
Voters showing their voter identity card (Photo: India Today)
Voters showing their voter identity card (Photo: India Today) India's Fifteenth General Election: भारत की संसद के निचले सदन (लोकसभा) के लिए पंद्रहवें आम चुनाव अपने आप में अलग महत्व रखते हैं. अप्रैल और मई 2009 में एक महीने में पांच चरणों में आयोजित हुए इन चुनावों के परिणाम 16 मई 2009 को घोषित किए गए. ये वो चुनाव था जिसमें एक बार फिर से कांग्रेस सत्ता में वापस आई थी.
राजनीतिक पैंतरेबाजी और चुनावी उत्साह की पृष्ठभूमि के बीच, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का प्रदर्शन केंद्र में रहा. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने 543 सदस्यीय लोकसभा में 206 सीटें हासिल करके, 2004 के प्रदर्शन में काफी सुधार किया. जबकि बीजेपी की चुनावी स्थिति में गिरावट देखी गई. बीजेपी ने चुनाव में 116 सीटें हासिल कीं. ये 1999 के अपने चुनावी प्रदर्शन से बिल्कुल उल्टा था.
वोट शेयर में काफी बदलाव देखा गया. कांग्रेस का वोट शेयर करीब दो फीसदी बढ़ा था. पार्टी को लगभग 61 सीटों का फायदा हुआ. जबकि भाजपा का वोट शेयर लगभग 3.5 प्रतिशत गिरा, जिससे उन्हें 21 सीटों का नुकसान हुआ. इतना ही नहीं बल्कि इन दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के अलावा, क्षेत्रीय दलों का प्रभाव भी बढ़ गया.

बीजू जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे दूसरे दलों ने राज्य स्तर पर प्रभावी शासन के माध्यम से अपनी स्थिति मजबूत की. हालांकि, चुनावी जीत के बीच गंभीर वास्तविकता भी छिपी हुई हैं. राजनीतिक पार्टियों के भीतर आपराधिकता के प्रसार और राजनीतिक क्षेत्र में करोड़पतियों के बढ़ते प्रभुत्व ने भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता के बारे में चिंता बढ़ा दी थी. फिर भी, इन चुनौतियों के बीच, आशा की किरणें उभरीं. महिला सांसदों के प्रतिनिधित्व में इसबार काफी बढ़ोतरी देखी गई.
अलग-अलग पार्टी गठन के प्रयासों के बावजूद भारत की राजनीति द्विध्रुवीय होती जा रही थी. कांग्रेस विरोधी, वाम दलों के नेतृत्व वाला एक बीजेपी विरोधी तीसरा मोर्चा, साथ ही एक चौथा मोर्चा जिसमें तीन क्षेत्रीय दल शामिल थे. 2004 के आम चुनावों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चार वामपंथी दलों को 61 सीटें मिलीं. ये पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली बन गई थी.
जैसे ही चुनावी जंग के मैदान में धूल थम गई, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नई यूपीए सरकार बनीं. हालांकि, इस दौरान असंख्य चुनौतिया उनका इंतजार कर रही थीं. अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने से लेकर देश में स्थिरता लाने तक ये सफर डॉ. मनमोहन सिंह के लिए अनिश्चितता लेकिन संभावनाओं से भरपूर होने वाला था.