 Mumps Outbreak in Kerala
 Mumps Outbreak in Kerala  Mumps Outbreak in Kerala
 Mumps Outbreak in Kerala केरल में मम्प्स यानी गलसुआ नामक बीमारी तेजी से फैल रही है और इस महीने राज्य में इस बीमारी के लगभग 2,505 मामले सामने आए हैं. यह एक तरह का वायरल इंफेक्शन है जो मुख्य रूप से लार ग्रंथियों (Salivary Glands) को प्रभावित करता है, इन ग्रंथियों को पैरोटिड ग्रांथियां (Parotid Glands) भी कहा जाता है.
हाल ही में, इस बीमारी के एक दिन में 190 मामले सामने आए जिसके बाद यह राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए चिंता का कारण बन गई है. अधिकारी इसके प्रसार को रोकने के लिए सभी उपाय कर रहे हैं. यह बीमारी पैरामाइक्सोवायरस के कारण होती है और इससे ज्यादातर हल्के लक्षण सामने आते हैं. हालांकि, यह किसी भी आयु वर्ग को प्रभावित कर सकता है, यह 5-9 वर्ष के बच्चों में कॉमन है.
पैरोटिड ग्लांड्स में आती है सूजन
रिपोर्ट्स के मुताबिक, लगभग 2 से 4 सप्ताह के प्रोबेशन पीरियड के बाद, मायलगिया, सिरदर्द, अस्वस्थता और हल्के बुखार जैसे लक्षणों के साथ मम्प्स की शुरुआत होती है, और जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, पैरोटिड ग्लांड्स के एक तरफ या दोनों तरफ सूजन तक बढ़ जाती है. WHO के मुताबिक, मम्प्स की वैक्सीन- एक मोनोवैलेंट वैक्सीन, एक बाईवलेंट मीसल्स-मम्प्स वैक्सीन, या एक ट्राईवलेंट मीसल्स-मम्प्स-रूबेला वैक्सीन (MMR) के रूप में उपलब्ध हैं. 
मम्प्स की बीमारी सीधे संपर्क से या संक्रमित व्यक्तियों के अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट से निकलने वाली ड्रॉप्लेट्स से फैलता है. वायरस से संक्रमित हर व्यक्ति में लक्षण विकसित नहीं होते हैं. सूजन, लार ग्रंथियों में दर्द, गले में खराश, बुखार, सिरदर्द, थकान और भूख न लगना इसके लक्षणों में से हैं. MMR वैक्सीन से बीमारी को रोका जा सकता है और इससे उबरने में लगभग दो सप्ताह लगते हैं.
मम्प्स-मीसल्स-रूबेला (MMR) वैकसीन ने बीमारी को फैलने को काफी हद तक रोक दिया है, फिर भी इसके प्रकोप की जानकारी सामने आ रही है. यह बीमारी वैक्सीन लगाए गए लोगों को भी प्रभावित कर सकती है, लेकिन लक्षण हल्के रहते हैं.
मम्प्स के लक्षण
बीमारी फैलने के पीछे कारण
टीकाकरण की कमी से लेकर कम प्रतिरक्षा तक, मम्प्स की बीमारी फैलने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. 
वैक्सीनेशन की कमी: मम्प्स का अक्सर उन जगहों में फैलता है जहां कम वैक्सीनेशन होता है या जहां बहुत सारे लोग वैक्सीन नहीं लगवाते हैं. MMR वैक्सीन मम्प्स को रोकने में अत्यधिक प्रभावी है.
निकट संपर्क में आने से: मम्प्स खांसी, छींकने या बात करने से निकलने वाली रेस्पिरेटरी ड्रॉप्लेट्स के साथ-साथ किसी संक्रमित व्यक्ति की लार या बलगम के सीधे संपर्क से फैलती है. कॉलेज हॉस्टल या मिलिट्री बैरक जैसे करीबी रहने वाले क्वार्टर वायरस के प्रसार को बढ़ाते हैं.
कमजोर इम्यूनिटी: HIV/AIDS जैसी स्थितियों या कीमोथेरेपी से गुजरने के कारण कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को मम्प्स होने और अधिक गंभीर लक्षणों के होने का खतरा ज्यादा होता है.
ट्रीटमेंट और मैनेजमेंट
मम्प्स सेल्फ-लिमिटिंग बीमारी है, इसलिए इसका कोई विशिष्ट ट्रीटमेंट नहीं है और लक्षणों को हाइड्रेशन, पेनकिलर्स और सही पोषण के साथ कंट्रोल किया जा सकता है. 
सपोर्टिंव केयर: मम्प्स के लिए कोई विशिष्ट ट्रीटमेंट नहीं है, इसलिए लक्षणों से राहत देने पर ध्यान फोकस किया जाता है. इसमें भरपूर आराम करना, हाइड्रेटेड रहना और बुखार को कम करने और दर्द को कम करने के लिए इबुप्रोफेन या एसिटामिनोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर पेनकिलर्स लेना शामिल है.
आइसोलेशन: वायरस को आगे फैलने से रोकने के लिए संक्रमित व्यक्तियों को दूसरों से अलग किया जाना चाहिए, विशेषकर उन लोगों से जिनको वैक्सीन नहीं लगी है.
वैक्सीनेशन: मम्प्स को फैलने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका वैक्सीनेशन है. MMR वैक्सीन आमतौर पर दो खुराक में दी जाती है, पहली खुराक 12-15 महीने की उम्र में और दूसरी खुराक 4-6 साल की उम्र में दी जाती है. जिन एडल्ट्स को टीका नहीं लगाया गया है, उन्हें टीका लगवाने पर विचार करना चाहिए.