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राहत की खबर! ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए अलग से बूस्टर डोज की जरूरत नहीं, अमेरिका की नई रिसर्च में सामने आई ये बात

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए बूस्टर डोज की जरूरत नहीं पड़ेगी. शोधकर्ताओं की इस रिपोर्ट की अभी रिव्यू होगी. इस रिसर्च में उन बंदरों को शामिल किया गया जिन्हें पहले से ही दोनों डोज लगाए जा चुके थे. 9 महीने बाद बंदरों को बूस्टर डोज लगाए गए थे.

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हाइलाइट्स
  • वैक्सीन लगा चुके बंदरों को दी गई बूस्टर डोज

  • बूस्टर डोज के बाद नहीं दिखा कोई बड़ा अंतर

  • ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए अलग से वैक्सीन की जरूरत नहीं!

अमेरिका से एक अच्छी और राहत देने वाली खबर आई है. एक नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन(Research on Omicron) से लड़ने के लिए अलग से बूस्टर डोज की जरूरत नहीं पड़ेगी. हालांकि, रिसर्च अभी शुरुआती दौर में है. बंदरों पर हुए रिसर्च में यह बात सामने आई है. जिस तरह से कोरोना के नए वेरिएंट आ रहे हैं और जितनी तेजी से फैल रहे हैं, उसके बीच यह काफी राहत की बात है.

बूस्टर डोज के बाद नहीं दिखा कोई बड़ा अंतर
यूएस के रिसर्चर्स का कहना है कि उन्होंने ओमिक्रॉन को लेकर एक अध्ययन के लिए बंदरों में मॉडर्ना(Moderna) का बूस्टर डोज लगाया. इससे कुछ वक्त बाद जो परिणाम आए उसमें कोई बड़ा अंतर नहीं दिखा. शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए अलग से बूस्टर डोज की जरूरत नहीं पड़ेगी. शोधकर्ताओं की इस रिपोर्ट की अभी रिव्यू होगी. इस रिसर्च में उन बंदरों को शामिल किया गया जिन्हें पहले से ही दोनों डोज लगाए जा चुके थे. 9 महीने बाद बंदरों को बूस्टर डोज लगाए गए थे.

ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए अलग से वैक्सीन की जरूरत नहीं!
शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके रिसर्च में यह बात सामने आई है कि दोनों बूस्टर डोज(जनरल डोज की दूसरी या तीसरी या बूस्टर डोज) शरीर में एंटीबॉडी रिस्पॉन्स को बढ़ाते हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज(National Institute of Allergy and Infectious Diseases) के एक वैकसीन शोधकर्ता डैनियल डौक का कहना है कि यह बहुत ही अच्छी और राहत की खबर है. हमें कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर अलग से वैक्सीन बनाने की जरूरत नहीं है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को उन्होंने यह जानकारी दी.

माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर जॉन मूर का कहना है कि बंदरों पर रिसर्च का एक लाभ यह है कि शोधकर्ता जानवरों को बूस्ट कर सकते हैं और फिर उन्हें वायरस के संक्रमित कर सकते हैं. इसके बाद इम्यून रिस्पॉन्स को माप सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह देखने वाली बात होगी इंसानों के रिसर्च में क्या डाटा सामने आता है. बंदरों पर रिसर्च से जो डाटा सामने आया है वह काफी हद तक अनुमानित होते हैं. लेकिन, इंसानों के रिसर्च के डाटा की आवश्यकता पड़ेगी. बता दें कि मॉडर्ना और फाइजर ने इंसानों में ओमिक्रॉन को लेकर टीके की टेस्टिंग शुरू कर दी है.