पकालिक, चुनौतियों और समझौतों से भरा साबित हुआ.

भारतीय राजनीति की बदलती रेत के बीच, आई के गुजराल (I K Gujral) एक अनिच्छुक उत्तराधिकारी के रूप में उभरे, उन्होंने अनिच्छा से अप्रैल 1997 में प्रधानमंत्री का पद संभाला. 

जैसे-जैसे देश आगे की ओर देख रहा था, एक और चुनाव का खतरा मंडरा रहा था. हमेशा की तरह लोकतंत्र के पहिये घूमते रहे. लेकिन एक बात जो हर चुनाव में देखने को मिली वो ये कि हर क्रांति स्थिरता और प्रगति लेकर आई. जिससे देश आगे बढ़ता गया.